फ्रांस (France) स्थिति : ४०रू२१ उ.अ. से ५१रू उ.अ. तथा ४रू५२ प.दे. से ७रू३९ पू.दे.। यह यूरोप महाद्वीप का सबसे बड़ा देश है, जो उत्तर में बेल्जियम, लक्सेंबर्ग, पूर्व में जर्मनी, स्विट्सरलैंड, इटली, दक्षिण-पश्चिम में स्पेन, पश्चिम में ऐटलैटिक सागर, दक्षिण में भूमध्यसागर तथा उत्तर पश्चिम में इंगलिश चैनल द्वारा घिरा है। इस प्रकार यह तीन ओर सागरों से घिरा है। सुरक्षा की दृष्टि से इसकी स्थिति उत्तम नहीं है। इसका कुल क्षेत्रफल कॉर्सिका (देखें, कॉर्सिका) आदि द्वीपों सहित २,१२,६८१ वर्ग मील है।

धरातल - यह देश समतल एवं साथ साथ पहाड़ी भी है। उत्तर में स्थित पैरिस तथा ऐक्विटेन बेसिन बृहद् मैदान के ही भाग हैं। पश्चिम की ओर ब्रिटैनी, यूरोप की उत्तर-पश्चिमी, उच्च पेटीवाली भूमि से संबंधित है। पूर्व की ओर प्राचीन चट्टानों के भूखंडों का क्रम मिलता है, जैसे मध्य का पठार तथा आर्डेन (Ardennes) पर्वत। इस देश के दक्षिण में पिरेनीज़ तथा ऐल्प्स-जूरा पर्वतों का समूह

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पाया जाता है। इसका दक्षिण-पूर्वी भाग पहाड़ी व ऊबड़ खाबड़ है जो ६,००० फुट से भी अधिक ऊँचा है। प्राकृतिक आधार पर इसे आठ भागों में बाँट सकते हैं।

१.����� पैरिस बेसिन - यह देश का अति महत्वपूर्ण भाग है, जो यातायात साधनों द्वारा देश के हर भाग से जुड़ा है। यह बेसिन एक कटोरी के रूप में है, जो बीच में गहरा तथा चारों ओर ऊँचा होता गया है। इस भाग को पुन: (१) मध्य का बेसिन, (२) शैपेन एवं वरगंडी के कगार, (३) लोरेन के कगार, (४) पूर्वी प्रदेश तथा रोन घाटी और (५) ल्वार (Loir) प्रदेश तथा नॉरमैंडी, भागों में विभाजित किया गया है।

२.����� उत्तर-पश्चिमी प्रदेश - यह एक समतल भाग है। यहाँ पर नॉरमैंडी तथा ब्रिटैनी पहाड़ियाँ अवश्य कुछ ऊँचा नीचा धरातल प्रस्तुत करती हैं। यहाँ दो समांतर श्रेणियाँ दक्षिण-पश्चिम में दाउनिनैज खाड़ी के उत्तर-दक्षिण में फैली हैं। उत्तरी श्रेणी मॉट्स डे आरी कहलाती है, जिसका सर्वोच्च शिखर सेंट माईकेल (१,२८५ फुट) है। यही ब्रिटैनी का सबसे ऊँचा भाग है।

३.����� ऐक्विटेन बेसिन - यह त्रिभुजाकार निम्न भूमि है। इसके सागरतटीय भाग में रेत के टीले मिलते हैं। इसका आंतरिक प्रदेश लैडीज़ कहलाता है, जो प्राय: बंजर सा है।

४.����� मध्य का पठार - इस भाग की औसत ऊँचाई २,५०० फुट से भी अधिक है। इसकी ऊँचाई दक्षिण-पूर्व को उठती जाती है और रोन की घाटी में समाप्त हो जाती है। इसकी पूर्वी सीमा पर सेवेन (Cevennes) पर्वत स्थित है। यहाँ क्लेयरमॉन्ट के निकटवर्ती क्षेत्र में अब भी शंकु के आकार की ७० पहाड़ियाँ हैं, जिनका उद्गार प्राचीन समय में हुआ था। पुएज डी डोम ज्वालामुखी चोटी सागरतल से ४,८०५ फुट ऊँची है।

