प्लास्टिक सर्जरी (Plastic Surgery) शल्यशास्त्र के आधुनिक उन्नतिकाल में, विशेष शल्यक्रिया के पृथक् विशेषज्ञ होने लगे हैं। वक्षशल्य, हृदयशल्य, मस्तिष्कशल्य, विकलांगशल्य (orthopedics) आदि की भाँति, प्लास्टिक शल्य भी शल्यशास्त्र के विशेष विभाग की वह शाखा है जिसमें प्राय: जन्मकाल के विकृत अंगों के, या जन्मोपरात उत्पन्न विकृत शरीर के अंगों के, विकार अथवा विकृत रूप को शल्य द्वारा सुधारा जाता है, जैसे पैदा होनेपर तालु का विकार, या कटे ओंठ, या मारपीट के कारण कटी नाम द्वारा कुरूप हुए चेहरे पर नाक बना देना; या त्वचा जल जाने के बाद वहाँ के केलायड को हटाकर उसके स्थान पर शरीर के दूसरे भाग से मुलायम त्वचा लगाकर कलमबंदी करना; पुराने घाव या बुढ़ापे की झुर्रियों के कारण मुख की विकृत आकृति को ठीक कर देना, जिससे पुन: युवा आकृति हो जाए; आदि।

नाक बना देने की शल्यक्रिया की कला भारतवर्ष में बहुत प्राचीन काल से विकसित मानी जाती है। आधुनिक महायुद्धों में प्लास्टिक सर्जरी की उन्न्ति का अवसर बहुत अधिक मिलने के कारण यह शल्यविद्या बहुत प्रगति कर गई। युद्धकाल में गोली, बम तथा गिरते मकान आदि की चोट से बहुत मनुष्यों को, रूप विकृत हो जाने के कारण, प्लास्टिक सर्जरी की शरण् लेनी पड़ती रही, जिससे इस ज्ञान के अनुभव बढ़ाने का प्रचुर अवसर मिलता रहा। साथ ही चमत्कारपूर्ण सफलता के दूसरे करणों में अधुनि संवेदनहारी (anaesthetic) रुधिर संचरण (blood transfusion), प्रतिजैविक (antibiotic) साधनों आदि का इसके विकास में विशेष स्थान रहा है। (उमाोकर प्रसाद मेजर)