फ्रांसिस हचेसन (१६९४-१७४६ ई.) अंग्रेंजी नीतिदर्शन, प्राचीन साहित्य एवं धर्मशास्त्र का पंडित। उसने पहले डब्लिन में निजी शिक्षाकेंद्र चलाया और फिर ग्लास्गो विश्वविद्यालय में नीतिदर्शन का आचार्य रहा। शैफ्ट्सबरी द्वारा प्रतिपादित नैथ्तक इंद्रिय की धारणा तथा तत्संबंधी सौंदर्यात्मक अपरोक्षानुभववाद के परिवर्धन के लिए विख्यात हुआ। उसने मन में संकल्प से स्वतंत्र किसी विचारनिर्धारण तथा सुख दु:ख प्रत्यक्ष को इंद्रिय माना और इंद्रियों में पाँच बाह्य इंद्रियों के अतिरिक्त मन प्रत्यक्ष इंद्रिय चेतना, सौंदर्य इंद्रिय, औरों के सुख पर सुखी तथा औरों के दु:ख पर दु:खी रहनेवाली जनेंद्रिय (जन इंद्रिय), अपने अथवा दूसरों में सद्गुण अथवा अवगुण का प्रत्यक्ष करनेवाली नैतिक इंद्रिय, यश की इंद्रिय, तथा हास्येंद्रिय की गणना की। उसने नैतिक इंद्रिय की सौंदर्य इंद्रिय से उपमा देते हुए कहा कि नैतिक इंद्रिय कर्मों के तथ्यात्मक गुणों से उसी प्रकार प्रभावित होती है जैसे सौंद्रर्य इंद्रिय पदार्थों के सौंदर्य से, इसलिए उसने उसे नैतिक प्रत्यक्ष, नैतिक रस, नैतिक मूल प्रवृत्ति, नैतिक विवेक, तथा आज्ञारूपी नैतिक अनुमोदन अननुमोदन भी कहा। उसे वास्तविक सद्गुण के ध्यान से सुख की प्राप्ति तथा विस्तृत अनुभव से नैतिक इंद्रिय के विकास में विश्वास था। हचेसन नैतिक इंद्रिय के अतिरिक्त आत्मप्रेम तथा परहित भावना को भी मूल कर्म प्रेरक स्वीकार करता था। परंतु आत्मप्रेम को समाज की स्थिति के लिए आवश्यक मानते हुए भी अनुमोदन अथवा अननुमोदन दोनों के अयोग्य समझता था। वह केवल परहित भावना को ही अनुमोदनीय कर्म का उद्गम मानता था। पूर्णतया विकसित नैतिक इंद्रिय का स्वरूप और दैवी लक्ष्य ही आत्मा से जन सुख का दृढ़ निश्चय कराना बताता था। हचेसन का यह भी कथन था कि आत्मप्रेम तथा परहितभावना तथा नैतिक इंद्रिय इन तीनों का समन्वय केवल धर्म में होता है।

हचेसन आत्म, संख्या, अवधि (duration), तथा अस्तित्व के प्रत्ययों को अन्य प्रत्येक विचार के साथ विद्यमान कहता था। बाह्य पदार्थों के अस्तित्व में विश्वास स्वाभाविक मूल प्रवृत्ति समझता था, और विचार को उसकी भाषात्मक अभिव्यक्ति से भिन्न मानता था। उसका मत था कि सौंदर्य इंद्रि प्रतिवर्त है और सौदर्य का सामान्य सत्यों, सामान्य कारणों, तथा नैतिक सिद्धांतों एवं कर्मों में भी प्रत्यक्षानुभव किया जा सकता है।

सं.ग्रं. - फ्रांसिस हचेसन : एन्क्वायरी कंसर्निग ब्यूटी, आर्डर हारमॅनी ऐंड डिजाइन; एन्क्वायरी कंसर्निग मॉरल गुड ऐंड ईविल; एसे ऑव द नेचर ऐंड कंडक्ट ऑव द पैशंस ऐंड अफेक्शंस। (राममूर्ति लूँबा)