बंबई स्थिति १८� ५५� उ. अ. तथा ७२� ५४� पू. दे.। ब्रिटिश राज्यकाल में बंबई भारत का एक प्रांत था जिसके अंतर्गत आज के महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों के कुछ जिले थे। भारत के स्वतंत्र होने पर बंबई राज्य बना और उसकी राजधानी बंबई रही। सन् १९६० में बंबई राज्य को महाराष्ट्र और गुजरात दो राज्यों में बाँट दिया गया। अब बंबई महाराष्ट्र की राजधानी है। यह कलकत्ते के बाद भारत का सबसे बड़ा नगर है, जो पश्चिमी घाट पहाड़ की ढाल के पास कई छोटे छोटे द्वीपों से निर्मित प्रायद्वीप पर स्थित है। इसके तीन ओर समुद्र है। इसकी जनसंख्या ४१,५२,०५६ (१९६१) है। यहाँ मराठी, हिंदी, गुजराती, उर्दू तथा ५० अन्य भाषाएँ बोली जाती हैं। सभी द्वीप पुलों द्वारा आपस में संबद्ध हैं। बंबई का वार्षिक औसत ताप लगभग २६� सें. रहता है। मई माह सबसे गरम तथा जनवरी माह सबसे ठंढा रहता है। वर्षा का वार्षिक औसत लगभग १२५ इंच रहता है जो अधिकांश जून से सितंबर तक होती है। जनसंख्या तथा व्यापार में कलकत्ते के बाद भारत में इसका दूसरा स्थान है। यह बृहत्, स्वच्छ एवं आधुनिक नगर है, जहाँ चौड़ी सड़कें, सुंदर पार्क, शानदार इमारतें एवं संग्रहालय हैं। यहाँ एल्फिंस्टेन कालेज, बंबई विश्वविद्यालय, ग्रांट मेडिकल कालेज, इंस्टिट्यूट ऑव साइंस, विक्टोरिया जुबली टेक्नीकल इंस्टिट्यूट, जी. एस. मेडिकल कालेज प्रसिद्ध हैं। सेंट्रल रेलवे टर्मिनल तथा ताजमहल होटल दर्शनीय इमारतें हैं। यहाँ बस एवं ट्राम की उन्नत व्यवस्था है। शांताक्रूज एक आधुनिक तथा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। बंबई दो लंबे तथा पतले प्रायद्वीपों पर बसा है, जिनमें से एक फोर्ट प्रायद्वीप है जो कोलाबा प्वाइंट पर समाप्त होता है और दूसरा पश्चिमी या मालावार प्रायद्वीप है जहाँ सुंदर भवन, बगीचे तथा बैक वे एवं बीच कैंडी नामक दो सुंदर समुद्र तट हैं। मालावार हिल के ऊपर पारसियों का साइलेंस मंदिर तथा सुंदर हैंगिंग गार्डेन हैं। बंबई का उद्योग में भी प्रमुख स्थान है। भारत में फिल्म निर्माण का यह सबसे बड़ा केंद्र है। यहाँ सूती कपड़े की मिलें, रेलवे वर्कशॉप, तेलशोधक कारखानें, भेषजीय फैक्टरियाँ, गोदाम, मुद्रणालय, चमड़े तथा ऊनी कपड़े की मिलें तथा गोदी बाड़ा आदि हैं। नगर की जलपूर्ति नगर से ६५ मील दूर स्थित तंसा (Tansa) तथा एक अन्य जलभंडार द्वारा की जाती है। पश्चिमी घाट पहाड़ से बहनेवाली छोटी छोटी नदियों से पर्याप्त जलविद्युत् प्राप्त हो जाती है। यहाँ के बंदरगाह लगभग १५ मील लंबा नौ मील चौड़ा है। नगर के आसपास की भूमि बड़ी उपजाऊ होने के कारण कपास के उत्पादन के लिए सर्वोत्तम है अत: कपास की कृषि बड़े परिमाण में होती है। इस नगर को ऐतिहासिक घटनाओं से भी अपनी वृद्धि में सहायता मिली है। व्यापारिक केंद्र के साथ साथ इसके बंदरगाह की युद्ध की सामग्री के यातायात से बहुत अधिक वृद्धि हुई है। बंबई बंदरगाह से पूर्व की और छह मील पर एलिफेंटा नामक टापू है। टापू की प्रसिद्धि लावा चट्टानों में काटे गए गुफा मंदिर के कारण है (देखें एलिफैंटा)।
इतिहास - �ऐसा कहा जाता है कि बंबई की स्थापना १३वीं शताब्दी में हुई, जब आब्रज़क आकर यहाँ बसे थे। उस समय के स्वतंत्र शासक राजा बिंब ने आब्रज़कों को बसाने में उत्साह दिखाया था। १३४८ ई. में गुजरात के मुसलमानों ने इसपर अधिकार कर लिया था। १५३४ ई. में बंबई के द्वीप पुर्तगाल के अधीन चले गए थे। १६६२ ई. में जब पुर्तगाल की राजकुमारी का विवाह इंग्लैंड के चार्ल्स द्वितीय के साथ हुआ तब पुर्तगाल के अधीन बंबई का व्यापारिक केंद्र तथा समीप के दो द्वीप अंग्रेजों को दहेज में दे दिए गए। अंग्रेज शासकों से ईस्ट इंडिया कंपनी ने १० पाउंड वार्षिक कर पर इन द्वीपों को ले लिया। उसी व्यापारिक केंद्र पर आधुनिक बंबई नगर बसा, और तब से बराबर उन्नति करता हुआ अपनी इस स्थिति में आ गया है।