फलन (Function) शब्द का गणित में अर्थ
वह व्यंजक (expession), नियम अथवा विधि आदेश
(rule) है जिसके अनुसार एक चर (variable) द्वारा, जिसे स्वतंत्र चर (independent
variable or argument of the function) कहते हैं, ग्रहण किए
हुए प्रत्यक मान के संगत एक दूसरे चर के, जिसे परतंत्र (dependent) चर कहते हैं, एक या अधिक मान मिल जाते
हैं। उदाहरणत: 2x2-3x+1 तथा sin
x3 स्वतंत्र चर x के फलन हैं। x
के एक फलन
की यह कहकर भी परिभाषा दी जा सकती है कि यदि x परिमेय (rational)
है, तो फलन का मान शून्य है और यदिश् x
अपरिमेय है तो फलन का मान श्है। स्वतंत्र
चर द्वारा ग्रहण किए हुए मानसमुदाय को फलन का प्रभावक्षेत्र
(domain) और परतंत्र चर के
संगत मानसमुदाय को परास (range) कहते हैं। यदि प्रभावक्षेत्र
के प्रत्यक मान के संगत परास का केवल एक ही मान हो, तो फलन
को एकमान (one valued)
कहते हैं; किंतु यदि प्रभावक्षेत्र के कुछ या सभी मानों में से प्रत्यक
के संगत परास के एक से अधिक मान हों, तो फलन को बहुमान
फलन कहते हैं। आधुनिक शुद्ध गणित में फलन की परिभाषा में
केवल एकमान फलनों का ही समावेश होता है जो इस प्रकार
है : दो समुदायों अथवा समुच्चयों (sets) A और B पर
विचार कीजिए। A से B पर
फलन f जिसे f
: A�B लिखतेश् हैं वह
संबंध है, जिसके अनुसार संबंध का प्रभावक्षेत्र संपूर्ण समुच्चय A है और A
के एक या अधिक सदस्यों (या अवयवों) के संगत B का अद्वितीय सदस्य होता है। A
से B का संबंध R,
जिसे A R B लिखते हैं A
और B के कार्तीय गुणनफल का
जिसे A�B लिखते हैं, एक उपसमुच्चय
(subset) है। कार्तीय गुणनफल
A�B उन सभी क्रमित युगमों
(ordered pair) (a, b) का समुच्चय है, जिसमें a, A का सदस्य है और b,
B का का सदस्य है। प्रतीक f
(x) का प्रयोग B
के सदस्य को सूचित करने के लिए किया जाता है जो A के सदस्य x का संगत है। इस प्रकार
A के एक से अधिक सदस्यों का प्रतिबिंब (image) B का एक ही सदस्य हो सकता
है, किंतु ऐसा विलोमत: नहीं होता, अर्थात् B
के सदस्यों का प्रतिबिंब A का केवल एक सदस्य नहीं
होता। प्रतिबिंब समुच्चय का, जो स्पष्टत: B
का उपसमुच्चय है, फलन का परास कहते हैं।
मैंपिग और संगतता शब्द
भी फलन के समानार्थी हैं। A से B
पर मैंपिंग f तब ऑन्टू (onto)
कहलाता है जब B का प्रत्येक सदस्य A के किसी एक अथवा कुछ सदस्यों का प्रतिबिंब
हो और उसे f : �लिखते हैं। A
से B पर मैंपिग f
यदि ऑन्टू न हो तो उसे इन्टू कहते हैं और f :
�B लिखते हैं।
A से B पर मैंपिग f
को एक एक ऑन्टू तब कहते हैं जब A के प्रत्येक सदस्य का B में प्रतिबिंब हो तथा B
का प्रत्येक सदस्य A के किसी सदस्य का प्रतिबिंब
हो और इसे f :
श्लिखते
हैं। इसी प्रकार A से B पर मैपिंग f
तब एक एक इंटू कहलाता है जब A के प्रत्येक सदस्य का B में प्रतिबिंब हो और इसे f :
�लिखते हैं। शुद्ध गणित
की कुछ पीठिकाओं में ऐसी परंपरा है कि मैपिग f
को तब एकैक कहते हैं जब वह एक साथ एकैक और ऑन्टू हो।
फलन की परिभाषा के इस संशोधन के बावजूद चिरप्रतिष्ठित
परिभाषा को अब भी इस कारण स्वीकृत किया जाता है कि गणितीय
अनुप्रयोगों में बहुमान फलन बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।
फलनों के प्रकार
(१) बहुपद - यदि f (x) कर रूप
ao xn+a1 xn-1+...+an-1 x+an
हो, जहाँ n कोई धनात्मक पूर्णांक है और ao, a1,..., an अचर हैं तथा ao�o, तो �f (x) में बहुपद (polynomial), अथवा x का परिमेय पूर्णांकी फलन (rational integral function) कहते हैं।
(२) परिमेय फलन - यदि f (x) को दो बहुपदों के अनुपात के रूप में व्यक्त किया जा सके, तो उसे परिमेय फलन कहते हैं, जैसे
(३) अपरिमेय फलन - जिन फलनों में करणियां (surds) होती हैं उन्हें अपरिमेय फलन कहते हैं, जैसे � (x2+x+1) +3x.