५.����� पूर्वी सीमाप्रदेश - इस प्रदेश में बोज़ तथा आर्डेन पर्वतों का क्रम फैला है। दोनों के बीच में राइन घाटी स्थित है। बोज़ पर्वत १७५ मील की लंबाई में श्रेणी के रूप में फैला है। यहाँ की वर्षा का पानी जमीन के अंदर चला जाता है तथा जमीन के ऊपर धाराएँ कम दिखाई देती हैं।

६.����� रोन सेऑन घाटी - यह मध्य के पठार तथा ऐल्प्स-जूरा-श्रेणियों के मध्य में स्थित है। यह मॉन्टेग्निज डेला कोटि डे ओर, सेऑन तथा ल्वार के खड्ड से प्रारंभ होती है और सीन नदी के उद्गम स्थान तक चली जाती है।

७.����� भूमध्य सागरीय प्रदेश - राइन डेल्टा के पूर्वी भाग में सीधी खड़ी चट्टानें सागरतट के पास तक आ गई हैं। मार्सेई के पश्चिम में अनेक दलदल मिलते हैं। राइन डेल्टा के पश्चिमी तट पर पिरेनीज़ तक तथा पश्चिम की ओर गैरोनि तक लैग्विडॉक का प्रसिद्ध क्षेत्र पाया जाता है। इस क्षेत्र को सेवेन की श्रेणी काटती है। इसका तट निम्न तथा रेतीला है।

८.����� पश्चिमी ऐल्प्स तथा जूरा प्रदेश - फ्रांस की दक्षिणपश्चिमी सीमाएँ पिनाइन, ग्रेनाइन, कोटियान तथा मैरिटाइम ऐल्प्स द्वारा बनी है। सवॉय पर १५,७७५ फुट ऊँचा माउंट ब्लैक स्थित है। समुद्र की ओर औसत ऊँचाई बराबर घटती जाती है। इस भाग में कई प्रमुख दर्रे हैं। जूरा पर्वत फ्रांस में सबसे ऊँचा है। इसकी प्रमुख चोटियाँ क्रेट डि ला नीगे (Cret de La Neige) ५,५०० फुट तथा मॉन्ट डि ओर (Mont de Or) ५,६६० फुट हैं।

जलवायु - यहाँ की जलवायु समुद्री है, जिसका प्रभाव सागर से दूर जाने पर कम होता जाता है। यूरोपीय विचार से पश्चिमी तटीय भाग में निम्न ताप, पर्याप्त वर्षा, शीतल गरमियाँ तथा ठंडी सर्दियाँ जलवायु की विशेषताएँ हैं। पूर्वी तथा मध्य के भाग में महाद्वीपीय जलवायु मिलती है, जहाँ ग्रीष्म में गर्मी, पर्याप्त वर्षा एवं सर्दियों में कड़ी सर्दी पड़ती है। दक्षिणी फ्रांस में, पर्वतीय भागों को छोड़कर शेष में, भूमध्य सागरीय जलवायु मिलती है, जहाँ ठंडी सर्दियाँ, गरम गरमियाँ तथा कम वर्षा होती है। पैरिस का औसत ताप १०रूसें. तथा वर्षा २२ इंच है। वर्षा ब्रिटैनी, उत्तरी तटीय भाग तथा पहाड़ी भागों में अधिक होती है।

कृषि - यहाँ कृषि प्रमुख उद्योग है। यूरोप में कृषिगत वस्तुओं के निर्यात में नीदरलैंड्स के बाद इसका ही स्थान है। कृषि योग्य क्षेत्र अधिकांश उत्तरी भाग में स्थित है। कृषि में गेहूँ, जौ, जई, चुकंदर, पटुआ, आलू तथा अंगूर का स्थान प्रमुख है।

खनिज - कोयला, लोरेन तथा मध्यवर्ती जिलों में मिलता है। कोयला कम होते हुए भी फ्रांस को कोयले में विश्व में तीसरा स्थान प्राप्त है। इसके अतिरिक्त यहाँ ऐंटिमनी, बॉक्साइट, मैग्नीशियम, पाइराइट तथा टंग्स्टन, नमक, पोटैश, फ्लोरस्पार भी मिलता है।

