फूल और कसकुट मिश्र धातुएँ हैं, जो दो से अधिक धातुओं के मेल से बनती हैं। भारत, चीन, मिस्त्र और यूनान आदि देशों को इनका ज्ञान बहुत प्राचीन काल से है और प्राचीन खंडहरों की खुदाई में इनके पात्र, हथियार और मूर्तियाँ पाई गई हैं। धातुओं की विभिन्न मात्राओं के कारण इनके रंग और अन्य गुणों में विभिन्नता पाई जाती है। पाश्चात्य देशों में फूल से मिलती जुलती मिश्रधातु को प्यूटर (Peuter) कहते हैं। फूल वंग और सीस की मिश्रधातु है, पर इसमें कभी कभी ताँबा या पीतल भी मिला रहता है। नीली आभा लिए यह सफेद होता है। प्राचीन काल में गिरजाघरों के घंटे इसी के बनते थे। बाद में अन्य सामान भी बनने लगे। १७वीं और १८वीं शताब्दी में तो इसका उपयोग बहुत व्यापक हो गया था और उस समय या उसके पूर्व के बने अनेक सादे या सुंदर चित्रित प्याले, कलश, गिलास, सुराही, शमादान, मदिराचषक, थाल इत्यादि पाए गए हैं। एक समय फूल के पात्रों का उपयोग प्रतिष्ठासूचक समझा जाता था और इनका निर्माण अनेक देशों और नगरों में होता था।
भारत में फूल का अस्तित्व पीतल से पुराना है। यहाँ इसका उत्पादन व्यापक रूप से होता था, पर आज अकलुष इस्पात के बनने के कारण इसका उत्पादन बहुत कम हो गया है और दिन प्रतिदिन कम हो रहा है। गाँवों में भी फूल के बरतनों का विशेष प्रचलन है और भारत के अनेक राज्यों, जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और बंगाल में इसका उत्पादन होता है।
फूल में ८० प्रतिशत सीसा या ताँबा और २० प्रतिशत वंग रहता है। इनकी मात्रा में विभिन्नता के कारण फूल के रंग में विभिन्नता होती है। इन धातुओं को मिलाकर, ग्रैफाइट की मूषा में गलाकर मिश्रधातु बनाते हैं, जिसे पिंडक (ingot) के रूप में ढाला जाता है। पिंडक को बेलन मिल में रखकर वृत्ताकार बनाते हैं, जिसकी परिधि ८ इंच से ४८ इंच तक की होती है। सल्फ्यूरिक अम्ल के विलयन के साथ उपचारित कर उसकी सफाई करते हैं। पिंडों को काट काटकर कारीगर सामानों का निर्माण करता है। इसके लिए हाथ का प्रेस या स्वचालित प्रेस प्रयुक्त होता है। हाथ के औजारों से इसपर कार्य होता है। चादरों को पीट पाटकर आवश्यक रूप देते हैं। इस प्रकार बने अपरिष्कृत पात्र को हाथ से, या चरख (हाथ से खींची जानेवाली खराद) से, खुरचकर सुंदर बनाते हैं। खुरचने का औजार उच्चगति इस्पात का बना होता है। साँचा ढलाई से भी फूल के बरतन बनते हैं। इसके लिए साँचा, फर्मा और पैटर्न प्रयुक्त होते हैं। ऐसे बने बरतन भारी होते हैं और छिलाई, ढलाई में कच्चे माल की अधिक हानि होती है। जहाँ बेलन मिल नहीं है वहाँ ढलाई के अतिरिक्त अन्य कोई चारा नहीं है।
कसकुट, ताँबें और जस्ते की मिश्रधातु है (देखें काँसा)। कसकुट के सामान भी वैसे ही बनते हैं, जैसे फूल और पीतल के।श् (शिवांकर कुँवर)