प्रेगल् फ्रट्ज़ (Pregl Fritz, सन् १८६९-१९३०) ऑस्ट्रिया वासी रसायनविद् थे। इनका जन्म ऑस्ट्रिया के लाइबाख नगर में हुआ था। इसी नगर में शिक्षा पाने के उपरांत उन्होंने ग्राट्स (Graz) विश्वविद्यालय से एम.डी. की डिग्री प्राप्त की और वहीं के शरीर क्रियात्मक संस्थान में सहायक प्राध्यापक नियुक्त हो गए। प्रारंभ से ही इनका झुकाव रसायन शास्त्र की ओर था तथा पित्ताम्ल संबंधी अनुसंधानों से इनकी रुचि इस दिशा में बढ़ती गई। सन् १९०४ में ये जर्मनी गए। वहाँ कुछ समय विल्हेल्स ऑस्टवाल्ट (सन् १८५३-१९३२) की संगति में भौतिक रसायन का अध्ययन करने के पश्चात् ये बर्लिन गए, जहाँ एमिल फिशर का प्रभाव इनपर पड़ा।
ग्राट्स विश्वविद्यालय में लौटने पर ये चिकित्सा रसायन संस्थान में प्रोफेसर हो गए तथा इन्होंने ऐल्बुमिनी वस्तुओं और पित्ताम्लों के विश्लेषण का कार्य आरंभ किया। सन् १९१० से १९१३ तक ये इंस्ब्रुक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे। इसी समय इन्होंने सूक्ष्म विश्लेषण (micro analysis) के क्षेत्र में मार्गदर्शक कार्य किया। कायिकी रसायन संबंधी शोधकार्य में शुद्ध पदार्थ अत्यल्प मात्रा में मिलते थे। इसलिए सूक्ष्म मात्राओं का विश्लेषण करने की ऐसी रीतियों का इन्होंने आविष्कार किया, जिनमें केवल तीन से पाँच मिलिग्राम पदार्थ ही सब प्रकार की मापों के लिए यथेष्ट होता था। आपने सूक्ष्म विश्लेषण विधियों का एंज़ाइम, सीरम (serum) एवं पित्त अम्ल संबंधी अनुसंधानों में खूब उपयोग किया तथा दिखाया कि न्यायालयों के कार्यों में उपयोगी विश्लेषण के लिए जिसमें जहरीले ऐल्केलॉइडों की न्यूनातिन्यून मात्राओं का मापन आवश्यक होता है, उनकी विधियों का व्यवहार सापेक्ष सरलता से किया जा सकता है।
रासायनिक सूक्ष्म विश्लेषण की विधियों के विकास ने अकार्बनिक तत्वविश्लेषण की प्रगति में महत्व का योग दिया। ये विधियाँ शुद्ध विज्ञान, शरीरक्रिया विज्ञान, चिकित्सा तथा उद्योग से संबंधित अनेक प्रकार के अनुसंधानों के क्षेत्र में अनिवार्य हो गईं। प्रेगल् ने तत्वों के समूहों के मापन की कई सूक्ष्म विधियों का तथा एक सुग्राही सूक्ष्ममापी तुला का भी अविष्कार किया। सन् १९१७ में इन्होंने 'अकार्बनिक मात्रामूलक सूक्ष्मविश्लेषण' नाक ग्रंथ जर्मन भाषा में लिखा, जिसका अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा में भी अनुवाद हुआ। चिकित्सा शास्त्र संबंधी कई व्यावहारिक समस्याओं का हल आपने ढूँढ़ निकाला, जैसे किण्वन की उपस्थिति की परीक्षा के लिए ऐब्डर हैल्डैन अपोहन विधि निकाली तथा वृक्कों की कार्यक्षमता का पता लगाने के लिए एक सरल रीति का आविष्कार किया।
सूक्ष्म विश्लेषण संबंधी इनके कार्य के लिए वियना की ऐकैडेमी ऑव सायंस ने सन् १९१४ में इन्हें लीबेन पुरस्कार देकर संमानित किया तथा गटिंजेन के विश्वविद्यालय ने संमान में फिलॉसोफी के डाक्टर की उपाधि प्रदान की। सन् १९२३ में अकार्बनिक पदार्थों के सूक्ष्म विश्लेषण की विधि के आविष्कार के लिए इन्हें रसायनविज्ञान संबंधी नोबेल पुरस्कार मिला। (भगवान दास वर्मा)