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फूत्कार बाण या ब्लो गन (Blow gun) घातक हथियार है जिसका उपयोग दक्षिण अमरीका, मलय प्रायद्वीप और मलय द्वीपसमूह के वनवासी पशुओं का शिकार करने में करते हैं। इसके प्रयोग में सफलता बहुत कुछ प्रयोक्ता के छिपे रहने पर निर्भर करती है। यह काठ की सात फुट लंबी नली होती है। मुख पर इसके छेद का बाह्य व्यास एक इंच होता है, जो घटते घटते तुँड पर १/३ इंच का हो जाता है। नली हल्की पर दृढ़ लकड़ी की बनी होती है। ऐसी लकड़ी बहुतायत से मलाया और बोर्नियो में पाई जाती है। लकड़ी ऐसी चुनी जाती है जिसमें गाँठ न हो। लकड़ी की इस नली में लोहे के आठ फुट लंबे छड़ से छेद करते हैं। छड़ के एक छोर पर काटनेवाला कोर होता है। लकड़ी की बल्ली को सीधा खड़ा रखते हैं। बल्ली पेड़ की शाखा के शिकंजे में बँधी रहती है। छेद करने के लिए दो व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है। एक व्यक्ति छेनी को बार बार बल्ली के केंद्र में रखकर धीरे धीरे घुमाता है, दूसरा व्यक्ति काठ की बल्ली में थोड़ा थोड़ा पानी देता रहता है। समस्त बल्ली में बना छेद पर्यापत चिकना होता है, तथापि उसमें बेत या खजूर के तरे से और पालिश करते हैं। बल्ली के बाह्य भाग को छीलकर आवश्यक मोटाई का और चिकना बना लेते हैं।

बोर्नियो में फूत्कार बाण में एक छोटी बरछी भी बाँधते हैं। ऐसा आक्रांत पशु के क्रोध से अपनी रक्षा के लिए करते हैं। बरछी की मार से बल्ली कुछ टेढ़ी हो जा सकती है, जिससे निशाना ठीक नहीं बैठ सकता। इस दोष के निराकरण के लिए अंतिम छोर को कुछ टेढ़ा रखते हैं ताकि बरछे की मार से वह सीधी रहे।

बाण तालकाठ का तथा आठ से लेकर दस इंच तक लंबी चिप्पी का होता है। इसका अंतिम छोर तेज धारवाला होता है। इस बाण को छीलकर धीरे धीरे कम करते हुए ऐसा बना देते है कि अंतिम छोर सिलाई की सूई सा पतला हो जाए। इसका हत्था (butt) शंक्वाकार, कोमल पिथ का लगभग आधा इंच लंबा बना होता है। यह मूल पर उतने ही विस्तार का होता है जितना बल्ली का छेद होता है। नुकीले छोर पर थोड़ी थोड़ी दूर पर लगभग चौथाई इंच कढ़ा हुआ रहता है ताकि वह सरलता से टूट जाए और विषैला अंश आक्रांत स्थान पर ही लगा, रहे। बाण के दंड को चीरकर उसमें धातु के किसी तेज त्रिकोण फल को रखकर बाँध देते हैं। इससे बाण अधिक प्रभावकारी हो जाता है।

बाण का विष स्ट्रकनोस या ऐंटियेरिस (Antiaris) जाति के पौधों से प्राप्त होता है। बोर्निओ में इसे इपोह (Ipoh) नामक पेड़ के रस से प्राप्त करते हैं। यह रस पीले श्वेत रंग का तथा कड़वे स्वाद का होता है। वायु में यह पांडुवर्ण का हो जाता है। विषैला अंश ग्लाइकोसाइड होता है, जो हृदय, पेशी और केंद्रीय तंत्रिका को आक्रांत करता है। पेड़ की छाल को छेदकर रस प्राप्त करते और धीरे धीरे आग पर सुखाते हैं, जिससे वह काला और सांद्र हो जाता है। प्रयुक्त करते समय उसे गरम पानी से मुलायम बनाकर, बाणों पर लेप चढ़ाकर, फिर आग पर सुखा लेते हैं। पेड़ से रस निकालने पर प्राय: दो मास तक इसकी विषाक्तता बनी रहती है।