उद्योग - लोरेन तथा मध्यवर्तीय भाग में स्थित लौह इस्पात उद्योग सबसे प्रमुख उद्योग है। उद्योगों के लिए पिरेनीज़ तथा ऐल्प्स से पर्याप्त विद्युत् प्राप्त हो जाती है। लील (Lille), ऐल्सैस तथा नॉरमैंडी में बाहर से रूई मँगाकर सूती कपड़े बनाए जाते हैं। ऊनी वस्त्रों के लिए रूबे (Roubaix) तथा टूरक्वै (Tourcoing) प्रमुख जिले हैं। लेयॉन में रेशमी कपड़ा बनता है। इसके अलावा जलयान निर्माण, स्वचालित यंत्र, चित्रमय परदे, सुगंधित द्रव्य, चीनी मिट्टी के बरतन, शराब, आभूषण, शृंगार की वस्तुओं, फीते, लकड़ी की वस्तुओं के उत्पादन में तो फ्रांस ने विश्व के अन्य देशों को पीछे छोड़ दिया है।

जनसंख्या - यहाँ की जनसंख्या ४,६५,२०,२७१ (१९६२) है। पैरिस यहाँ का प्रमुख नगर तथा राजधानी है। इसके अतिरिक्त मार्सेई, टूलूज़, बॉर्डो, नैत्स, नैन्सी, लील, रूबे आदि प्रमुख नगर हैं। यहाँ की मुख्य भाषा फ्रांसीसी है। अधिकांश लोग रोमन कैथोलिक धर्म को मानते हैं।

वनस्पति - मध्य तथा उत्तरी फ्रांस में बीच, ओक, चीड़ (बर्च), भूर्ज तथा पोपलर के जंगल मिलते हैं। भूमध्य सागरीय क्षेत्र में अंगूर, बेरी तथा अंजीर मिलते हैं।

यातायात - फ्रांस में यातायात की उन्नति बहुत अधिक हुई है। यहाँ ५०,००० मील लंबे प्रथम श्रेणी के १,६०,००० मील द्वितीय श्रेणी के मार्ग तथा १,९०,००० मील लंबी सड़कें हैं। फ्रांस के उत्तरी तथा उत्तर-पूर्वीय भाग में नहरों तथा नदियों का यातायात में प्रमुख स्थान है। यहाँ से हवाई मार्ग विश्व के प्रत्येक बड़े नगर को जाते हैं तथा चार गैर सरकारी हवाई मार्ग भी हैं। रेडियों, टेलीविजन, डाक सेवा, टेलीफोन तथा टेलीग्राफ की उत्तम सेवाएँ प्राप्त हैं।

व्यापार - फ्रांस खाद्य पदार्थ, खनिज तेल, कोयला, ऊन, फल, कपास, थोरियम, यूरेनियम का आयात एवं लौह इस्पात की छड़ें, स्वचालित यंत्र, पेट्रोलियम उत्पाद, सूती कपड़े तथा हवाई जहाजों का निर्यात करता है।

शिक्षा - ६ से १६ वर्ष के बच्चों के लिए पढ़ना अनिवार्य है तथा उच्चतर शिक्षा तक नि:शुल्क शिक्षा दी जाती है। पैरिस, मार्सेई, बजॉन्सान, बॉर्डो, का, क्लेरमॉन्ट फेरांड, दीजॉन, ग्रिनोबिल, लील, लेऑन, टूलूज़ आदि स्थानों पर प्रसिद्ध विश्वविद्यालय हैं। (उ.सिं.)

इतिहास - इसका प्राचीन नाम गॉल था। यहाँ अनेक जंगली जनजातियों के लोग मुख्य रूप से केल्टिक लोग, निवास करते थे। सन् ५७-५१ ई.पू. में जूलियस सीजर ने उन्हें परास्त कर रोमन साम्राज्य में मिला लिया। वहाँ शीघ्र ही रोमन सभ्यता का प्रसार हो गया। प्रथम शताब्दी के बाद कुछ ही वर्षों में ईसाई धर्म का प्रचार तेजी से आरंभ हो गया और केल्टिक बोलियों का स्थान लातीनी भाषा ने ले लिया। पाँचवीं शती में जर्मन जातियों ने उसपर अक्रमण किया। उत्तर में फ्रैंक लोग बस गए। इन्हीं का एक नेता क्लोविस था जिसने सन् ४८६ में अन्य लोगों को हरा कर अपना राज्य स्थापित किया और ४९६ ई. में खष्टीय धर्म में अभिषिक्त हो गया। उसके उत्तराधिकारियों के समय देश में पुन: अराजकता फैल गई। तब सन् ७३२ में चार्ल्स मार्टेल ने विद्रोहियों का दमन कर शांति और एकता स्थापित की। उसके उत्तराधिकारी पेपिन की मृत्यु (७६८ ई. में) होने के बाद पेपिन का पुत्र शार्लमान गद्दी पर बैठा। उसने आसपास के क्षेत्रों को जीतकर राज्य का विस्तार बहुत बढ़ा दिया, यहाँ तक कि सन् ८०० ई. में पोप ने उसे पश्चिमी राज्यों का सम्राट् घोषित किया।