(४) बीजीय फलन - यदि y = f (x) और x में संबंध निम्नलिखित रूप में प्रकट किया जा सके।
Po (x) yn+P1 (x) yn-1+...+Pn-1(x)y+Pn(x) = o, जहाँ n कोई धनात्मक पूर्णांक है और Po (x), P1 (x),...P (x) सभी x के बहुपद हैं, तो y को x का बीजीय फलन (algebraic function) कहते हैं।
(५) बीजातीत फलन - जो फलन बीजीय नहीं होते, अबीजीय फलन (Transcendental functions) कहलाते हैं, जैसे sinx1 log x इत्यादि। प्रारंभिक फलन अबीजीय फलनों के सरल उदाहरण हैं।
(६) स्पष्ट और अस्पष्ट फलन - यदि y और x के संबंध को सरलता से y = f (x) के रूप में प्रकट किया जा से, तो y को x का स्पष्ट कहते हैं, अन्यथा y को x का अस्पष्ट फलन कहते हैं और तब x तथा y के संबंध को �(x, y) = o के रूप में प्रकट करते हैं।
(७) प्रारंभिक फलन - जिस प्रकार के फलनों का ऊपर विवेचन किया गया है उनको दीर्घवृत्तीय (elliptic), बीटा (beta), गामा (gamma) आदि, उच्चतर अबीजीय फलनों से पृथक् करने के लिए, प्रारंभिक फलन (elementary function) कहते हैं।
यदि वह संबंध, जो y को x के फलन रूप में व्यक्त
करता है, y = f (x) हो, तो उस संबंध को
जो x को y
के फलन रूप में व्यक्त करता है, f (x) का प्रतिलोम फलन (inverse
function) कहते हैं। प्रतिलोम फलन को प्राय:
x = f -
1 (y) के रूप में लिखते हैं।
y = x2, x = �एक प्रतिलोम फलनयुग्म
का उदाहरण है।
यह बात ध्यान देने की है कि आधुनिक शुद्ध गणित में केवल एकैक मैपिंग में ही प्रतिलोम मैपिंग की संभावना रहती है।
अब तक कम से कम चिरप्रतिष्ठित परिभाषनुसार केवल एक वास्तविक चर के फलनों का विवेचन किया गया है। कई एक वास्तविक चरों के भी फलनों की कल्पना संभव है। फिर, कम से कम प्रारंभिक रूप के संमिश्र चर (complex variable) के फलनों की भी कल्पना की जा सकती है। संमिश्र चर को x = u + i v के रूप में लिखने पर मान लें f (x) = P (u, v) + i Q (u, v), जहाँ P (u, v) तथा Q (u, v) दो वास्तविक चरों u, v के फलन हैं। संमिश्र फलनों के अनुप्रयोग बहुत हैं (देखें द्रव बलविज्ञान)।
फलन का ज्यामितीय निरूपण - एक चर के वास्तविक मानवाले फलन का आलेख इस प्रकार खींचा जा सकता है कि स्वतंत्र चर x को एक ऋजु रेखा के अनुदिश संख्या मापनी के अनुकूल अंकित कर लिया जाय और उसके लंब Y-अक्ष के अनुदिश परंतत्र चर y को अंकित किया जाय। किंतु संमिश्र चर के फलनों के निरूपण में दो समतलों की संगतता काम आती है, क्योंकि संमिश्र संख्या सामान्यतया समतल के बिंदु द्वारा निरूपित की जाती है। इस कारण निरूपण इतना सुस्पष्ट नहीं हो पाता जितना वास्तविक मानवाले फलनों में।
