बंधक किसी ऋण के भुगतान अथवा किसी वादे की पूर्ति के लिए प्रतिभूति (सिक्योरिटी) स्वरूप जब किसी वस्तु का उपनिधान (बेलमेंट) किया जाता है तब उसे बंधक कहते हैं। आधि अथवा प्राधि भी बंधक के ही पर्याय हैं। बंधक उपनिधान में उपनिधाता को आयाधक अथवा बंधककर्ता तथा उपनिहती को अधिमान अथवा बंधक रखनेवाला कहा जाता है। बंधक में वस्तु का हस्तांतरण आवश्यक है। किसी संपत्ति को गिरवी रखने के लिए अथवा धारणाधिकार (लिपन) के लिए वस्तु का हस्तांतरण आवश्यक नहीं होता। लेकिन यह हस्तांतरण वास्तविक ही हो, यह आवश्यक नहीं है। प्रलक्षित हस्तांतरण भी पर्याप्त है।

बंधक रखी जानेवाली वस्तु का स्वामी तो उस वस्तु को बंधक रख ही सकता है; उसके अतिरिक्त व्यापारी अधिकर्ता भी यदि उसके पास स्वामी की रजामंदी से वह वस्तु अथवा उस वस्तु के कागजात हों वह अपने सामान्य व्यापारिक अधिकार क्षेत्र में उस वस्तु अथवा कागजात को उसी प्रकार बंधक रख सकता है मानो उस वस्तु के स्वामी ने उसे यह अधिकार दिया हो। अधिकर्ता (मर्केटाइल एजेंट) तथा कागज़ात (डाकूमैंट्स ऑव टाइटिल) का अर्थ भारतीय वस्तु-विक्रय-विधि, १९३० के अनुसार ही लिया जाएगा।

इसी प्रकार यदि आयाधक या बंधककर्ता के पास किसी की वस्तु किसी विवर्ज्य संविदा (वायडेबिल कंट्रैक्ट) के अधीन उपलब्ध है और भारतीय संविदा विधि की धारा १९ अ के अंतर्गत वह संविदा रद्द नहीं की गई है तब भी उस वस्तु का बंधक रखना वैध माना जाता है।

आधिमान अथवा बंधक रखनेवाले को उस बंधक वस्तु को केवल ऋण की अदायगी अथवा वादे की पूर्ति तक ही रखने का अधिकार नहीं है वरन् उस ऋण पर जमा हुए ब्याज तथा उस वस्तु को सुरक्षित रखने के लिए किए गए व्यय तथा अप्रत्याशित व्यय की अदायगी के लिए भी रखे रहने का अधिकार होता है। बंधककर्ता यदि ऋण की अदायगी अथवा वादे की पूर्ति निश्चित समय के भीतर नहीं करता तो बंधक रखनेवाले को दो अधिकार उपलब्ध हो जाते हैं। वह ऋण की अदायगी अथवा वादे की पूर्ति के लिए दावा करने के साथ उस वस्तु को अतिरिक्त सुरक्षा के रूप में रखे रह सकता है। या वह उस वस्तु को, बंधककर्त्ता को उपयुक्त सूचना देने के बाद बेचकर अपने ऋण का भुगतान कर सकता है। यदि वस्तु का मूल्य कम है तो बकाये की अदायगी का भार बंधककर्ता पर कायम रहता है और यदि वस्तु का मूल्य अधिक प्राप्त होता है तो वह अतिरिक्त धन बंधककर्ता को अदा कर दिया जाता है।

बंधक रखी वस्तु को यदि कोई तीसरा पक्ष कोई क्षति पहुंचाता है तो बंधक रखनेवाला व्यक्ति उस तीसरे पक्ष के विरुद्ध उसी प्रकार कार्यवाही कर सकता है जिस प्रकार वस्तु का वास्तविक स्वामी कर सकता है। (गोपी कृष्ण अरोड़ा)