फुफ्फुसावरणशोथ (Pleurisy) इसमें फुफ्फुसावरण में शोथ उत्पन्न हो जाता है। फुफ्फुसावरण शोथ के निम्नलिखित प्रकार हैं:

(१)�� शुष्क फुफ्फुसावरण शोथ - इसमें केवल फुफ्फुसावरण शोथ होता है।

(२)�� आर्द्र फुफ्फुसावरण शोथ - इसमें फुफ्फुसावरण के दोनों स्तरों के शोथ के साथ साथ फुफ्फुसावरण गुहा में तरल पदार्थ का संचय हो जाता है।

(३)�� एंपाइमा (Empyema) - इसमें फुफ्फुसावरण गुहा में संचित तरह पदार्थ पूययुक्त हो जाता है।

रोग उत्पत्ति के कारण - यह रोग मुख्यत: सर्दी लगने तथा टी.बी., न्यूमोनिया, फुफ्फुस के अर्बुद, ब्रांकिऐक्टैसिस (bronchiactasis), आमवांतिक (rhaumatic) उपसर्ग, आंत्रिक ज्वर, फुफ्फुस विद्रधि (lung abscess) एवं कोथ (gangrene) के कारण तथा वक्ष में किसी भी प्रकार का आघात लगने से होता है।

लक्षण - रोगी की एकाएक वक्ष के आक्रांत भाग में शूल होता है, जो श्वास की गति के साथ तथा खाँसी एवं छींक से तीव्रतर हो जाता है। शुष्क फुफ्फुसावरण शोथ में शूल फुफ्फुसावरण के दोनों शोथयुक्त स्तरों के आपस में रगड़ के कारण होता है। कभी कभी शूल शोथयुक्त पार्श्व के कंधे, गर्दन, पीठ, पेट इत्यादि, स्थानों पर भी होता है। इस रोग में सूखी, एवं कष्टप्रद खाँसी आती है तथा बलगम बहुत कष्ट से निकलता है। ज्वर १०१रू या १०२रू फा. तक हो जाता है। वक्ष के विकृत पार्श्व की गति श्वास क्रिया के समय कम होती है तथा रोगी उसी भाग को दबाए उसी करवट पड़ा दिखाई देता है, साथ ही देखने में वह भाग दूसरे की अपेक्षा शोथयुक्त प्रतीत होता है। जैसे जैसे रोग की उग्रता बढ़ती है उसी के अनुसार रोगी का श्वासकष्ट भी बढ़ता जाता है। परिताड़न क्रिया (percussion) में शुष्क फुफ्फुसावरण शोथ के अंदर विकृत पार्श्व अनुनादी रहता है तथा परिश्रवण (auscultation) से विकृत स्थान में वायु का संचार कम मिलता है। इसी प्रकार आर्द्र फुफ्फुसावरण शोथ में परिताड़न क्रिया से तरल पदार्थ के स्तर से ऊपर का भाग अनुनादा (resonant) रहता है तथा उसके नीचे तरल पदार्थ से युक्त स्थान मंद (dull) रहता है। ठीक इसी प्रकार परिश्रवण में तरल पदार्थ के ऊपर के भाग में श्वासनध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है, परंतु नीचे के तरल भाग में नहीं सुनाई देती। एंपाइमा के लक्षण आद्र फुफ्फुसावरण शोथ के समान ही होते हैं, केवल रोगी में विषाभक्ता के लक्षण अधिक होते हैं। रुग्ण पार्श्व का भाग शोथयुक्त प्रतीत होता है तथा उक्त भाग की गर्दन की रक्तवाहिनियों में स्पंदन मिलता है। हाथ की अँगुलियों के नाखून के पास का भाग शोथयुक्त होता है तथा बराबर दुर्गंधमय श्वास आती है।

उपचार - इसमें रोग के कारणों को दूर करते है तथा सूची वेध द्वारा फुफ्फुसावरण से तरल पदार्थ एवं पूय निकालते हैं। (प्रियकुमार चौबे)