शार्लमान के उत्तराधिकारी अयोग्य साबित हुए जिससे साम्राज्य विखंडित होने लगा और उत्तर से नार्समॅन लोगों के हमले शुरू हो गए। ये लोग नार्मंडी में बस गए। सन् ९८७ में शासनसूत्र ह्यूकैपेट के हाथ में आया किंतु कुछ समय तक उसका राज्य पेरिस नगर के आस पास के क्षेत्र तक ही सीमित रहा। इधर उधर कई सामंतों का बोलबाला था जो यथेष्ट शक्तिशाली थे। १३वीं शताब्दी तक राजा की शक्ति में क्रमश: वृद्धि होती गई किंतु इस बीच शतवर्षीय युद्ध (१३३७-१४५३) के कारण इसमें समय समय पर बाधाएँ भी उपस्थित होती रहीं। जोन ऑफ आर्क नामक देशभक्त महिला ने राजा और उसके सैनिकों में जो उत्साह और स्फूर्ति भर दी थी, उससे सातवें चार्ल्स की मृत्यु (१४६१) तक फ्रांस की भूमि पर से अंग्रेजी आधिपत्य समाप्त हो गया। फिर लूई ११वें के शासनकाल में (१४६१-८३ ई.) सामंतों का भी दमन कर दिया गया और वर्गंडी फ्रांस में मिला लिया गया।

आठवें चार्ल्स (१४८३-८९) तथा १२वें लूई (१४८९-१५१५) के शासनकाल में इटली के विरुद्ध कई लड़ाइयाँ लड़ी गईं जिनका सिलसिला आगे भी जारी रहा। परिणामस्वरूप पश्चिमी यूरोप में शक्तिवृद्धि के लिए स्पेन के साथ कशमकश आरंभ हो गई। जब फ्रांस में प्रोटेस्टैट धर्म का जोर बढ़ने लगा कई फ्रेंच सरदारों ने राजनीतिक उद्देश्य से उसे अपना लिया जिससे गृहयुद्ध की आग भड़क उठी। फ्रेंच राजतंत्र स्वदेश में तो सामान्यत: प्रोटेस्टैट विचारों का दमन करना चाहता था किंतु बाहर स्पेन की ताकत न बढ़ने देने के उद्देश्य से प्रोटेस्टैटों का समर्थन करता था। नवें चार्ल्स (१५६०-७४) तथा तृतीय हेनरी (१५७४-८९) के राज्यकाल में गृहयुद्धों के कारण फ्रांस को बड़ी क्षति पहुँची। पेरिस कैथालिक मत का गढ़ बना रहा। सन् १५७२ में हजारों प्रोटेस्टैट सेंट बार्थोलोम्यू में मार डाले गए। निदान चतुर्थ हेनरी (१५८९-१६१०) ने देश में शांति स्थापित की, धार्मिक सहिष्णुता की घोषणा की और राजा की स्थिति सुदृढ़ बना दी। एक कैथालिक द्वारा उसकी हत्या हो जाने पर उसका पुत्र १३वाँ लूई गद्दी पर बैठा। उसके मंत्री रीशल्यू ने राजा की और राज्य की शक्ति बढ़ाने का काम जारी रखा। तीस वर्षीय युद्ध में शरीक होकर उसने फ्रांस के लिए अलसेस का क्षेत्र प्राप्त किया और उसे यूरोप का प्रमुख राज्य बना दिया। १३वें लूई की मृत्यु के बाद उसका पुत्र १४वाँ लूई (१६३८-१७१५) पाँच वर्ष की अवस्था में फ्रांस का शासक बना (१६४३)। उसका शासन वस्तुत: बालिग होने पर १६६१ ई. में प्रारंभ हुआ। शुरू में उसने ऊपरी टीमटाम में बहुत रुपया फूँक दिया, जब उसने वर्साय के प्रसिद्ध राजप्रासाद का निर्माण कराया। वृद्धावस्था में उसका स्वेच्छाचार बढ़ता गया। उसने विदेशों से युद्ध छेड़ते रहने की नीति अपनाई जिससे देश की सैनिक शक्ति और आर्थिक स्थिति को क्षति पहुँची तथा विदेशी उपनिवेश भी उससे छिन गए। उसके उत्तराधिकारियों १५वें लूई (१७१५-७४) तथा १६वें लूई (१७७४-९३) के समय में भी राजकोष का अपव्यय बढ़ता गया। जनता में असंतोष फैलने लगा जिसे वालटेयर तथा रूसो की रचनाओं से प्रोत्साहन मिला।

