फ़ातिमी ख़िलाफ़त इस्माइली शियाओं ने, जिनका विश्वास था कि दैवी आत्मा इमाम के, जो इमाम जफ़र सादिक के पुत्र इस्माइल के वंश का था, रूप में अवतरित हुई थी, अबासिस के रूढ़िवादी सुन्नी खलीफ़ाओं के विरुद्ध 'फ़ातिमी खिलाफ़त' के नाम से एक संगठन का निर्माण किया। किंतु अधितर मुस्लिम जनता सुन्नी थी, जिनका विश्वास अत्यंत दृढ़ था, इसलिए फ़ातिमी खलीफाओं-इस्माइली शिया वर्ग ने उदारता की नीति अपनाई।
९०९ हिजरी में एक इस्माइली धर्मप्रचारक अबू अब्दुल्ला ने काइरावाँ (ट्रिपोली और ट्यूनिस) के अग़्लााबी राजवंश को समाप्त कर दिया, और अपने स्वामी माहदी उबैदुल्ला को राज्य नियंत्रित करने के लिए बुलवाया। उबैदुल्ला ने अपने को सच्चा इमाम घोषित कर दिया, किंतु उसी समय इसने अबू अब्दुल्ला की हत्या कर दी और शनै: शनै: अपने संप्रदाय के धर्मांध सिद्धांतों का परित्याग करने लगा। उसे विशेष कठिनाई 'जिरामतियों' से हुई जो फ़ातिमियों को अपना इमाम मानते हुए भी संप्रदाय को हानि पहुँचा रहे थे। ९२९ हि. में उन लोगों ने मक्का पर आक्रमण किया, तीर्थयात्रियों को मार डाला, पवित्र काला पत्थ्थर उठा ले गए, और माहदी के प्रकाशित आज्ञापत्र के बावजूद उसकी मृत्यु के ७-८ वर्ष बद तक उसे नहीं लौटाया। उसके पश्चात् क्रमश: १३ उत्तराधिकारी हुए। प्रारंभिक फ़ातिमियों की सफलता का मुख्य कारण, उनकी सुंदर शासनव्यवस्था थी।
चतुर्थ ख़लीफ़ा 'मुइज' (९५३-९७५) के नेतृत्व में फ़ातिमियों ने संपूर्ण उत्तरी अफ्रीका पर अपना अधिकार जमा लिया। इदरीशिज़ियों से मोरक्को छीन लिया गया। फ़ातिमी सेनापति 'जौहर' ने फ़स्ताब (प्राचीन काहिरा) पर अधिकार कर लिया और 'मुइज़' ने अपनी नई राजधानी 'ज़ाहिरा' का निर्माण किया, उसी के समीप अल अजहर नामकी प्रसिद्ध मस्जिद बनवाई। सीरिया सदैव फ़ातिमी और अब्बासी खलीफाओं के मध्य विवाद का विषय रहा।
छठे खलीफा हकीम (९३६-१०२१) के असंगत कार्यों का कारण उसकी मानसिक विक्षिप्तता थी। उसने ईसाइयों और यहूदियों के पूजास्थानों को पूर्णतया नष्ट कर देने का आदेश दे दिया, किंतु उन्हें उच्च पदों पर नियुक्त करना भी जारी रखा, और कुछ समय पश्चात् उन्हें पूजास्थानों के पुनर्निर्माण की स्वीकृति दे दी। उसने कुत्तों तथा कुछ शाकों, जैसे प्याज और लहसुन, के समूलोच्छेदन का अभियान चलाया। उसने पहले, तीन प्रथम पवित्र सुन्नी खलीफ़ाओं के विरुद्ध तिरस्कारपूर्ण शिलालेख खुदवाने की आज्ञा दी, किंतु बाद में उनको नष्ट करवा दिया। १०१६ की क्रांति में किसी प्रकार उसने अपने को बचा लिया, और कुछ दिन संयत रूप में व्यवहसर किया। किंतु हकीम दूसरों को निर्दयता से पीड़ित करने ें आनंद प्राप्त करता था। १०२० में उसने अपने सैनिकों को काहिरा को, जो उस समय अत्यंत समृद्ध और संपन्न नगर था, नष्ट करने की आज्ञा दी और हकीम की इस कार्य के लए निषेधात्मक आज्ञा होने के पूर्व आधा नगर लूट लिया गया, तथा लगभग एक तिहाई भाग जल चुका था। तत्पश्चात् वह संभवत: रात को अकेले गधे पर चढ़कर घूमते हुए, जैसी उसकी आदत थी, मार डाला गया। किंतु उसका शव प्राप्त न हो सका, इसलिए उसके अनुयाइयों ने यह प्रचार किया कि वह एक सच्चे 'इमाम' की तरह अंतर्धान हो गया।
नवें खलीफा मुस्तांसिर (१०३५-१०९५) के लंबे शासनकाल के अंतर्गत राज्य के टुकड़े हो गए। ट्रिपोली और ट्यूनिस के शासक ने अब्बासियों का पक्ष करने की घोषणा कर दी, और फ़ातिमियों का साम्राज्य केवल मिस्र और सीरिया के कुछ भग तक ही सीमित रह गया।
बाद के खलीफाओं के समय की राज्यक्रांतियों का विवरण यहाँ विस्तार से नहीं दिया जा सकता। दो फ़ातिमी खलीफाओं की हत्या कर दी गई, और दूसरे मंत्रियों द्वारा बंदी बना लिए गए। अंत में सीरिया के तुर्क शासक नूरुद्दीन ने अपने सेनापति शिरकूह तथा उसके भतीजे और अयूब के पुत्र सलाहुद्दीन को मिस्र विजय के लिए भेजा। फ़ातिमी सेना हार गई और शिरकूह सारी शक्तियों के अधिकार के साथ मंत्री (वजीर) नियुक्त हुआ। दो महीने के पश्चात् शिरकूह मर गया; सलाहुद्दीन उसका उत्तराधिकारी नियुक्त हुआ। दो वर्ष के पश्चात् नूरुद्दीन ने इस आशय का आदेश जारी किया कि 'जुमा' की प्रार्थनाएँ अब्बासी खलीफाओं के नाम से पढ़ी जानी चाहिए। अंतिम फ़ातिमी खलीफा अल अदीद (११६०-११७१) शीघ्र ही मर गया। इस्माइलवाद के सारे प्रभाव देश से समाप्त हो गए। फ़ातिमी खलीफाओं की वंशावली सदैव विवाद का विषय रही है और वर्तमान युग में भी विवाद का समाधान नहीं हो सका है। (मोहम्मद हबीब)