फिदाई खाँ मुगल सम्राट् जहाँगीर का हिदायतउल्ला नामक एक सेवक। इसके अन्य तीन भाई भी जहाँगीर के कृपापात्र थे। हिदायतउल्ला प्रारंभ में नाव बेड़े का निरीक्षक नियुक्त हुआ। महाबत खाँ के विद्रोह में इसने स्वामिभक्ति का सुंदर उदाहरण रखा। झेलम नदी के तट पर इसने विद्रोहियों के दाँत खट्टे कर दिए।

कालांतर में यह बंगाल का शासक इस शर्त पर नियुक्त हुआ, कि दस लाख रुपया प्रति वर्ष भेंट स्वरूप राजकोष में जमा करता रहे। शाहजहाँ के शासनकाल में इसकी प्रतिभा बढ़ती रही। इसका मंसब चारहजारी-३००० सवार का था। इसे जौनपुर की जागीर मिली, और गोरखपुर का फौजदार नियुक्त हुआ। इसके बंगाल के शासनकाल में कुछ लोगों ने इसके विरुद्ध सम्राट् से न्यायिक माँग की किंतु शाहजहाँ इसपर कृपालु ही रहा। इसकी वीरता और दूरदर्शिता के लिए, मुगल दरबार से इसे फिदाई खाँ और जान निसार खाँ की उपाधियाँ प्राप्त थीं।

एक अन्य फिदाई खाँ को भी जिसका वास्तविक नाम मीरजरीफ था, और जो शाहजहाँ के सेवकों में से था, अच्छी सेवाओं के लिए एकहजारी-२०० सवारों का मंसब और फिदाई खाँ की उपाधि प्राप्त हुई थी।

तीसरा फिदाई खाँ सम्राट् औरंगजेब की सेवा में था। इसका पूरा नाम फिदाई खाँ मोहम्मद सालह था। इसे भी फिदाई खाँ की उपाधि मिली थी। यह बरेली, ग्वालियर, आगरा और दरभंगा में फौजदार रहा था। इसका मंसब तीन हजारी-२५०० का था।