जब राष्ट्रीय ऋण बहुत बढ़ गया तब लूई १६वें को विवश होकर स्टेट्स- जनरल की बैठक बुलानी पड़ी। सामान्य जनता के प्रतिनिधियों ने अपनी सभा अलग बुलाई और उसे ही राष्ट्रसभा घोषित किया। यहीं से फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत हुई। सितंबर, १७९२ में प्रथम फ्रेंच गणतंत्र उद्घोषित हुआ और २१ जनवरी, १७९३, को लूई १६वें को फाँसी दे दी गई। बाहरी राज्यों के हस्तक्षेप के कारण फ्रांस को युद्धसंलग्न होना पड़ा। अंत में सत्ता नैपोलियन के हाथ में आई, जिसने कुछ समय बाद १८०४ में अपने को फ्रांस का सम्राट् घोषित किया। वाटरलू की लड़ाई (१८१५ ई.) के बाद शासन फिर बूरबों राजवंश के हाथ में आ गया। दसवें चार्ल्स ने जब १८३०ई. में नियंत्रित राजतंत्र के स्थान में निरंकुश शासन स्थापित करने की चेष्टा की, तो तीन दिन की क्रांति के बाद उसे हटाकर लूई फिलिप के हाथ में शासन दे दिया गया। सन् १८४८ में वह भी सिंहासनच्युत कर दिया गया और फ्रांस में द्वितीय गणतंत्र की स्थापना हुई। यह गणतंत्र अल्पस्थायी ही हुआ। उसके अध्यक्ष लूई नैपोलियन ने १८५२ में राज्यविप्लव द्वारा अपने आपको तृतीय नैपोलियन के रूप में सम्राट् घोषित करने में सफलता प्राप्त कर ली। उसकी आक्रामक नीति के परिणामस्वरूप प्रशा से युद्ध छिड़ गया (१८७०-७१), जिसमें फ्रांस को गहरी शिकस्त उठानी पड़ी। तृतीय नैपोलियन का पतन हो गया और तीसरे गणतंत्र की स्थापना की बुनियाद पड़ी।

तृतीय गणतंत्र का संविधान सन् १८७५ में स्वीकृत हुआ। इसने राज्य को चर्च के प्रभाव से पृथक् रखने का वचन दिया और सार्वजनिक पुरुष मताधिकार के आधार पर चुनाव कराया। संविधान का एक बड़ा दोष यह था कि राष्ट्रपति मात्र कठपुतली जैसा था और कार्यपालिका भी शक्तिहीन थी। इसी से एक मंत्रिमंडल के बाद दूसरा मंत्रिमंडल बनता था और अत्यंत प्रभावशाली अवर सदन द्वारा पृथक् कर दिया जाता था। फिर भी गणतंत्र ने दृढ़तापूर्वक उस स्थिति का सामना किया जो वामपंथियों और दक्षिणपंथियों के पारस्परिक झगड़ों के कारण उत्पन्न होती जा रही थी। इस समय तक एशिया तथा अफ्रीका के कतिपय क्षेत्रों पर फ्रांस का आधिपत्य स्थापित हो चुका था और प्रभाव तथा राज्यविस्तार की दृष्टि से उसका स्थान ब्रिटेन के बाद दूसरा था।

