फ़ानी, शौकत अली खाँ का जन्म बदायूँ में १३ दिसंबर, सन् १८७९ ई. को हुआ। आरंभि शिक्षा इन्होंने बदायूँ में प्राप्त की। बचपन से ही यह छिप्कर शेर कहने लगे थे। इन्होंने ग़्ज़ालों के तीन दीवान प्रस्तुत किए थे, जिनमें एक फारसी का तथा दो उर्दू के थे। इन्होंने दो नाटक भी लिखे थे। परंतु यह इन रचनाओं की ओर से प्रकृत्या ऐसे बेपरवाह तथा उदासीन रहे कि सारा संग्रह नष्ट हो गया। जो कुछ ग़्ज़ालें इनके हितैषियों ने संग्रहीत कर रखी थीं वे ही 'ईफ़ानियाते फ़ानी' के नाम से छपा। फ़ानी ने लखनऊ, आगरा तथा बदायूँ कई स्थानों में वकालत की, पर कविता की ओर रुचि होने के कारण इनका मन किसी काम में नहीं लगता था। अंतिम काल में यह हैदराबाद चले गए और वहीं सन् १९३० ई. में इनकी मृत्यु हो गई।
फ़ानी की कविता में वेदना तथा शोक ही का चित्रण है और उसे पढ़कर कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। कुछ लोगों का कहना है कि फ़ानी की कविता के पाठकों हृदयों पर निराशा का भाव छा जाता है। इसलिए इसे प्रतिक्रियावादी कहना चाहिए। इन्होंने जो कुछ लिखा है उसे अच्छी प्रकार अनुभूत करके इतने सुंदर ढंग से लिखा है कि उन्हें एक बड़ा कवि तथा उत्कृष्ट ग़्ज़ाल गायक मानना पड़ता है। ग़ालिब सी उच्चता तथा गंभीरता, मीर सी वेदना तथा चोट और मोमिन सी सरलता फ़ानी की कविता में अच्छी प्रकार घुली मिली हैं। प्रेम तथा सूफी भाव इनकी एक विशेषता है। (रजिया सज्जाद जहीन)