फ़र्ग्युसन, जेम्स (१८०८-१८६) डॉ. विलियम फ़र्ग्युसन के पुत्र जेम्स का जन्म २२ फरवरी, १८०८ को स्कॉटलैंड के आयर नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता सैनिक शल्यचिकित्सक थे। २७ वर्ष की उम्र में नील व्यापार के संबंध में यह भारत आए और १० वर्ष तक इस व्यापार में लगे रहे। इस काल में इन्हें इतनी आय हो गई थी यह चैन से अपना जीवन निर्वाह कर सकते थे। किंतु फिर व्यापार में कुछ घाटा हुआ और जेम्स को अपना कारोबार बंद करना पड़ा। १८३५-४२ के बीच इन्होंने भारत के विभिन्न प्राची स्थानों का भ्रमण किया और भारतीय वास्तुकला के अध्ययन में उनकी रुचि बढ़ी।

१८४५ में फर्ग्युसन भारत छोड़कर चले गए और वहाँ व्यवसाय के अतिरिक्त उनका गहन अध्ययन आरंभ हुआ। १८४० में वे रॉयल एशियाटिक सोसायटी के सदस्य बने तथा बाद में उपसभापति। व्यवसाय हेतु १८५६-५८ के काल में यह क्रिस्टल पैलेस कंपनी के प्रधान सचिव थे। १८५७ में इंग्लैंड के राजकीय सुरक्षा कमीशन की सदस्यता इन्हें प्राप्त हुई और १८६९ ई. में निर्माण विभाग के आयुक्त बने। इस पद पर रहकर इन्होंने प्राचीन इमारतों का पूर्णतया निरीक्षण किया। अपने ४० वर्ष के अध्ययन तथा निरीक्षण के फल स्वरूप इन्होंने विश्व की की स्थापत्यकला और उसके इतिहास संबंधी गवेषणात्मक ग्रंथों की रचना की। उन्होंने अपने भारतीय तथा पूर्वीं क्षेत्र के स्थापत्य अध्ययन के प्राक्कथन में लिखा कि उनके निष्कर्ष अवशेषों को स्वयं देखने और क्रमात्मक रूप में प्रस्तु करने पर आधारित हैं। १८६७ में उनका 'हिस्ट्री अॅव इंडियन ऐंड ईस्टर्न आर्किटेक्चर' प्रकाशित हुआ। इसमें अपने विचारों की पुष्टि के लिए उन्होंने बहुत से चित्र दिए हैं। लगभग ३००० चित्रों का पूर्णतया अध्ययन कर उन स्थानों को देखकर, तथा विभिन्न कलाकृतियों की समानता दिखाते हुए उन्होंने यह ग्रंथ लिखा जिसके तीन प्रकाशन हो चुके हैं। कनिंघम यह पुरातत्व तथा स्थापत्य का अद्वितीय ग्रंथ था। 'केव टेंपुल्स' युग में नाक दूसरा बड़ा ग्रंथ हैं। फर्ग्युसन ने प्रचीन भारतीय विचारधाराओं को निश्चित रूप देकर उनका गूढ़ अध्ययन किया। उनका 'ट्री ऐंड सर्पेंट वर्शिप (वृक्ष तथा नाग पूजा) भी अद्वितीय ग्रंथ है। इसमें इस धार्मिक जन विचारधारा का प्रवाह विश्व के विभिन्न कोनों और देशों में खोजा गया है। स्थापत्य कला पर जिन अन्य ग्रंथों की उन्होंने रचना की उनमें निम्न उल्लेखनीय हैं-'ए हैंडबुक ऑव आर्किटेक्चर,' 'ए हिस्ट्री ऑव मॉडर्न स्टाइल्स ऑव आर्किटेक्चर', 'ए हिस्ट्री ऑव आर्किटेक्चर इन ऑल कंट्रीज' इत्यादि। इंसाइक्लोपीडिया, ऑव रिलिजन ऐंड एथिक्स' में भी इनके कई लेख प्रकाशित हैं, जिनमें मुख्यतया 'आव अजंता' आर्किटेक्चर ऑव टेंपुल्स; फतहपुर सिकरी, मथुरा, जगन्नाथ, जामा मस्जिद, क़ुतुब मीनार, कांचीपुरम्, तंजोर इत्यादि हैं।

अपने अध्ययन तथा भारतीय कला के अन्वेषण के आधार पर इंग्लैड के इंस्टीच्यूट ऑव ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स की ओर से फर्ग्युसन को स्वर्णपदक देकर सम्मानित किया गया। जनवरी ९, १८८६ में ७८ वर्ष की उम्र में इनका लंदन में देहांत हो गया।

सं. ग्रं. - डिक्शनरी ऑव इंडियन बायोग्राफी। (बैजनाथ पुरी)