प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अभी कुछ काल पूर्व तक हमारे स्वायत्तशासन के अधीन ग्रामीण चिकित्सा सेवाएँ तथा कुछ अन्य स्वास्थ्य सेवाएँ भिन्न-भिन्न चिकित्सा एवं जनस्वास्थ्य विभागों के अंतर्गत एक दूसरे से संपर्करहित चल रही थीं। इन्हें स्थानीय निकाय अपने करों की अल्प आय से किसी प्रकार चला रहे थे। जनस्वास्थ्य का उत्तरदायित्व लेने पर सरकार के लिए निकट भविष्य में ग्रामीण क्षेत्रों की जनता का स्वास्थ्यस्तर ऊँचा उठाना संभव हुआ है।

शासन द्वारा इस दायित्व को अपनाने के पूर्व चिकित्सा सेवाएँ दूर-दूर स्थित कुछ इने-गिने चिकित्सालयों के रूप में यत्र-तत्र बिखरी थीं, उनके द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों की आंशिक रोगग्रस्त जनता, लाभान्वित हो रही थी। जनस्वास्थ्य सेवाएँ जिला स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा अपने अत्यंत अपर्याप्त कार्यकर्ताओं की सहायता से संक्रामक महामारियों के निराकरण हेतु दौड़ धूप तक ही सीमित थीं। निरोधक सेवाओं तथा स्वास्थ्यवर्धक क्रियात्मक सेवाओं का अस्तित्व नहीं के बराबर था। आधुनिक धारणा यह है कि स्वास्थ्य सेवाओं में रोग के निदान एवं चिकित्सा के साथ ही रोगी के पुनर्वास एव रोग के निरोध पर भी ध्यान देना वांछनीय है। दूसरे शब्दों में स्वास्थ्यसेवा के अंतर्गत व्यक्ति, परिवार तथा समुदाय की शारीरिक, मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक दक्षता की वृद्धि का महत्वपूर्ण कार्य समाविष्ट है।

ग्रामीण क्षेत्रों में उपर्युक्त बहुमुखी सेवाओं की व्यवस्था करनेवाली संस्था को प्राथमिक स्वास्थ्य यूनिट या केंद्र कहते हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य यूनिट या केंद्र की कल्पना सर्वप्रथम सन् १९४६ में भोर (Bhore) कमेटी ने की थी। उक्त कमेटी ने ४०,००० जनसंख्या के क्षेत्र में दीर्घकालिक चिकित्सा सेवा की योजना बनाई थी, जिसमें रोगमुक्ति और रोगनिरोध दोनों सेवाएँ सम्मिलित थीं, परंतु यह योजना विश्व-स्वास्थ्य-संगठन द्वारा अपना संविधान और ध्येय घोषित करने तक खटाई में पड़ी रही।

संप्रति प्राथमिक स्वास्थ्य इकाई का गठन इस प्रकार है कि विकास-खंड-स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के अंतर्गत तीन मातृ-शिशु-कल्याण उपकेंद्र होते हैं। यह इकाई अनुमानत: ६० हजार से एक लाख तक जनता की सेवा करती है, यद्यपि स्वास्थ्य केंद्रों के कार्यकर्ताओं की वर्तमान निर्धारित संख्या के लिए इतनी बड़ी जनसंख्या की सेवा दु:साध्य है। योजना आयोग के स्वास्थ्य सदस्यों के अनुसार उपलब्ध प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं एवं साधनों की दृष्टि से इसका प्रारंभ ठीक हुआ है। वर्तमान उपकेंद्रों को, जो संप्रति २० से ३० सहस्त्र जनसंख्या की सेवा करते हैं, अंततोगत्वा स्वतंत्र इकाई में परिणत करने की योजना है परंतु यह प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं के उपलब्ध होने पर निर्भर करती है।

जिला स्वास्थ्य अधिकारी तथा जिला चिकित्सा अधिकारी (सिविल सर्जन) द्वारा नित्य कार्यव्यवस्था का पर्यवेक्षण किया जाता है। प्राथमिक स्वास्थ्य इकाइयों के कर्मचारी वर्ग का विभाग भिन्न भिन्न प्रदेशों में भिन्न है, परंतु कम से कम एक डॉक्टर , एक स्वास्थ्य निरीक्षिका (Health Visitor), एक सामाजिक कार्यकर्ता (Social Worker), एक कंपाउंडर, चार चपरासी और एक प्रसाविका (मिड वाइफ) हेड क्वार्टर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तथा तीन तीन प्रसाविकाएँ विभिन्न उपकेंद्रों में अनिवार्य हैं।

प्रत्येक प्राथमिक स्वास्थ्य यूनिट प्रधानतया चिकित्सा सहायता पर्यावरण स्वच्छता, विद्यालय स्वास्थ्य, मातृ तथा शिशु स्वास्थ्य, संक्रामक रोगों का नियंत्रण, परिवार नियोजन, स्वास्थ्य शिक्षा, जन्म मृत्यु के आंकड़ों का संकलन आदि कार्य करती हैं। (नर्मदेवर प्रसाद)