फेर्मा का अंतिम प्रमेय (Fermat's Last Theorem) - १६३७ ई. में पियरे फेर्मा ने बताया कि शून्य के अतिरिक्त य, र तथा ल ऐसी पूर्ण संख्याएँ नहीं होतीं जो समीकरण
यन+रन=लन [xn+yn=zn] . . . . . . . . . (१)
को संतुष्ट करें, जब न (n) दो से बड़ी कोई पूर्णसंख्या है; किंतु फेर्मा ने इसकी उपपत्ति नहीं दी। बाद में न=४ (n=4) के लिए फेर्मा ने समीकरण (१) की उपपत्ति दी। १७७०ई. में लेनर्ड आइलर ने नउ३ (n=3) के लिए समीकरण (१) की अपूर्ण उपपत्ति दी। इसके दूटे हुए चरणों को बाद के गणितज्ञों ने पूर्ण किया। १८२३ई. में एड्रीन एम. लज्हाँड्र (Adrien M. Legehndre) ने सिद्ध कर दिया कि समीकरण
यक+रक+लक=० [xl+yl+zl=0] . . . . . . . . . (२)
में जब क (l) का मान विषम अभाज्य संख्या पाँच है शून्य के अतिरिक्त य, (x), र (y) तथा ल (z) के पूर्णांक मान असंभव हैं। सच में यह प्रमाणित करना सरल नहीं कि समीकरण (१) की उपपत्ति के लिए समीकरण (२) को तीन से बड़ी किसी भी संख्या के लिए सिद्ध कर देना पर्याप्त है, और ऑगस्टिन एल. कोशी (Augustine L. Cauchy) जैसे गणितज्ञों के प्रयास इस दिशा में असफल रहे। सत्य यह है कि ऐसे प्रयासों ने एर्नस्ट ई. कुमर को आदर्श (ideal) संख्याओं की संकल्पना सुझा दी, जो गणितीय धारणाओं में अत्यंत शक्तिशाली और लाभदायक सिद्ध हुई। कुमर इसके आधार पर अत्यंत विस्तीर्ण संख्यात्मक परिकलन द्वारा १०० से कम सभी अभाज्य क (l) के लिए समीकरण (२) की असंभवता स्थापित करने में सफल हुए। १९२९ ई. और १९३९ ई. के बीच हैरी एस. वैंडिवर (Harry S. Vandiver) ने कुमर द्वारा दी गई विधियों के विस्तार का उपयोग कर ऐसे परिणाम दिए जो क (l) के ६१९ से कम अभाज्यों के लिए समीकरण (२) की असंभवता स्थापित करने में समर्थ थे।
आगे चलकर इस दशा में समीकरण (२) की दो विशिष्ट स्थितियों पर विचार करने की दिशा में प्रयास हुआ : पहली स्थिति, जब य, र, ल (x, y, z) परस्पर तथा क (l) के पति अभाज्य हैं और स्थिति दो जब य, र, ल (x, y, z) परस्पर अभाज्य हैं, किंतु उनमें स एक क (l) से विभाज्य है। स्थिति दो के बारे में शोध नहीं के बराबर हुए हैं, किंतु सर्वांगसमता (congruence) और मॉड (mod) की कल्पनाओं का उपयोग कर स्थिति एक में पर्याप्त शोध हुआ है। यद्यपि इस स्थिति में भी पूर्ण रूप से फेर्मा की उक्ति स्थापित नहीं की जा सकी, तथापि अब तक की गवेषणाओं से फेर्मा के अंतिम प्रमेय की सत्यता प्रकट होती है।
सं.ग्रं. - एल.ई. डिक्सन: हिस्ट्री ऑव द थ्योरी ऑव नंबर्स, खंड २ (१९२०); एल.जे. मोर्डेल : द लेक्चर्स ऑन फेर्माल लास्ट थ्योरम (१९२१)। (चंद्रमोहन)