प्रौढ़ शिक्षा प्रौढ़ शिक्षा या सयानों को शिक्षा देने का अर्थ है उन लोगों को शिक्षा देने की व्यवस्था करना जो साधारणत: विद्यालय जाकर पढ़ने की अवस्था में सुविधा न मिलने के कारण या अन्य परिस्थितिवश बीच में ही पढ़ाई छोड़कर घर का काम या कोई नौकरी या धंधा करने के लिए बाध्य हुए हों या सामाजिक बंधनों के कारण निरक्षर रह गए हों (जैसे भारत के कुछ प्रदेशों की कन्याएँ) या पढ़ लिख जाने पर भी जो अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए या मनोविनोद के लिए या आवश्यकतावश कोई दूसरी विद्या या कला सीखना चाहते हों। इस दृष्टि से प्रौढ़ शिक्षा प्राप्त करनेवालों की तीन श्रेणियाँ हो जाती हैं:
१- जिन्होंने किसी भी प्रकार की शिक्षा न तो विद्यालय ही में पाई, न घर पर ही।
२- जिन्होंने किसी श्रेणी तक पढ़कर छोड़ दिया है और पुन: सुविधा पाने या आवश्यकता के कारण पुन: उसके आगे पढ़ना उचित समझते हैं।
३- जो भली भाँति पढ़ लिखकर किसी एक प्रकार के सीखे हुए ज्ञान से जीविका कमा रहे है किंतु मनोविनोद, आवश्यकता, प्रेरणा, अध्ययन की इच्छा, अपने व्यवसाय में अधिक कुशलता प्राप्त करने की भावना या दूसरी विद्या सीखकर उसके द्वारा धन कमाने की इच्छा से नई कला या विद्या सीखना चाहते हों जैसे कोई वैद्य मनोविनोद के लिए संगीत सीखना चाहे या कोई साहित्य का पंडित अधिक ज्ञान बढ़ाने के लिए नई भाषाएँ सीखना चाहे अथवा संगीत का कोई अध्यापक साहित्य का भी अध्ययन करना चाहे। तात्पर्य यह है कि प्रौढ़ शिक्षा का क्षेत्र इतना विस्तृत है कि इसके अंतर्गत सब प्रकार का ज्ञान आ जाता है।
प्रौढ़ों को क्या सिखाया जाय - समाजशास्त्रियों का मत है कि किसी भी सभ्य राष्ट्र के प्रत्येक प्रौढ़ व्यक्ति में पाँच प्रकार की योग्यता होनी ही चाहिए - (१) भाषा की योग्यता - अपनी भाषा में बोलने, लिखने, बाँचने और समझने की योग्यता; (२) नागरिकता की योग्यता - अपने गाँव या नगर के राजकर्मचारियों से सबंध और व्यवहार जानने, अपने अधिकार और कर्तव्य जानने, परिवार के सदस्यों तथा पास-पड़ोसवालों के प्रति जाति, धर्म अवस्था आदि का विचार छोड़कर सद्भाव, सहनशीलता, सेवा तथा विनय का भाव बढ़ाने, सड़क, रेल, तार तथा डाक के साधारण नियमों से परिचय प्राप्त करने और विभिन्न वैज्ञानिक संस्थाओं के लिए अपना उचित प्रतिनिधि चुनने की योग्यता; (३) स्वच्छन्दता की योग्यता - अपने शरीर, घर और पास पड़ोस को स्वच्छ और स्वस्थ रखने, आकस्मिक चोट लगने या रोगाक्रांत होने पर तात्कालिक चिकित्सा की व्यवस्था जानने, छुतहे या महामारी रोगों के फैलने पर उनके निराकरण की रीति जानने तथा मादक द्रव्यों के सेवन से दूर रहने की योग्यता; (४) व्यावसयिक योग्यता - अपने गाँव, नगर में या आसपास के खेत तथा भूमि से उत्पन्न या तैयार हो सकनेवाली वस्तुओं, उनके विक्रय स्थानों, उनके विक्रय से लाभ उठाने की संभावनाओं तथा रीतियों के ज्ञान के साथ अपने आयव्यय का लेख रखने तथा आय से अधिक व्यय न करने की योग्यता; (५) देशभक्ति का भाव - अपने देश के मान अपमान को अपना मान अपमान समझना और कोई ऐसा काम न करना जिससे अपने देश का अपयश हे या देश की हानि हो।
