फ्लीट स्ट्रीट पत्रकारों का मक्का और स्ट्रीट ऑव् इंक (स्याही की स्ट्रीट) के नाम से प्रसिद्ध फ़्लीट स्ट्रीट लंदन के पत्रकारों का गढ़ है। वस्तुत: यह केवल लंदन ही नहीं वरन् विश्व के बृहत्तम समचारपत्रों का केंद्रस्थान है। ब्रिटेन के प्राय: सभी समाचारपत्रों के कार्यालय भी स्ट्रीट में या इसी के आसपास की स्ट्रीटों में करीब आधे वर्गमील के घेरे में बसे हुए हैं। इसके साथ ही साथ विदेशों के अधिकांश समाचारपत्रों के स्थानीय कार्यालय भी इसी स्ट्रीट में हैं,

ब्रिटिश पत्रकारिता की आत्मा स्ट्रीट में बसती है और प्रेस की स्याही फ्लीट स्ट्रीट का खून है। यदि प्रेस की स्याही मिलना बंद हो जाए तो फ्लीट स्ट्रीट का सारा कारोबार ठप हो जाए। शायद यही कारण है कि इस स्ट्रीटश् को 'स्याही की स्ट्रीट' कहा जाता है।

फ्लीट स्ट्रीट का यह नाम आधुनिक काल की देन नहीं। यह स्ट्रीट १५वीं शताब्दी से ही स्याही की स्ट्रीट के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्ट्रीट का वास्तविक इतिहास भी १५वीं सदी से प्रारंभ होता है।

१५वीं सदी के मध्य में जर्मनी में गुटनबर्ग ने आधुनिक मुद्रणकला का आविष्कार किया था। उसके बाद धीरे धीरे यूरोप के अन्य देशों में भी इस कला का प्रसार हुआ।

इंग्लैंड में छापाखाने का जन्म केक्सटन से हुआ। उसने अपना प्रेस फ्लीट स्ट्रीट के पास वेस्टमिंस्टर में खोला था। इसके कुछ ही समय बाद केक्सटन के एक सहयोगी विंकिन डि वार्डे ने यहीं पर प्रेस के काम में आनेवाले सामानों की दूकान खोली थी। यहीं से उसने सर्वप्रथम पुस्तकों के सस्ते संस्करण, पहेलियों की पुस्तकें, राजा रानी तथा परियों की कहानियां, स्कूलों की पाठ्य पुस्तकें और इसी प्रकार की अन्य पुस्तकों का प्रकाशन आरंभ किया था। विंकिन डि वार्डे की सफलता से प्रभावित होकर धीरे धीरे अन्य लोगों ने भी अन्य स्थानों में जमा हुआ अपना कारोबार हटाकर फ्लीट स्ट्रीट में जमाया और देखते ही देखते यहाँ कई प्रेस खुल गए।

१७वीं सदी में लंदन में जो भयंकर आग लगी थी, उसके पहले फ्लीट स्ट्रीट में पुस्तकविक्रेताओं तथा प्रकाशकों की संख्या अधिक नहीं थी। उस समय अधिकांश प्रकाशक तथा पुस्तकविक्रेता सेंट पाल गिरजाघर के आसपास बसे हुए थे। आग के परिणामस्वरूप उन्हें वहाँ से हटना पड़ा और वे भागकर सबसे निकट के स्थान फ्लीट स्ट्रीट में ही आ बसे। १९४०-४१ में भी जब लंदन में आग लगी तब बहुत से प्रकाशक एवं मुद्रक अन्य स्थानों से भागकर फ्लीट स्ट्रीट में ही आए थे। इस प्रकार फ्लीट स्ट्रीट प्रकाशकों एवं मुद्रकों का गढ़ बन गया और इसका पहले से ही प्रसिद्ध नाम 'स्याही की स्ट्रीट' और भी अधिक सार्थक हो गया। आजकल प्रेस की जितनी अधिक स्याही का उपयोग फ्लीट स्ट्रीट में प्रतिदिन होता है, उतनी स्याही संसार के किसी भी देश में किसी एक स्थान पर प्रयुक्त नहीं की जाती।

इस स्ट्रीट का नाम फ्लीट नदी के नाम पर पड़ा। यह नदी आज कल भी है पर दो तीन सदी पूर्व की तुलना में उसका अब नाम मात्र ही शेष रह गया है।

अपने आरंभिक काल में फ्लीट स्ट्रीट एक छोटी सी गली थी जिसका कोई नाम भी नहीं जानता था। १३वीं सदी के पहले का तो इसका कोई इतिहास भी प्राप्य नहीं है। वेस्टमिंस्टर का गिरजाघर फ्लीट स्ट्रीट से अधिक दूर नहीं है। संभवत: इसी कारण १३वीं सदी के बाद से पादरियों तथा चर्च के अन्य अधिकारियों ने इसके आसपास बसना शुरू किया। उस समय इस स्थान पर पादरियों तथा अन्य लोगों के जो महल थे वे तत्कालीन सरायों तथा धर्मशालाओं का काम देते थे। पादरियों का यह कर्तव्य समझा जाता था कि वे यात्रियों को अपने घरों में जगह दें तथा उनका यथायोग्य आदर सत्कार करें।

