फतहउल्ला शिराजी मीर भारतवर्ष आने के पूर्व ही अपने सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक ज्ञान के लिए प्रसिद्ध था। ईरान के एक लब्धप्रतिष्ठ परिवार से संबंधित था। बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने उसे आमंत्रित किया और उसे वकील-ए-मुत्लाक (मुख्यमंत्री) के पद नियुक्त किया। सुल्तान की मृत्यु हो जाने के पश्चात् अकबर के निमंत्रण पर वह १५८३ ई. में उसके पास चला आया। अकबर उसके पांडित्य से बहुत प्रभावित हुआ और उसे दीवान-ए-सदारत का विभाग सौंप दिया। १५८५ ई. में अमनीनुल्मुल्क की पदवी के साथ उसे दीवान बना दिया गया जिसका कार्य था राजस्व लेखा का परीक्षण करना तथा चिरकाल के अस्तव्यस्त कार्य को व्यवस्थित करना। वह इस पद पर १५८८ ई. तक कार्य करता रहा। उसी वर्ष कश्मीर में उसकी मृत्य हो गई।

मीर को ३००० का मनसब प्राप्त था। उसकी बौद्धिक एवं मानसिक विशेषताओं के कारण बादशाह एवं उसके सरदार उसका बड़ा सम्मान करते थे। वह आयुर्वेद, गणित, फलित ज्योतिष तथा रसायन विद्या आदि विज्ञान की विविध शाखाओं में अनुपम पांडित्य रखते हुए भी अतीव विनीत था। शिक्षा के प्रसार में उसकी बड़ी आस्था थी और अवकाश के समय वह अपने सहचर सरदारों के बच्चों को पढ़ाता था। इसके अतिरिक्त उसको एक ऐसे चक्र के आविष्कार का यश प्राप्त है जिसकी गति से अल्प समय में ही १२ तोपों की सफाई की जा सकती थी। उसने एक ऐसे सग्गड़ का निर्माण किया जिसमें एक आटे की चक्की लगी थी जो सग्गड़ की गति के साथ साथ चलती थी। इसने एक ऐसे दर्पण का भी आविष्कार किया जिसके नजदीक और दूर होने से आकार में वैचित््रय प्रतीत होता था। अवुलफजल निम्नलिखित शब्दों में उसकी प्रशंसा करता है।

''इसका पांडित्य इतना गंभीर था कि यदि प्राचीन ज्ञान भंडार की पुस्तकें लुप्त भी हो जातीं तो भी वह इसकी चिंता किए बिना ज्ञान नवीन आधार की स्थापना कर सकता था।''

सं. ग्रं. - अबुल फजल : अकबरनामा, वेवरिज द्वारा संपादित; अबुल फजल : आइन-ए-अकबरी, सर सैयद अहमद खां (दिल्ली) द्वारा संपादित; बदायुनी-मुंतखबुत्तवारीख, खंड २; तारीख-ए-गुल्शन-ए इब्राहीम; निजामुद्दीन, तवकात-ए-अकबरी, खंड २; शाहनवाज खाँ, मआसिरुल उमरा, खंड १; इब्न-ए-हसन, सेंट्रल स्ट्रक्चर ऑव द मुगल एम्पायर; आर. पी. त्रिपाठी : सम ऐस्पेक्ट्स ऑव द मुस्लिम ऐडमिनिस्ट्रेशन, इलाहाबाद, १९५६; वी. स्मिथ, अकबर, द ग्रेट मुगल। (इक्तिदार हुसैन सिद्दीकी)