प्रोटेस्टैंट धर्म १६वीं शताब्दी के प्रारंभ में लूथर के विद्रोह के फलस्वरूप प्रोटेस्टैट धर्म प्रारंभ हुआ था (दे. चर्च का इतिहास)। लूथर के अनुयायी लूथरन कहलाते हैं; प्रोटेस्टैंट धर्मावलंबियों में उनकी संख्या सर्वाधिक है (दे. लूथर)।
जोहन कैलविन (१५०९-१५६४ ई.) फ्रांस के निवसी थे। सन् १५३२ ई. में प्रोटेस्टैंट बनकर वह स्वित्सरलैंड में बस गए जहाँ उन्होंने लूथर के सिद्धांतों के विकास तथा प्रोटेस्टैंट धर्म के संगठन के कार्य में असाधारण प्रतिभा प्रदर्शित की। बाइबिल के पूर्वार्ध को अपेक्षाकृत अधिक महत्व देने के अतिरिक्त उनकी शिक्षा की सबसे बड़ी विशेषता है, उनका पूर्वविधान (प्रीडेस्टिनेशन) नामक सिद्धांत। इस सिद्धांत के अनुसार ईश्वर ने अनादि काल स मनुष्यों को दो वर्गों में विभक्त किया है, एक वर्ग मुक्ति पाता है और दूसरा नरक जाता है (दे. आर्मिनियस का कोबस)। कैलविन के अनुयायी कैलविनिस्ट कहलाते हैं, वे विशेष रूप से स्वित्सरलैंड, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, स्काटलैंड (दे. प्रेसबिटरीय धर्म), फ्रांस (दे. यूगनो) तथा अमरका में पाए जाते हैं, उनकी संख्या लगभग पाँच करोड़ है। ये सब समुदाय एक वर्ल्ड प्रेसविटरीय एलाइंस (World Presbyterian Alliance) के सदस्य हैं, जिसका केंद्र जेनोवा में है।
हेनरी सप्तम के राज्यकाल में इंग्लैंड का ईसाई चर्च रोम से अलग होकर चर्च ऑव इंग्लैंड और बउद में एंग्लिकन चर्च कहलाने लगा। (दे. एंग्लिकन समुदाय)। एंग्लिकन राजधर्म के विरोध में १६वीं शताब्दी में प्यूरिटनवाद (दे. प्यूरिटनवाद) तथा कांग्रगैशनैलिज़्म (दे. सामूहिक चर्चवाद) का प्रादुर्भाव हुआ।
उपर्युक्त संप्रदायों के अतिरिक्त वैप्टिस्ट तथा मेथोडिस्ट चर्च सबसे अधिक महत्व रखते हैं (दे. 'बैप्टिस्ट चर्च', 'मेथोडिज़्म')। प्रोटेस्टैट धर्म के विषय में यह प्राय: सुनने में आता है कि वह असंख्य संप्रदयों में विभक्त है किंतु वास्तव में समस्त प्रोटेस्टैटों के ९४ प्रतिशत पाँच ही संप्रदायों में सम्मिलित हैं, अर्थात् लूथरन, कैलविनिस्ट, एंग्लिकन, बैप्टिस्ट और मेथोडिस्ट।
अन्य सभी प्रोटेस्टैट संप्रदायों का विवरण यहाँ नहीं दिया जा सकता। मेन्नोनाइट, एड्वेंटिस्ट, यहोवा-साक्षी जैसे बैप्टिस्ट चर्च से संबद्ध स्वतंत्र संप्रदायों का तथा मुक्तिसेना का किंचित् परिचय अन्यत्र दिया गया है (दे. बैप्टिस्ट, मुक्तिसेना)। शेष संप्रदायों में स चार का उल्लेख यहाँ अपेक्षित है।
१७वीं शती के मध्य में जार्ज फॉक्स (George Fox) ने 'सोसाइटी ऑव फ्रेंड्स' की स्थापना की थी, जा क्वेकर्स (Quakers) के नाम से विख्यात है। वे लोग पौरोहित्य तथा पूजा का कोई अनुष्ठान नहीं मानते और अपनी प्रार्थनासभाओं में मौन रहकर आभ्यंतर ज्योति के प्रादुर्भाव की प्रतीक्षा करते हैं। इंग्लैंड में अत्याचार सहकर वे अमरीका में बस गए। आजकल उनकी संख्या दो लाख से कुछ कम है।
सन् १८३० ई. में यूसुफ स्मिथ ने अमरीका में 'चर्च ऑव जीसस क्राइस्ट ऑव दि लैट्टर डेस' की स्थापना की। उस संप्रदाय में स्मिथ द्वारा रचित 'बुक ऑव मोरमन' बाइबिल के बराबर माना जाता है, इससे इसके अनुयायी मोरमंस (Mormons) कहलाते हैं। वे मदिरा, तंबाकू, काफी तथा चाय से परहेज करते हैं। प्रारंभ में वे बहुविवाह भी मानते थे किंतु बाद में उन्होंने उस प्रथा को बंद कर दिया। यंग (Young) के नेतृत्व में उन्होंने ऊता स्टेट का बसाया जिसकी राजधानी साल्ट सिटी (Salt city) इस संप्रदाय का मुख्य केंद्र है। मोरमंस की कुल संख्या लगभग अठारह लाख है।
मेरी बेकर एड्डी ने (सन् १८२१-१९११ ई.) ईसा को एक आध्यात्मिक चिकित्सक के रूप में देखा। उनका मुख्य सिद्धांत यह है कि पाप तथा बीमारी हमारी इंद्रियों की माया ही है, जिसे मानसिक चिकित्सा (Mind Cure) द्वारा दूर किया जा सकता है। उन्होंने क्रिस्टियन साइंस नामक संप्रदाय की स्थापना की जिसका अमरीका में आजकल भी काफी प्रभाव है।
पेंतकोस्तल नामक अनेक संप्रदाय २०वीं शताब्दी में प्रारंभ हुए हैं। कुल मिलाकर उनकी सदस्यता लगभग एक करोड़ बताई जाती है। पेंतकोस्त पर्व के नाम पर उन संप्रदायों का नाम रखा गया है (दे. पर्व)। भावुकता तथा पवित्र आत्मा के वरदानों का महत्व उन संप्रदायों की प्रधान विशेषता है।
सं.ग्रं. - एम.जे. कोंगार : डिवाइड क्रिश्चियनिटी, लंदन, १९३९; जे. डिलैनबेर्गेर : क्रिश्चियनिटी, न्यूयार्कं, १९५४; ई.जी. लिओनार्ड : हिस्ट्वार ड्ड प्रोटेस्टैंटिज़्म। (रेवरेंड कामिल बुल्के)