फ़ुज़ूली तुर्की का प्रसिद्ध कवि है। इसका वास्तविक नाम मुहम्मद था पर इसने अपने शेरों में अपने आपको फ़ुज़ूली कहा है और अब इसी नाम से अधिक प्रसिद्ध है। यह बगदाद के पास हिल्लत: या करबला में पैदा हुआ था और इसे ईराक़ से बाहर जाने का कभी अवसर नहीं मिला। तब भी इसने अनेक विद्याओं में योग्यता प्राप्त कर ली थी। फ़ुज़ूली शीआ धर्म का अनुयायी था और नजफ़ में हजरत अली की दरगाह का बहुत समय तक सज्जादनशीन (स्थविर) था, जहाँ से इसे कालयापन के लिए वृत्ति मिला करती थी, पर यह किसी अज्ञात कारण से बाद में बंद हो गई। इसी समय से यह आर्थिक कष्ट में पड़ गया। ईरान के सफवियों का ईराक पर अधिकार हो जाने के अनंतर फ़ुज़ूली शाह इस्माइल, अन्य सफबी मंत्रियों तथा उच्च पदाधिकारियों की सेवा में अपनी कविताएँ उपस्थित किया करता था। इसके अनंतर बुरादाद पर उस्मानी तुर्कों का अधिकार होने पर इसने सुलतान सुलेमान आज़म और दूसरे उच्च पदाधिकारियों की सेवा में अपनी कविता उपस्थित करना आरंभ कर दिया। किंतु इसकी आर्थिक परिस्थिति पहले ही जैसी बनी रही और जीवन के बचे हुए दिन दरिद्रता ही में काटने पड़े।

फ़ुज़ूली अरबी तथा फारसी भाषाओं का विद्वान् था और छोटी अवस्था ही से इसकी रुचि कविता की ओर हो गई थी। आरंभ में यह फारसी तथा अरबी भाषाओं में कविता किया करता था पर बाद में तुर्की भाषा में भी इसने कविता करना आरंभ कर दिया। इसने इन तीनों भाषाओं में अलग अलग अपने दीवान प्रस्तुत कर लिए थे। इसका संबंध बैयात नामक तुर्की कबीले से था। संभवत: इसी कारण इसकी तुर्की कविता की भाषा कुस्तुंतुनिया की भाषा से कुछ भिन्न थी। इसने अपनी कविता में तुर्की भाषा का 'आज़री लहज:' (प्रेम का ढंग) प्रयुक्त किया और इसकी कविता की शैली भी ईरानी है। इसने दीवान के सिवा एक मसनवी लैला मजनूँ भी लिखी है। इन दोनों रचनाओं से तुर्की साहित्येतिहास में इसके लिए एक विशेष स्थान बना दिया है। इसके शेरों में विशेष कर लौकिक प्रेम के स्थान पर दैवी प्रेम अधिक है जो संभवत: इसके सूफी विचारों की कृपा है। इसका फारसी, तुर्की तथा अरबी गद्य काफी सादा है परंतु कसीदों में इसने काव्यकौशल तथा बनावट से काम लिया है।

सं.ग्रं. - ई.जी.डब्ल्यू. गिब : ए हिस्ट्री ऑव औटोमन पोएट्री; एस. लेनपूल तुर्की; एन. येसिरगिल : फ़ुज़ूली (इसतंबोल, १९५२); ए. करबाल : फुजूली (इसंत बोल, १९४९) (अमजद अली.)