प्रादेशिक सेना (Territorial Army) एक या एक से अधिक श्रेणी के सैनिकों का वह संगठन है जिसके सैनिक प्रादेशिक सुरक्षा के लिए संगठित किए जाते हैं। ये सैनिक अपने घरों में रहते हुए समय-समय पर सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। इसका मूल स्वरूप लॉर्ड हाल्डेन (Lord Haldane) द्वारा १९०७ ई. में इंग्लैंड में संगठित ब्रिटिश सेना का सहायक विभाग है, जो पुराने 'स्वयंसेवकों' के स्थान पर संगठित किया गया था। प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व यह विदेशसेवा के लिए बाध्य नहीं था, किंतु इसके सभी सैन्यदलों ने स्वेच्छा से भिन्न-भिन्न मोर्चों पर युद्ध किया। युद्ध के बाद इस सैन्यदल को प्रादेशिक सेना के रूप में फिर से संगठित किया गया। इसे संसद के नियंत्रण में विदेशसेवा के लिए बाध्य कर दिया गया। सेना के सदस्य प्रति वर्ष पाक्षिक शिविर तथा निर्धारित न्यूनतम कवायद और प्रशिक्षण प्राप्त करते थे। इंग्लैंड में प्रादेशिक सेना नियमित सेना के निदेशकों के अधीन नियमित सेना की द्वितीय पंक्ति की नकल के रूप में संगठित कि जाती है। युद्धकाल में स्थल और समुद्रतट की रक्षा का भार प्रादेशिक सेना पर होता है। इंग्लैंड में प्रादेशिक सेना के अनेक यूनिटों को हवामार यूनिटों में परिणत कर दिया गया है।
भारतीय संविधान सभा द्वारा सितंबर, १९४८ ई. में पारित प्रादेशिक सेना अधिनियम, १९४८, के अनुसार भारत में अक्टूबर, १९४९ ई. में प्रादेशिक सेना स्थापित हुई। इसका उद्देश्य संकटकाल में आंतरिक सुरक्षा क दायित्व लेना और आवश्यकता पड़ने पर नियमित सेना को यूनिट (दल) प्रदान करना तथा इस प्रकार नवयुवकों को देशसेवा का अवसर प्रदान करना है। सामान्य श्रमिक से लेकर सुयोग्य प्राविधिज्ञ तक भारत के सभी नागरिक, जो शरीर से समर्थ हों, इसमें भर्ती हो सकते हैं। आयुसीमाएँ १८ और ३५ वर्ष हैं, जो सेवानिवृत्त सेनिकों और प्राविधिज्ञ सिविलियनों के लिए शिथिल की जा सकती हैं। सरकारी एवं गैरसकारी संस्थाओं के कर्मचारी भी प्रादेशिक सेना में भर्ती हो सकते हैं। प्रादेशिक सेना आठ प्रदेशों में बाँटी है। व्यक्ति अपने प्रदेश की यूनिट में ही भर्ती हो सकता है। प्रादेशिक सेना के कार्य निम्नलिखित हैं :
(१)�� नियमित सेना को स्थैतिक (static) कर्तव्यों से मुक्त करना और आवश्यकता पड़ने पर सिविल प्रशासन की सहायता करना।
(२)�� समुद्रतट की रक्षा और हवामार यूनिटों की व्यवस्था करना।
(३)�� आवश्यकता होने पर नियमित सेना के लिए यूनिटों की व्यवस्था करना।
प्रादेशिक सेना के कार्मिकों को प्रशिक्षण
की अवधि में और आह्वान करने पर, नियमित सेना के तदनुरूपी
पद का वेतन और भत्ता दिया जाता है। असैनिक नियोक्ता को अनिवार्य
रूप से प्रादेशिक सेना से, या उसके प्रशिक्षण से, निवृत्त सदस्य
को सिविलियन पद पर पुन: नियुक्त करना आवश्यक होता है।
प्रादेशिक सेना के कार्मिकों को कठिन परिश्रम और सराहनीय
कार्यों में प्रोत्साहित करने के लिए भविष्य में राष्ट्रीय रक्षा सेना
के सैनिक विभाग की यथार्थ रिक्तियों के श्प्रतिशत पद
उनके लिए आरक्षित किए जाएँगे। राष्ट्रीय रक्षा सेना में सफलतापूर्वक
प्रशिक्षण क्रम पूरा करने के बाद उन्हें सेना में नियमित कार्यभार
दिया जा सकता है।
प्रादेशिक सेना में भर्ती पाए हुए व्यक्ति या अफसर के लिए भारत की सीमाओं के बाहर सैनिक सेवा करना, यदि केंद्रीय सरकार का व्यापक या विशिष्ट आदेश न हो, तो आवश्यक नहीं है।
प्रादेशिक सेना के अनेक विभाग हैं, जैसे कवचित कोर (armoured ccrps); तोपखाना कोर, जिसमें हवामार और तटरक्षा यूनिटें सम्मिलित हैं; इंजीनियर कोर, जिसमें बंदरगाह और रेलवे यूनिटें सम्मिलित हैं; संकेत कोर, जिसमें डाक तार कोर शामिल हैं; पैदल सेना; सेना सेवा कोर; सेना चिकित्सा कोर तथा विद्युत और यांत्रिक इंजीनियरी का कोर। प्रादेशिक सेना के यूनिट दो प्रकार के हैं : १. नागरिक और २. प्रांतीय। प्रांतीय यूनिटों में ग्रामीण अंचल के व्यक्ति भर्ती किए जाते हैं और दो या तीन महीने की अवधि का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं और दो या तीन महीने की अवधि का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। नागरिक यूनिटों में बड़े नगरों के व्यक्तियों को भर्ती किया जाता है। इन्हें साप्ताहिक कवायद पद्धति से शाम के समय, रविवार तथा छुट्टियों में, एवं अधिक से अधिक चार दिनों के शिविरों के माध्यम से प्रशिक्षण दिया जाता है। (श.ना.रा.)