इसका परिणाम यह हुआ कि शीघ्र ही यह स्थान लुच्चे लफंगों और बदमाशों के अड्डों के लिए प्रसिद्ध हो गया। इसका एक कारण यह भी था कि उस समय के एक कानून के अनुसार पादरियों के घरों में ठहरे किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था। अत: अपराधी लोग जान बूझकर पादरियों के घरों में ही ठहरते थे। जब तक पादरियों के इन मठों का अस्तित्व समाप्त नहीं हो गया तब तक उक्त कानून में भी परिवर्तन नहीं हुआ। जिस स्थान पर उस समय पादरियों के निवासस्थान थे वहाँ आजकल 'डेली मेल', 'ईवनिंग न्यूज़' तथा अन्य समाचारपत्रों के कार्यालय हैं।

'फ्लीट स्ट्रीट'-इन दो शब्दों के अंतर्गत आसपास की छोटी छोटी स्ट्रीटें भी शामिल हो जाती हैं जो सब मिलकर करीब आधा वर्गमील का क्षेत्र बनाती हैं। फ्लीट स्ट्रीट के ही एक भाग ट्यूटर स्ट्रीट से 'डेली मेल' 'आब्ज़र्वर' का प्रकाशन होता है। बोवेरी स्ट्रीट अत्यंत ही सँकरी छोटी सी गली है जहाँ दो कारें भी आसानी से आ जा नहीं सकतीं पर इसी स्ट्रीट से संसार में सर्वाधिक सर्क्युलेशनवाले रविवासरीय समाचारपत्र 'न्यूज ऑव दी वर्ल्ड' का प्रकाशन होता है। आजकल इस पत्र का औसत सर्क्युलेशन करीब ९५ लाख है।

फ्लीट स्ट्रीट स्थित एक एक पत्र के कार्यालय में करोड़ों रुपए की पूँजी लगी हुई है। यद्यपि स्थान की कमी के कारण कुछ समाचारपत्रों के कार्यालय फ्लीट स्ट्रीट में नहीं हैं, तथापि अधिकांश के कार्यालय फ्लीट स्ट्रीट या इसके आसपास ही हैं। इसी का यह परिणाम है कि विदेशी समाचारपत्रों के स्थानीय प्रतिनिधियों को किसी भी विषय पर ब्रिटेन के समाचारपत्रों की राय शीघ्र ही मालूम हो जाती है। और आज शाम का कोई समाचार कल सुबह तक संसार के प्राय: सभी देशों के समाचार पत्रों में ब्रिटेन के समाचारपत्रों की टिप्पणी के साथ प्रकाशित हो जाता है।

फ्लीट स्ट्रीट से केवल समाचारपत्र ही प्रकाशित नहीं होते। लंदन से प्रकाशित होनेवाली सैकड़ों साप्ताहिक एवं मासिक पत्रिकाओं का प्रकाशन एवं मुद्रण स्थान भी फ्लीट स्ट्रीट ही है। विश्वप्रसिद्ध हास्य साप्ताहिक 'पंच' का कार्यालय भी यहीं है। लंदन से प्रकाशित होनेवाली प्राय: सभी महिलोपयोगी पत्रिकाओं के कार्यालय भी यहीं हैं।

किसी भी पत्रकार के लिए फ्लीट स्ट्रीट का महत्व मक्का से कम नहीं। जिस प्रकार प्रत्येक मुसलमान अपने जीवन में कम से कम एक बार मक्का जाने की इच्छा रखता है, उसी प्रकार संसार के प्राय: प्रत्येक देश के छोटे बड़े पत्रकार की भी यह इच्छा रहती है कि वह अपने जीवन का कुछ समय फ्लीट स्ट्रीट में बिताए। वस्तुत: फ्लीट से ही आधुनिक पत्रकारिता का जन्म हुआ है। पत्रकारिता के क्षेत्र में समय समय पर जो नए प्रयोग होते हैं उनमें से अधिकांश का आरंभ फ्लीट स्ट्रीट से ही होता है।

इस रहस्य का पता लगाना बड़ा मुश्किल होगा कि आखिर लंदन के अधिकांश समाचारपत्र फ्लीट स्ट्रीट से ही क्यों चिपके हुए हैं। लंदन के अन्य क्षेत्रों में भी बड़े बड़े और आधुनिकतम प्रेस हैं, स्थान की भी वहाँ ऐसी कमी नहीं है, फिर भी पत्रपत्रिकाओं के संचालक वहाँ न जाकर फ्लीट में ही आना पसंद करते हैं। वैसे तो इसके कई कारण बताए जा सकते हैं पर एक प्रमुख कारण यह जान पड़ता है कि फ्लीट स्ट्रीट वेस्टमिंस्टर के पास है। वेस्टमिंस्टर में ही संसद भवन है। अत: राजनीति के केंद्र के पास समाचारपत्रों के कार्यालयों का होना स्वाभाविक ही है।

१५वीं सदी से ही फ्लीट स्ट्रीट लेखकों एवं साहित्यकारों को भी आकर्षित करती रही। प्रसिद्ध अंग्रेज कवि मिल्टन, लेखक डा. जानसन, चार्ल्स डिकेंस, आलिवर गोल्डस्मिथ, ड्राइडन आदि अनेक साहित्यकारों का फ्लीट स्ट्रीट से कुछ न कुछ संबंध रहा है। (महेंद्र राजा जैन)