फ़िरदौसी (अबुल क़ासिम) का जन्म ९२० ई. में खुरासान के तूस नामक कस्बे में हुआ। असदी नामक कवि ने उसे शिक्षा दी और कविता की ओर प्रेरित किया। उसने ईरान के पौराणिक राजाओं के संबंध में उसे एक ग्रंथ दिया जिसके आधार पर फ़िरदौसी ने शाहनामे की रचना की। इसमें ६०,००० शेर हैं। वह ३५ वर्ष तक इस महान् कार्य में व्यस्त रहा और २५ फरवरी, १०१० ई. को इसे पूरा किया। इस समय वह ८५ वर्ष का हो चुका था। उसने यह काव्य सुल्तान महमूद ग़्ज़ानवी को समर्पित किया जिसने ९९९ ई. में खुरासान विजय कर लिया था। उसे केवल २० हजार दिरहम प्रदान किए गए। फ़िरदौसी के तन बदन में आग लग गई। वह अपने देश से हिरात की ओर भागा किंतु भागने से पूर्व एक कविता शाहनामे में जोड़ गया, जिसमें सुल्तान महमूद की घोर निंदा की गई है। शाहनामे में फ़िरदौसी ने ईरान के पौराणिक बादशाहों की, जिनके कारनामों से वह अत्यधिक प्रभावित था, बड़ी की प्रशंसा की है। उसकी कविता से प्राचीन ईरान के प्रति उसका प्रेम एवं अरबों के प्रति घृणा का पूरा आभास मिलता है। सभवत: कट्टर मुसलमानों को संतुष्ट करने के लिए उसने बाद में युसुफ़ जुलैखा नामक मसनवी लिखी जिसे बवहिद शासक बहाउद्दौला तथा उसके पुत्र सुल्तानुद्दौला को समर्पित किया। तदुपरांत वह अपनी मातृभूमि तूस लौट आया और वहीं उसकी मृत्यु हुई (४११ हि. १०२०-२१ ई.)। उसकी क़ब्र ईरान के दर्शनीय स्थानों में है। कहा जाता है, जब उसका जनाज़ा पास के एक गाँव के फाटक से निकल रहा था, एक कारवाँ सुल्तान महमूद के भेजे हुए ६०,००० दीनार लेकर पहुँचा जिनकी कवि को आशा थी। फ़िरदौसी की पुत्री ने समस्त धन, दान पुण्य में लगा दिया। शाहनामा की बड़ी ही सुंदर सचित्र हस्तलिपियाँ संसार के बड़े बड़े संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। १८११ ई. में कलकत्ते में १८७८ ई. में पेरिस से और १८७७-१८८५ ई. के बीच लाइडेन से इसके संस्करण प्रकाशित हुए। तदुपरांत भारत और ईरान से अनेक संस्करण प्रकाशित हुए। संसार की अनेक भाषाओं में इसके अनुवाद छप चुके हैं।

सं. ग्रं.-(फारसी) निज़ामी अखज़ी समरक़ंदी : चहार मक़ाला; मुहम्मद औफ़ी : लुब्बुल अल्बाब; दौलतशाह समरक़ंदी : तज़किर तुश्शुअरा; ब्राउन, ई. जी. : ए लिट्रेरी हिस्ट्री ऑव पर्शिया; ए. जे. आरबरी : क्लासिकल पर्शियन लिट्रेचर। (सैयद अतहर अब्बास रिज़वी)