प्रथम महायुद्ध (१९१४-१८) में फ्रांस को ब्रिटेन तथा अमरीका के साथ मिलकर जर्मनी, आष्ट्रिया तथा तुर्की से युद्ध में संलग्न होना पड़ा। विजय के परिणामस्वरूप यद्यपि अलसेस तथा लोरेन का औद्योगिक क्षेत्र पुन: फ्रांस को मिल गया, फिर भी लड़ाई मुख्यत: फ्रेंच भूमि पर ही लड़ी गई थी, इसलिए उसकी इतनी अधिक बर्वादी हुई कि वर्षों तक उसकी आर्थिक अवस्था सुधर न सकी। फरवरी, १९३४ में दक्षिण पंथियों द्वारा किए गए व्यापक उपद्रवों के कारण वामपंथियों को अपनी ताकत बढ़ाने का अवसर मिल गया। सन् १९३६ के चुनाव में उन्हें सफलता मिली, जिससे लियाँ ब्लुम के नेतृत्व में तथाकथित जनता की सरकार स्थापित की जा सकी। ब्लुम ने युद्ध का सामान तैयार करनेवाले कितने ही उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया और कारखानों में ४० घंटे का सप्ताह अनिवार्य कर दिया। अनुदार या रूढ़िवादी दलों का विरोध बढ़ जाने पर ब्लुम को पदत्याग कर देना पड़ा। एड्डअर्ड दलादिए के नेतृत्व में सन् १९३८ में जो नई सरकार बनी उसका समर्थन, हिटलरी कारनामों से आसन्न संकट के कारण वामपंथियों ने भी किया। सितंबर, १९३९ में ब्रिटेन के साथ साथ फ्रांस ने भी जर्मनी से युद्ध की घोषणा कर दी। १९४० की गर्मियों में जब जर्मन सेना ने बेलजियम को ध्वस्त करते हुए पेरिस की ओर अग्रगमन किया तो मार्शल पेताँ की सरकार ने जर्मनी से संधि कर ली। फिर भी फ्रांस के बाहर जर्मनों का विरोध जारी रहा और जनरल डी गॉल के नेतृत्व में अस्थायी सरकार की स्थापना की गई। पेरिस की उन्मुक्ति के बाद डी गॉल की सरकार एलजीयर्स से उठकर पैरिस चली गई और ब्रिटेन, अमरीका आदि ने सरकारी तौर से उसे मान्यता प्रदान कर दी।

युद्ध समाप्त होने पर यद्यपि फ्रांस की आर्थिक स्थिति जर्जर हो चुकी थी, फिर भी सक्रिय उद्योग एवं अमरीका की सहायता से उसमें काफी सुधार हो गया। कार्यपालिका के अधिकारों के संबंध में मतभेद हो जाने से १९४६ में डी गॉल ने पदत्याग कर दिया। दिसंबर में जो चतुर्थ गणतंत्र स्थापित हुआ, उसमें वही सब कमजोरियाँ थीं जो तृतीय गणतंत्र में थीं। सारा अधिकार राष्ट्रसभा के हाथ में केंद्रित था और विविध राजनीतिक दलों में एकता न हो सकने के कारण कोई भी मंत्रिमंडल स्थायित्व प्राप्त करने में असमर्थ रहा। इसी बीच उत्तर अफ्रीका तथा हिंदचीन में फ्रेंच शासन के विरुद्ध विद्रोह की व्यापकता बढ़ती गई। तब जनरल डी गॉल को पुन: प्रधान मंत्री के पद पर प्रतिष्ठित किया गया। नया संविधान बनाया गया जिसमें कार्यपालिका एवं राष्ट्रपति के हाथ मजबूत करने के लिए विशिष्ट अधिकार दिए गए। मतदाताओं ने अत्यधिक बहुमत से इसका समर्थन किया। नए चुनाव के बाद दिसंबर १९५८ में डी गोल के नेतृत्व में पाँचवें गणतंत्र की स्थापना हुई। सन् १९६१ तक फ्रांसने अपने अधीनस्थ कितने ही देशों को स्वतंत्र कर दिया। वे अब संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बन गए हैं। आर्थिक उन्नति करने में फ्रांस उनके साथ यथासंभव सहयोग कर रहा है।