प्रोसिऑन (Procyon) आकाशगंगा के किनारे किनारे मिथुन (Gemini) और मृग (Orion) तारामंडलों के निकट कैनिस माइनर (Canis Minor) नामक तारासमूह का सबसे अधिक कांतिमय तारा है। उपर्युक्त तारासमूह जनवरी से मई तक की रातों में सबसे अच्छा दिखाई पड़ता है और प्रोसिऑन तारा मार्च के आरंभ में ९ बजे रात के लगभग अपने याम्योत्तर पर रहता है। कैनिस मेजर (Canis Major) तारामंडल के लुब्धक (Sirius) और मृग तारामंडल के आर्द्रा (Betelgeuse) तारों के साथ प्रोसिऑन एक विलक्षण त्रिकोण बनाता है, जो नाविकों का पथप्रदर्शन करता है।
२० अधिकतम कांतिमय तारों में प्रोसिऑन आठवाँ है। इसका दृश्ट कांतिमान ०.५ है, जब कि अधिकतम कांतिमय लुब्धक तारे का कांतिमान -१.५८ है। दृष्ट कांति के वर्गीकरण में तारों को ०, १, २, ३ आदि अंक दिए जाते हैं। किसी विशिष्ट अंक का तारा अपने अनुवर्ती तारे की अपेक्षा २.५१२ गुना कांतिमय होता है। प्रोसिऑन ११ प्रकाशवर्ष (६६ लाख करोड़ मील) की दूरी पर स्थित है। इस तारे के विषुवांश (right ascension) का निर्देशांक ७ घंटे ३७ मिनट २२ सेंकड और क्रांति (declination) अ५ अंश १९ मिनट १६ सेकंड है। तारों के बाह्य ताप और उनमें पाए जानेवाले विभिन्न तत्वों के आधार पर स्पेक्ट्रमी वर्गीकरण में प्रोसिऑन की गणना एफ (F) वर्ग में होती है। स्पेक्ट्रम में धात्विक तत्वों की उपस्थिति के कारण एफ वर्ग के तारों का रंग सामान्यत: कुछ पीलापन लिए श्वेत होता है। ऐसे तारों के स्पेक्ट्रम सूर्य के स्पेक्ट्रम से समानता रखते हैं। कैल्सियम के कारण स्पेक्ट्रम सूर्य के स्पेक्ट्रम से समानता रखते हैं। कैल्सियम के कारण स्पेक्ट्रम रेखाओं की तीव्रता विशेष रूप से प्रबल होती हैं। कैल्सियम रेखा की वर्धमान तीव्रता के आधार पर एफ वर्ग के तारों को एफ ० से एफ ९ वर्गों में उपविभाजित किया गया है। इस उपविभाजन में प्रोसिऑन एफ ४ में आता है, जिसका बाह्य ताप लगभग ७०००रूसें. है। यद्यपि प्रोसिऑन सूर्य से समानता रखता है, फिर भी सूर्य से यह बहुत अधिक दीप्त है।
प्रोसिऑन विशेष रूप से इस कारण रोचक है कि क्षुब्धक (Sirius) की तरह इसका भी एक सहचारी अदृश्य तारा १३वें कांतिमान का भी है। लुब्धक और प्रोसिऑन की गति में अनियमितता के आधार पर प्रसिद्ध खगोलज्ञ बेसेल (Bessel) ने यह निष्कर्ष निकाला कि इनमें से प्रत्येक का एक अदृश्य सहचर अवश्य होना चाहिए जो एक दूसरे की परिक्रमा करते रहते हैं। प्रोसिऑन की अनियमितता को बेसेल ने १८४० ई. में प्रेक्षित किया और १८९६ ई. में लिक वेधशाला (Lick Observatory) में शीबर्ल (Schacberle) ने बृहत् अपवर्तक दूरदर्शी की सहायता से प्रोसिऑन के बड़ी निम्न ज्योतिवाले सहचर को खोज निकाला और देखा। ये अदृश्य तारे, जो श्वेतवामन (white dwarfs) वर्ग में रख गए हैं, खगोल विज्ञान की प्रगति और विकास में युगांतरकारी सिद्ध हुए हैं। सामान्य तारों की तुलना में ये बहुत छोटे और अत्यंत सघन हैं। ये इतने सघन हैं कि इनके मुट्ठी भर पदार्थ का भार कई टन होता है। (रामनाथ सुब्रह्मण्यन)