फरीद (प्रथम) दे. 'फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर'।

२ फरीद सानी या द्वितीय (१४५०, ५७२ ई.) का असली नाम दीवान इब्राहीम साहब किबरा था। शेख फरीद, सलीम फरीद, शाह ब्रह्म आदि इनके उपाधि नाम थे। ये गुरुनानक के समकालीन और फरीद शकरगंज की शिष्यपरंपरा में १२वीं पीढ़ी में हुए हैं। मैकलिफ दि सिक्ख रिलिजन, भाग ६, पृ. ३५६-३५७ के अनुसार 'आदि ग्रंथ' में संगृहीत ४ पद और १३० सलोक इन्हीं फरीद सानी के हैं। वर्तमान सिक्ख इतिहासकार पंजाबी साहित्य को अधिक प्राचीन सिद्ध करने के लिए इन्हें फरीद प्रथम की वाणी मानते हैं। कुछ का कहना है कि भाषा और शैली की विभिन्नता से दोनों फरीद की वाणी को अलग अलग पहचाना जा सकता है। जो हो, फरीद के नाम से जो वाणी उपलब्ध है, उसका अपना साहित्यिक महत्व है। कविता सहज और स्वाभाविक है, भाषा ठेठ और सरल है, रूपक घरेलू वातावरण से लिए गए हैं, छंद अवश्य शिथिल हैं, किंतु उनका संगीत मधुर और प्रभावोत्पादक है। फरीद इस्लामी शरअ के पाबंद रहते हुए भी उदार मानववादी फकीर थे।

सं. ग्रं.-सलोक फ़रीद, खालसा ट्रैक्ट सोसायटी, अमृतसर सलोक फरीद, सं. मुंशी जैशीरांम, इसरार औलिया (में वचन), सं. हजरत बदर दीवान, पाक पट्टन, राहत-उल-कलूब सं. हजरत निजामुद्दीन, दिल्ली। (हरदेव बाहरी)