इतिहास - बहुत समय पहले, सन् १६३७ में ही, देकार्त ने वैश्लेषिक ज्यामिति पर अपनी कृति प्रकाशित की और ऐसे भी व्यक्ति हैं जो इसमें से फलन सिद्धांत (Theory of Function) का विकास प्रस्फुटित होते देखते हैं; किंतु फलन शब्द सर्वप्रथम सन् १६९४ में लाइप्निट्स (Leibnitz) की रचनाओं में प्रकट हुआ। लेनर्ड आइलर (L. Euler) ने सन् १७३४ में पहली बार प्रतीक f (x) का प्रयोग किया। फलन के विकास का श्रेय बहुत कुछ लाग्रांज़, फ़ूर्यें (Fourier), डीरिक्ले (Dirichlet) आदि गणितज्ञों को है। बाद को फलन सिद्धांत दृढ़ आधार पर स्थापित करने का श्रेय ऑगास्टिन लुई कोशी, जॉर्ज रीमाँ और कार्ल वायस्ट्रसि (सन् १८१५-९७) आदि को है। इस संबंध में जार्ज केंटर (सन् १८४५-१९१८) का नाम भी उल्लेखनीय है। इन्होंने समूह सिद्धांत (Theory of Aggregates) का प्रतिपादन किया और इसके आधार पर फलन सिद्धांत को और भी सुदृढ़ता मिल सकी।
सीमा
की संकल्पना - फलन f (x) को, x
के किसी मान
c की ओर अग्रसर होने पर,
सीमा (limit) L तब कहां जाता है जब
हरेक धन छोटी से छोटी संख्या � के दिए रहने पर एक ऐसी धन संख्या
d का अस्तित्व हो कि यदि
| x-c | <d तो {f (x) - L | <�; इस तथ्य की संक्षेप
लिपि के लिए संकेतन �(x)
= L प्रयुक्त किया जा सकता
है। यह बात समझ लेनी चाहिए कि यदि c पर फलन का मान f (c) है, तो इस मान की
सीमा L के अस्तित्व, या स्वयं उस
सीमा मान से कुछ संबंध नहीं; उदाहरणतया, यदि f
(x) = x sin (1/x), तो f
(o) अर्थहीन है, जबकि
sin
(1/x) = o।
सांतत्य - फलन f (x) को x = c पर उस दशा में संतत (continuous) कहा जाता है जब lim f (x) = f (c)। फलन जिस बिंदु पर संतत नहीं होता, वहाँ वह असंतत कहलाता है। असांतत्य निम्न रूपों में उत्पन्न हो सकता है :
(i) �(x) अस्तित्वहीन है, (ii)
�(x) अस्तित्वमय है, किंतु
उसका मान f (c) के बराबर नहीं। (i) वाले असांतत्य को अनपनेय (irremovable) असांतत्य कहते हैं, जब कि (ii)
को अपनेय (removable) असांतत्य कहते हैं, क्योंकि
इस स्थिति में विचारणीय बिंदु पर फलन को उपयुक्त मान देकर
फलन को संतत बनाया जा सकता है।
अवकलन
और समाकलन - फलन f (x) के व्युत्पन्न या अवकलज
f (x) की परिभाषा {f(x+h)
- f (x)} /h से दी जाती है१ किसी बिंदु c पर व्युत्पादय (derivable) होने के लिए आवश्यक
है कि f (x) बिंदु पर संतत हो,
किंतु यह प्रतिबंध व्युत्पादन के लिए पर्याप्त नहीं है। वायर्स्ट्रास
ने एक ऐसे फलन का उदाहरण दिया जो सभी बिंदुओं पर संतत
है, किंतु कहीं भी व्युत्पादय, अर्थात् अवकलनीय (differentiable),
xɽ��* �ɽ� ���x�
����, Vɽ���
b एक विषम संख्या है, o<a<1, जहाँ b एक विष संख्या है, o<a<1 और ab > 1 +
p, यदि g� (x) = f (x),
तो फलन g (x) को f (x)
का समाकल (integral) कहते हैं। समाकल को
प्रतिव्युत्पन्न (antiderivative), अनिश्चित समाकल या
पूर्वग (primitive) फलन भी कहते हैं। समाकलन
