फ्रांसेज़ डाब्ले (१७५२-१८४०) मैडम डाब्ले, जो कुमारी फ़ैनी बर्नी के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं, नॉरफ़ोक के किंग्सलिन नामक स्थान में सन् १७५२ में पैदा हुई थीं। इनके पिता डॉ. बर्नी संगीत के लब्धप्रतिष्ठ मर्मज्ञ थे और फ़ैनी के बचपन ही में लंदन में आकर रहने लगे थे। उनका संपर्क डॉ. जॉन्सन, कर्ब तथा रेनॉल्डस जैसे प्रसिद्ध व्यक्तियों से था और कालांतर में कुमारी बर्नी भी उसी विशिष्ट गोष्ठी से संबंधित हो गईं। लिखने का प्रेम इनमें बाल्यकाल ही में उदय हुआ परंतु विमाता के विरोध के कारण उन्हें प्रोत्साहन न मिल सका। किंतु आगे चलकर स्वाभाविक प्रवृत्ति की विजय हुई और सन् १७७८ ई. में उन्होंने अपना प्रथम उपन्यस 'इबेलिन, ऑर दि हिस्ट्री ऑव ए यंग लेडीज़ इंट्रैस इंटु दि वर्ल्ड' प्रकाशित किया परंतु अपने नाम तथा व्यक्तित्व को गुप्त ही रखा। इस उपन्यास की लोकप्रियता से प्रोत्साहित होकर चार वर्ष पश्चात् उन्होंने 'सिसीलिया, ऑर दि मेम्वायर्स ऑव दि मेम्बायर्स ऑव ऐन येअरेस' का प्रकाशन किया। सन् १७८६ में वे साम्राज्ञी चार्लाट के अधीन एक सम्मानित पद पर नियुक्त हुई और अपने चार वर्षों के अनुभवों को अपनी रोचक डायरी में लेखबद्ध करती रहीं। १७९३ में उन्होंने जेनरल डाब्ले नामक फ्रांसीसी शरणार्थी से विवाह किया और १८०२ से १८१२ तक फ्रांस में कालयापन किया। उनके दो अन्य उपन्यास 'कोमिला' और 'दि वांडरर' के नाम से प्रसिद्ध हैं।

मैडम डाब्ले का सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास 'इवेलिन' है, क्योंकि इसमें उनकी प्रतिभा का विशिष्ट रूप पाठकों के सामने आता है। इसकी नायिका एक उच्च कुल की साधनहीन नवयुवती है जो परिस्थितियों से विवश होकर लंदन के अपरिचित समाज में प्रवेश करती है और भिन्न भिन्न लोगों के विचित्र रहन सहन, क्रियाकलाप, वेशभूषा तथा आचार विचारों का रोचक चित्र अपने पत्रों में अंकित करती है। उपन्यास की पत्र शैली रिचर्डसन की है परंतु नायिका बहिर्मुखी है और अपने व्यक्तित्व को पृष्ठभूमि में रखती हुई वह अपने चतुर्दिक् बाह्य समाज का स्वरूप चित्रित करती है। उपन्यासलेखिका का मुख्य उद्देश्य था एक रोचक कहानी का निर्माण करना। दूसरा विश्ष्टि गुण जो इस उपन्यास में प्रतिबिंबित है वह है लेखिका की तीव्र निरीक्षण शक्ति जिससे घटनाएँ तथा पात्र सजीव हो उठे हैं। इसे अतिरिक्त, उपन्यास में लेखिका की उस पैनी दृष्टि का भी प्रदर्शन है जो मनुष्यों की त्रुटियों तथा हास्यास्पद विचित्रताओं को सहज ही लक्ष्य कर लेती थी और उनकी लेखनी कुशल चित्रकार की तूलिका के समान उनका समन्वय करके मनोरंजक चित्रों का सृजन करती थी। इस तरह के व्यंग्यात्मक चित्र उसके उपन्यासों में भरे पड़े हैं। उनके दूसरे उपन्यस 'सिसीलिया'में भी इन्हीं गुणों की अभिव्यक्ति हुई है और कथावस्तु भी अनुरूप ही है परंतु सफलता उतनी सर्वांगीण नहीं है। शेष दो उपन्यासों में उन्होंने अपने अनुभवक्षेत्र के बाहर बढ़ने का प्रयास किया और डॉ. जॉन्सन की गंभीर तथा बोझिल शैली को अपनाया, जिसके फलस्वरूप उन्हें सफलता से वंचित होना पड़ा। मैड़म डाब्ले के उपन्यासों का महत्व ऐतिहासिक है क्योंकि उनमें स्त्रियों के स्वतंत्र दृष्टिकोण का समावेश है और घरेलू जीवन ही उनका केंद्रबिंदु है। इस तरह से उन्होंने उस परंपरा का श्रीगणेश किया जिसकी पराकाष्ठा जेन आस्टिन की परिपक्व कृतियों में पाई जाती है।

सं.ग्रं. - ए डॉब्सन : फैनी बर्नी १९०३; लार्ड मैकाले : मैडेम डाब्ले हिस्टॉरिकल एसेज़, द्वितीय भाग, १८५४; राल्फ़ वी. सीले : फैनी बर्नी ऐंड हर फ्रेंड्स, १८९०। (विक्रमादित्य राय)