फूमैरिक और मलेइक अम्ल यह दोनों समावयवी अम्ल असंतृप्त द्वि-कार्बोक्सिलिक अम्ल श्रेणी के सदस्य हैं। इनका सूत्र है काहा (C4H4O4)। इनके संघटन की विशेषता यह है कि इनमें दो कार्बन परमाणु युग्म बंध से जड़े हुए हैं और इसके कारण इनके घटक के सब परमाणु एक धरातल में हो जाते हैं। फूमैरिक और मलेइक अम्लों के प्रकार की समावयवी व्यवस्था को ज्यामितीय समावयवता कहते हैं।

फूमैरिक (Fumaric) अम्ल मलेइक (Maleic) अम्ल

फूमैरिक अम्ल का गलनांक २८७रूसें. है। ऊष्मा की क्रिया से एवं रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा यह मलेइक अम्ल या मलेइक ऐनहाइड्राइड में बदला जा सकता है। फूमैरिक अम्ल का निर्माण व्यापारिक स्तर पर संश्लेषण द्वारा अथवा किण्वन से किया जाता है। किण्वन विधि से उपयुक्त शर्करा का ६०-७० प्रतिशत फूमैरिक अम्ल में बदला जा सकता है। राइज़ोपस निग्रिकैंस (Rhizopus nigricans), अथवा सजातीय फाइकोमाइसीटीज़ (Phycomycetes) नामक अन्य कवक और कम कार्बनवाली शर्कराएँ, जैसे द्राक्ष शर्करा, फल शर्करा, अपवृत्त शर्करा, यव शर्करा, आदि इस किण्वन में प्रयुक्त होती हैं।

मलेइक अम्ल का निर्माण बेंज़ीन के वैनेडियम पेंटॉक्साइड के उत्प्रेरित ऑक्सीकरण द्वारा किया जाता है। यह फूमैरिक अम्ल से भी रासायनिक अभिक्रिया द्वारा बनाया जा सकता है। ऊष्मा की क्रिया से फूमैरिक अम्ल मलेइक ऐनहाइड्राइड में परिवर्तित होता है, जो एक महत्वपूर्ण कार्बनिक रसायनक है।

मलेइक अम्ल का गलनांक १२५रूसें. है। यह बड़े पैमाने पर संश्लिष्ट रेज़ीन, रोगन, रंगलेप, वार्निश और मुद्रण स्याही आदि के निर्माण का एक महत्वपूर्ण अंग है। (रामचंद्र हरि सह'ाबुद्धे)