प्राउट विलियम (Prout William, सन् १७८५-१८५०), अंग्रेज कायिकीविद् तथा रसायन शास्त्री, का जन्म ग्लॉस्टरशियर (Gloucester shire) प्रदेश के हार्टन नामक ग्राम में हुआ था। सन् १८११ में इन्होंने एडिनबरा विश्वविद्यालय से एम. डी. की उपाधि प्राप्त कर लंदन में चिकित्सा वृत्ति प्रारंभ की। ये रासायनिक अनुसंधान कार्य भी करते रहे।

सन् १८१५ में प्रकाशित एक लेख में इन्होंने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया कि तत्वों के परमाणुभार हाइड्रोजन के परमाणुभार के गुणक होते हैं। इससे इन्होंने यह फल निकाला कि हाइड्रोजन ही वह प्रारंभिक तत्व है जिससे सब अन्य तत्व संयोजन द्वारा निर्मित होते हैं और जिसका नाम प्राचीन काल के ग्रीक वैज्ञानिकों ने प्रोटाइल (घ्द्धदृद्यन्र्थ्ड्ढ) रखा था। इसे प्राउट की परिकल्पना कहते हैं। जब जाँचने पर, यह पाया गया कि तत्वों के परमाणुभार हाइड्रोजन के परमाणुभार के बहुत समाकल नहीं होते, तब यह परिकल्पना अमान्य हो गई, किंतु आधुनिक इलेक्ट्राँन सिद्धांत से इसकी आंशिक पुष्टि होती है।

पाचन क्रिया के बारे में पहले अनुमान था कि आमाशय की दीवार ही यह कार्य करती है, आगे चलकर आमाश्य में सड़ने और किण्वन के सिद्धांत आए। अंत में स्पैलैनज़ानी ने सिद्ध किया कि आमाशय में अम्लयुक्त पाचक रस होता है। पॉस्चर ने रस का स्रोत स्थल बताया और रस में वर्तमान रेनिन नामक एंज़ाइम का पता लगाया, किंतु आमाशय के पाचक रस से आसवन द्वारा नमक की अम्ल अलग करके दिखाने का श्रेय प्राउट को है। साथ ही प्राउट ने यह भी सिद्ध किया कि आमाशय के रस में नमक के अम्ल की उपस्थिति पाचन के लिये अनिवार्य है, यद्यपि वास्तविक पाचन क्रिया में अन्य तत्व भी भाग लेते हैं।

(भानुशंकर मेहता)