सयानों की मनोवृत्ति - अशिक्षित प्रौढ़ को बालक या ज्ञानशून्य नहीं समझना चाहिए। वह अपने अनुभव तथा सामाजिक संपर्क से बहुत सा व्यावहारिक ज्ञान संचित कर चुका रहता है। उसकी बुद्धि परिपक्व, उसकी विचारधारा नियमित और उसके संस्कार दृढ़ हो चुके रहते हैं। अत: उसकी बुद्धि, उसके विवेक, विचार और संस्कार को माँज देना भर ही प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए। निरक्षर प्रौढ़ को अक्षरज्ञान करा देने पर ही उसकी मेधा और स्मृति स्वयं आवश्यक सामग्री जुटा ले सकती है। निरक्षर, साक्षर या पढ़े लिखे प्रौढ़ को नया ज्ञान ऐसे ढ़ग से देना चाहिए कि उसे पहले दिन से ही आत्मविश्वास होने लगे कि मैं इस विद्या को शीघ्र सीख लूँगा। प्रौढ़ होने के कारण उसका सामाजिक स्तर इतना ऊँचा हो गया रहता है कि उसे कक्षा में बैठाकर बच्चों के समान नहीं पढ़ाया जा सकता। अत: ऐसे उपाय से उसे शिक्षा देनी चाहिए कि वह आत्मसंमान के साथ वेग से सीख सके।
प्रौढ़ शिक्षा का क्षेत्र - भारत जैसे देश में साक्षरता से लेकर उच्च शिक्षा तक सब कुछ प्रौढ़ शिक्षा के अंतर्गत आ जाता है किंतु अमरीका और यूरोप जैसे समृद्ध देशों में व्यावसायिक कुशलता और अपनी आर्थिक सुरक्षा के लिए दूसरी विद्या सीख लेना भी प्रौढ़ शिक्षा का अंग है। इसलिए वहाँ किसानों, श्रमिकों तथा अन्य व्यावसायिक वर्गों के साथ साथ स्वयं पूँजीपतियों ने भी सामान्य जनता को और अपने यहाँ काम करनेवाले श्रमिकों को शिक्षित करने के लिए अनेक योजनाएँ बनाए रखी हैं। प्रौढ़ शिक्षा के अंतर्गत लोगों की व्यक्तिगत कमियाँ पूरी करने के लिए भी शिक्षा दी जा सकती है जैसे ठीक वाचन न कर सकने वाले को वाचन की शिक्षा, शुद्ध न लिख सकनेवाले को लेखन की शिक्षा, कला और लेख न जाननेवालों का कला और खेल की शिक्षा अथव सामान्य जन समाज को आध्यात्मिक, नैतिक और धार्मिक शिक्षा। अमरीका में तो सफल मातापिता बनने की शिक्षा गृहस्थी चलाने की शिक्षा, वैवाहिक जीवन सुखी रख्ने आदि की शिक्षा के लिए भी प्रौढ़ शिक्षाकेंद्र चलाए जा रहे हैं। नवीन समाजवादी प्रवृत्ति में यह माना जाने लगा है कि समाज की कुशलता पर ही व्यक्ति की कुशलता निर्भर है, इसी कारण शत्रु के आक्रमण से बचने के लिए उत्पादन के माल की खपत के लिए जनता में रुचि उत्पन्न करने की शिक्षा आदि सब प्रवृत्तियाँ प्रौढ़ शिक्षा के अंतर्गत आ जाती है। यद्यपि प्रौढ़ शिक्षा से लोगों के व्यवहार को बदल देना भी संभव है तथापि शिक्षा की सीमा में नहीं आते।