को अवकलन की विपरीत क्रिया कहते हैं। अवकलन क्रिया समाकलन
क्रिया के पहले होती प्रतीत होती है, किंतु बात उलटी है। कुछ
विशिष्ट प्रकार की अनंत श्रेणयों के योग और किसी वक्र तथा दो
कोटियों (ordinates) से परिसीमित क्षेत्र का
क्षेत्रफल ज्ञात करने के प्रयास में समाकलन की खोज हुई। वास्तविक
चरवाले फलन के समाकल की रचनात्मक परिभाषा सबसे पहले
रीमॉन (Reimann) ने दी। मान लें f (x) अंतराल a
x
b
में परिभाषित है और इस अंतराल का कोई स्वेच्छ विभाजन
परिमत खंडों में, जिनमें दीर्घतम लंबाई L
है, किया गया है। प्रत्येक खंड Di x में स्वेच्छया कोई बिंदु
xi चुनें और मान f (xi) को उस खंड की लंबाई
से गुणा कर योगफल �f (xi) Dix लें; यहाँ खंड Dix की लंबाई संकेत Dix से ही प्रकट की गई
है। यदि L के शून्य की ओर अग्रसर
होने पर इस योग की परिमित सीमा I है, तो इस सीमा को
f (x) का निश्चित समाकल या
रीमान समाकल कहते हैं और लिखते हैं
संमिश्र चरों के फलनों
का रेखासमाकल (line integral) होता है, जिसका मान
कंटूर समाकलन (contour of integration)
पर निर्भर करता है। (x) dx कंटूर c
के अनुदिश f (x) के समाकल का प्रतीक
है।
संमिश्र
चर का वैश्लेषिक फलन -
संमिश्र चर z = (x
+ iy) का फलन f (z) बिंदु zo पर तब संतत है जब z
को zo के पर्याप्त समीप लेकर
|f(z) -f (zo)|
को कितनी भी लघु निर्दिष्ट धन संख्या � से छोटा बनाया जा सके, अर्थात् � के दिए रहने पर ऐसी
संख्या d चुनी जा सके कि [f
(z) -f (zo)
<� जब कि |z-zo|<d फलन f
(z) बिंदु zo पर तब अवकलनीय या वैश्लेषिक (analytic)
��� Vɤ� �{f(z)-f(zo)}/(z-zo) अस्तित्वमय और कोई
परिमित संख्या (भले ही संमिश्र) हो। यदि f
(z) = u (x,y) + i v (x, y), जहाँ
u और v
दोनों x, y के वास्तविक फलन हैं,
तो f (z) के अवकलनीय होने
के लिए आवश्यक है कि
�+��
�
किंतु अवकलनीय होने का पर्याप्त प्रतिबंध यह है कि इन संबंधों के संतुष्ट होने के अतिरिक्त खंडश: अवकलज ux, uy vx, vy बिंदु (x, y) पर संतत भी हों। जो फलन किसी प्रदेश (region) के प्रत्येक बिंदु पर अवकलनीय होता है, उसे उस प्रदेश में नियमित (regular), या कभी कभी वैश्लेषिक (analytic), कहा जाता है। यदि प्रवेश के कुछ वियुक्त (isolated) बिंदुओं को छोड़ फलन अन्यत्र वैश्लेषिक हो तो ऐसे फलन को विवैश्लेषिक (meromorphic) फलन कहते हैं। ऐसे फलन कंटूर समाकलन में विशेष उपयोगी होते हैं।
सं. ग्रं. - इ. डब्लू. हॉब्सन : द थ्योरी ऑव फंक्शन ऑव ए रीयल वेरियेबिल ऐंड द थ्योरी ऑव फ़ूरिये सिरीज़ खंड १, तीसरा संस्करण (१९२६), खंड २, दूसरा संस्करण (१९२६); पी. फ्रैंकलिन : ए ट्रीटिज़ ऑन ऐडवांस्ड कैलकुलस (१९४०); शांति नारायण : ए कोर्स ऑव मैथमैटिकल ऐनलिसिस (एस चाँद ऐंड को, १९४५)। (चंद्रमोहन)