बंदा (सिंह) बहादुर बंदा बैरागी का जन्म कश्मीर के पुंछ जिले के रजौरी क्षेत्र में १६७० ई., विक्रम संवत् १७२७, कार्तिक शुक्ल १३ को हुआ था। वह राजपूतों के भारद्वाज गोत्र से संबद्ध था और उसका नाम लक्ष्मणदेव था। १५ वर्ष की उम्र में वह जानकीप्रसाद नाम के एक बैरागी का शिष्य हुआ और उसका नाम माधोदास पड़ा। अनंतर वह रामदास बैरागी का शिष्य हुआ और कुछ समय तक पंचबटी (नासिक) में रहा। यहाँ एक औघड़नाथ से योग की शिक्षा प्राप्त कर वह पूर्व की ओर दक्षिण के नंदेर क्षेत्र को चला गया जहाँ गोदावरी के तट पर उसने एक आश्रम की स्थापना की।
३ सितंबर, १७०८ ई. को नंदेर में सिक्खों के दसवें गुरु, गुरु गोविंदसिंह ने इस आश्रय को देखा और उसे सिक्ख बनाकर उसका नाम बंदासिंह रख दिया। पंजाब में सिक्खों की दारुण यातना तथा गुरु गोविंदसिंह के सात और नौ वर्ष के शिशुओं की नृशंस हत्या ने उसे अत्यंत विचलित कर दिया। गुरु गोविंदसिंह के आदेश से ही वह पंजाब आया और सिक्खों के सहयोग से मुगल अधिकारियों को पराजित करने में सफल हुआ। मई, १७१० में उसने सरहिंद को जीत लिया और सतलुज नदी के दक्षिण में सिक्ख राज्य की स्थापना की। उसने खालसा के नाम से शासन किया और गुरुओं के नाम के सिक्के चलवाए।
बंदासिंह के नेतृत्व में, सिक्खों के इस नवीन राज्य में व्यक्ति व्यक्ति में भेदभाव न रहा और निम्न वर्ग का व्यक्ति शासन में उच्च पद का अधिकारी बना। परंतु उसका राज्य थोड़े दिनों तक ही रहा। बादशाह बहादुरशाह ने स्वयं चढ़ाई कर इसे परास्त किया और १० दिसंबर, १७१० ई. को सिक्खों के कत्लेआम का आदेश दिया।
बंदासिंह ने अपने राज्य के एक बड़े भाग पर फिर से अधिकार कर लिया और इसे उत्तरपूर्व तथा पहाड़ी क्षेत्रों की ओर लाहौर और अमृतसर की सीमा तक विस्तृत कर लिया। १७१५ ई. के प्रारंभ में बादशाह फर्रुखसियर की शाही फौज ने अब्दुस् समद खाँ के नेतृत्व में उसे गुरुदासपुर जिले के धारीवाल क्षेत्र के निकट गुरुदासनंगल गांव में कई मास तक घेर रखा। खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उसने ७ दिसंबर को आत्मसमर्पण कर दिया। फरवरी १७१६ को ७९४ सिक्खों के साथ वह दिल्ली लाया गया जहाँ ५ मार्च स १३ मार्च तक प्रति दिनश् १०० की संख्या में सिक्खों को फाँसी दी गई। १६ जून को बादशाह फर्रुखसियर के आदेश से बंदासिंह तथा उसके मुख्य अधिकारियों के काटकर टुकड़े टुकड़े कर दिए गए।
उसने अति प्राचीन ज़मींदारी प्रथा का अंत कर दिया था तथा कृषकों को बड़े बड़े जागीरदारों और जमींदारों की दासता से मुक्त कर दिया था। वह सांप्रदायिकता की संकीर्ण भावनाओं से परे था। मुसलमानों को राज्य में पूर्ण धार्मिक स्वातंत््रय दिया गया था। पाँच हजार मुसलमान भी उसकी सेना में थे। बंदासिंह ने यह घोषणा कर दी थी कि वह किसी प्रकार भी मुसलमानों को क्षति नहीं पहुँचाएगा और वे सिक्ख सेना में अपनी नमाज़ और खुतवा पढ़ने में स्वतंत्र होंगे। (गंडा सिंह)