फ्लेर गाइल्स १.(१५४९-१६११) अंग्रेज कवि; जन्मस्थान वैटफ़ोर्ड। एटन में प्रारंभिक शिक्षा, केंब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक। १५८५ में फ्लेचर संसद् सदस्य बने। कूटनीतिक मंडल के सदस्य के रूप में उन्होंने स्कॉटलैंड, जर्मनी, रूस आदि स्थानों का भ्रमण किया। १६०१ में एसेक्स को अपमानित करने का दोष रैले पर लगाने के कारण उन्हें कारावास मिला।

फ्लेचर ने रूस के संबंध में अपने अनुभवों का संकलन संलन 'ऑव दि एसे ऑन कॉमनवेल्थ' पुस्तक में किया जिसमें वहाँ की भौगोलिक स्थिति, सरकार, कानून, युद्धकला, धर्म तथा समाज का विशद वर्णन किया गया है। इनकी ख्याति 'लिसिया पोयम्स' ऑव लव' १५९३ नामक पुस्तक से विशेष रूप से हुई। (गिरींद्र नाथ शर्मा)

२. फ्लेचर गाइल्स (१५८४-१६२३) फ्लेचर प्रथम का पुत्र तथा अंग्रेज कवि। वेस्टमिंस्टर तथा ट्रिनिटी कॉलेज केंब्रिज में शिक्षा। महारानी एलिजबेथ की मृत्यु पर 'सारोज़ ज्वाय' १६०३ में लिखी। इनमें वक्तृता की अद्भुत क्षमता थी। सेंट मेरी गिरजा में उनका उपदेश विशेष प्रसिद्ध था। कहा जाता है, बेकन ने उन्हें 'एर्ल्डर्टन' का पादरी बनाया। उनकी अंतिम धार्मिक पुस्तक 'दि रिवार्ड ऑव दि फेथफुल' १६२३ में प्रकाशित हुई। जिस पुस्तक ने उनकी ख्याति में विशेष योगदान दिया वह 'क्राइस्ट्स विक्ट्री इन हेवन इन अर्थ ओवर ऐंड आफ्टर डेथ' १६१० में प्रकाशित हुई। इनकी कविता के माधुर्य से मिल्टन इतना प्रभावित हुआ कि अपने पैराडाइज़ रिगेंड में उसका अनुकरण किया। यह कविता सुंदरता, ध्वनि, और माधुर्य के साथ ही साथ उपदेशात्मक होने के कारण विशेष लोकप्रिय न हो सकी। वे ग्रीक भाषा के विद्वान् थे और अंग्रेज कवि स्पेंसर के पूर्ण भक्त। 'फ़ेयरी क्वीन' के आधार पर लिखित यह पुस्तक चार भागों में विभक्त है। पहले में न्याय और दया, दूसरे में 'पेन ग्लो रैटो' तीसरे में ईसा की फाँसी और चौथे में स्वर्ग का वर्णन है। समृद्ध कल्पना भाषा की सजावट तथा माधुर्य का इसमें पूर्ण सम्मिश्रण है। 'प्री रफ्रेलाइट मूवमेंट' से प्रभावित होने के कारण प्राकृतिक सौंदर्य तथा शब्दसंगीत का प्राचुर्य है। धार्मिक तत्वों पर रूपक लिखनेवाले कवियों में यह प्रथम श्रेणी में आते हैं। ( गिरींद्र नाथ शर्मा)