प्रौढ़ों को कैसे सिखाया जाए - साधारणत: कोई प्रौढ़ उसी समय शिक्षा ग्रहण करता है जब वह कोई मौलिक आवश्यकता समझकर स्वयं शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा करे या किसी प्रेरणा से उसके मन में यह इच्छा जगाई जाए। अत:, व्याख्यान, प्रवचन, कथा, कीर्तन, लोकगोष्ठी, अच्छे नाटक, पुस्तक, पत्रपत्रिका, रेडियो कार्यक्रम तथा ऐसे चलचित्रों के द्वारा प्रौढ़ को शिक्षा देने का आयोजन करना चाहिए जो वैज्ञानिक और ऐतिहासिक प्रामाणिकता के अनुसार सटीक हों। इस प्रकार रंगमंच और रेडियो से बोले हुए शब्दों से लेकर लिखे हुए शब्दों तक सभी सामग्री प्रौढ़ शिक्षा का माध्यम बनाई जा सकती है।
प्रौढ़ शिक्षा की संस्थाएँ - प्रौढ़ शिक्षा साधारणत: दो प्रकार से दी जाती हैं, - प्रचार संस्थाओं द्वारा और स्थिर संस्थाओं द्वारा। प्रचार संस्थाओं के अंतर्गत वे सभी व्यावसायिक, सामाजिक या राजकीय संघटन और समितियाँ हैं जो प्रौढ़ों को शिक्षा देने के लिए ही व्यवस्थित कार्यक्रम बनाकर प्रचार करती हैं और प्रौढ़ों को कुछ सीखने के लिए प्रेरित करती हैं। स्थिर संस्थाओं के अंतर्गत सभी विद्यालय तथा पुस्तकालय आदि हैं जहाँ व्यक्ति स्वयं जाकर शिक्षा प्राप्त करता है, संस्था की ओर से प्रौढ़ों में प्रचार का कार्य नहीं होता। इस प्रकार औपचारिक, तथा अनौपचारिक धन कमानेवाली और पारमार्थिक, सार्वजनिक और व्यक्तिगत अनेक संस्थाएँ प्रौढ़ शिक्षा चला रही हैं। कुछ लेखकों का मत है कि प्रौढ़ के लिए एक तो उपचारात्मक शिक्षा (रेमिडियल एजुकेशन) होती है जिसमें शिक्षा प्राप्त युवकों की व्यक्तिगत या सामूहिक त्रुटियाँ और दोष सुधारे जाते हैं और दूसरी शुद्ध प्रौढ़ शिक्षा होती है जिसमें प्रौढ़ों की आवश्यकताओं और योग्यताओं के अनुकूल शिक्षा दी जाती है। कुछ लेखक, व्यावसायिक शिक्षा को प्रौढ़ शिक्षा से भिन्न मानते हैं। इतने भेद होते हुए भी प्रौढ़ शिक्षा देनेवाली संस्थाओं के अंतर्गत सार्वजनिक या व्यक्तिगत विद्यालय, विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, प्रचारमंडल, विद्यालयातिरिक्त, आयोजन, गोष्ठियाँ, समितियाँ संग्रहालय, पुस्तकालय, धार्मिक तथा सामाजिक संस्थाएँ और राजनीतिक दल आदि भी आ जाते हैं।
सं.ग्रं. - सीताराम चतुर्वेदी : शिक्षा प्रणालियाँ और उनके प्रवर्तक, तथा शिक्षा के नए प्रयोग और विधान (नंदकिशोर ऐंउ ब्रदर्स, चौक, बनारस); 'अमरीकन एसोसिएशन फॉर ऐडल्ट ऐजुकेशन' द्वारा प्रकाशित ग्रंथ; नैशनल ऐडल्ट ऐजुकेशन (यू.एस.ए.) के ऐडल्ट ऐजुकेशन डिपार्टमेंट द्वारा प्रकाशित ग्रंथ; एन.आर. हैरी : एंसाइक्लोपीडिया ऑव माडर्न एजुकेशन, न्यूयार्क की फिलोसॉफिकल लाइब्रेरी इंक. द्वारा प्रकाशित। (सीताराम चतुर्वेदी)