प्रूफ संशोधन पुस्तकों, निबंधों तथा अन्य मुद्रित वस्तुओं को पहले टाइपों से कंपोज करना पड़ता है। कंपोज करने में प्राय: गलत टाइप लग जाते हैं, अत: कंपोज की गई सामग्री पहले अशुद्ध रहती है। इनकी छाप लेकर गलत टाइपों के स्थान पर ठीक टाइप लगाने के जो संकेत छाप पर किए जाते हैं उन्हें प्रूफ संशोधन कहते हैं। मुद्रण के साथ ही प्रूफ संशोधन कला भारत में पश्चिम से आई है। प्रूफ संशोधन के संकेत दो प्रकार के होते हैं : एक तो कुछ विशेष चिन्ह होते हैं और दूसरे अँग्रेजी के कतिपय अक्षर होते हैं, जिनका पृथक् पृथक् तात्पर्य होता है। हिंदी में अभी तक स्वतंत्र प्रूफ़ संकेतों नहीं बने हैं। अंग्रेजी के चिन्ह ही अभी तक इसके लिए भी व्यवहृत होते हैं, किंतु हिंदी में इन चिन्हों से पूरा काम नहीं चल पाता। हिंदी की मात्राएँ रेफ, हलंत, अनुस्वार आदि के लिए अंग्रेजी के प्रूफ संकेतों स काम नहीं चलाया जा सकता। अत: यह आवश्यक है कि इनका स्पष्ट उल्लेख हाशिए पर कर दिया जाए।
प्रूफ संशोधन में सबसे पहले पृष्ठसंख्या, शीर्षक आदि देखकर प्रूफ पढ़ना चाहिए। सांकेतिक चिन्ह बाएँ हाशिए पर क्रम से बनाना चाहिए और जब इस ओर जगह न रहे, तब दाहिने हाशिए पर उसी क्रम से चिन्ह बनाना चाहिए। अच्छा यह होगा कि खड़े बल में प्रूफ के दो भाग मान लिए जाएँ और बाई ओर वाले आधे भाग के लिए चिन्ह बाएँ हाशिए पर और दाहिनी ओर के चिन्ह दाएँ हाशिए पर बनाए जाएँ। प्रूफ के ऊपर से रेखा खींचकर फिर हाशिए पर शोधन करने का ढंग अच्छा नहीं है। इससे प्रूफ भद्दा हो जाता हे और यदि रेखाएँ एक दूसरे को काटती हुई जाती हैं, तो कंपोजीटर के लिए ठीक-ठीक शुद्धि करना कठिन हो जाता है। शोधन ऐसी स्याही से करना चाहिए, जो स्पष्ट दिखाई दे। इसके लिए लाल स्याही ठीक रहती है। शोधन में पेंसिल का उपयोग नहीं करना चाहिए। शोधन के लिए एक संकेत लिखने के बाद एक खड़ी रेखा खींचकर तब दूसरा शोधनचिन्ह बनाना उचित है। लेख में जो भी संशोधन किए जाएँ, उनके लिए हाशिए पर सांकेतिक चिन्ह अवश्य बना दिए जाएँ अन्यथा संशोधन व्यर्थ जाएँगे। कंपोजीटर केवल हाशिए के चिन्हों के अनुसार शोधन करते हैं। संकेतों के अतिरिक्त कंपोजीटर की सूचना के लिए, जो कुछ लिखा जाए उसे वृत्त से घेर देना चाहिए। शोधन होने के बाद दूसरी बार पुन: पाठ के लिए जो प्रूफ आता है, उसमें केवल पूर्वसंशोधन को ही नहीं देखना चाहिए, अपितु यह भी देखना चाहिए कि एक ही शोधन दो बार तो नहीं हो गया, या कोई टाइप तो नहीं निकल गया है, अथवा कोई अचिन्हित टाइप तो नहीं बदला गया है। साधारणत: प्रूफ़ तीन बार देखा जाता है। अशुद्धियाँ अधिक होने पर इससे अधिक बार भी देखा जा सकता है। केवल वर्णविन्यस के शोधन से ही प्रूफ संशोधक के कर्तव्य की इतिश्री नहीं हो जाती। विचारों और भावों की स्पष्टता की ओर भी प्रूफशोधक को लेखक का ध्यान आकर्षित करना चाहिए और संदेहनिवारण के लिए पांडुलिपि सहित प्रूफ को लेखक का ध्यान आकर्षित करना चाहिए और संदेहनिवारण के लिए पांडुलिपि सहित प्रूफ को लेखक के पास भेज देना चाहिए। प्रेस की भाषा में इस क्रिया को क्वेरी ठीक करना कहते हैं।
प्रूफ संशोधन के लिए निम्नलिखित चिन्हों का उपयोग किया जाता है:
संकेत अर्थ
d टाइप हटा दो या निकाल दो।
हटा दो और शेष को जोड़ दो।
उल्टा लगा है, ठीक करो।
अक्षरों को मिलाओ।
वृत्त में घिरे हुए शब्द या अक्षर का स्थान बदलो।
नया पैराग्राफ बनाओ।
विरामचिन्ह दो।
दो अवतरण चिन्ह दो।
संक्षिप्त करो।
क्वेरी ठीक करो।
एक अवतरण चिन्ह दो।
जगह करो।
रिक्त स्थान बराबर करो।
va या v समान स्थान दो।
व् टूटा अक्षर बदलो।
उ एक लाइन में करो।
[ बाई ओर हटाओ।
] दाहिनी ओर हटाओ।
ऊपर हटाओ।
नीचे हटाओ।
एक एम स्थान छोड़ो, जैसा नए पैरा के आरंभ में होता है।
ऊपर नीचे की पंक्तियों को एक सीध में करो।
tr स्थान बदलो।
w.f. विजातीय टाइप बदलो।
en एक छोटा डैश लगाओ।
em एक बड़ा डैश लगाओ।
Stet रहने दो।
run on पैरा मत छोड़ो।
b.f. बड़े टाइप लगाओ।
| शेष भाग से इस भाग के टाइप छोटे करो।
या :
वर्ग या टाइप के स्थान के चिन्हों की ओर ध्यान दो।
ed > दो पंक्तियों के बीच में और स्थान करो।
( दो पंक्तियों के बीच में जगह कम करो।
; अर्धविराम चिन्ह लगाओ।
, या, अल्पविराम चिन्ह लगाओ।
: या उपविराम चिन्ह लगाओ।
युक्ताक्षर लगाओ।
ु स्थान कम करो।
ital इटैलिक टाइप लगाओ।
rom रोमन टाइप लगाओ।
caps अंग्रेजी के कैपिटल अक्षर लगाओ।
I.c. या s.c. अंग्रेजी के छोटे अक्षर लगाओ।
! संबोधन चिन्ह दो।
? प्रश्नवाचक चिन्ह दो।
-/या उ/ समासचिन्ह लगाओ।
(/) लघुकोष्ठक।
[/] बड़ा कोष्ठक।
ा आकार।
67; ्ह्रस्व इ की मात्रा।
ी दीर्घ ई की मात्रा।
श्े या ( े) ए की मात्रा।
ी या ( ै) ऐ की मात्रा।
( ु) उकार।
( ू) ऊकार।
अनुस्वार।
: विसर्ग।
( ्) हलंत।
( र्) रेफ। (अजित नारायण मेहरोत्रा)