प्रवीणराय ओड़छा के महाराज इंद्रजीतसिंह के यहाँ रहनेवाली एक वेश्या जो गायन और नृत्यकला में प्रवीण होने के साथ साथ काव्यरचना में भी चतुर थी। महाकवि केशवदास की यह शिष्या थी। इसकी प्रशंसा सुनकर मुगल सम्राट् अकबर ने इसे अपने दरबार में बुला भेजा किंतु इंद्रजीतसिंह ने इसे वहाँ भेजने से इनकार कर दिया। इसपर उन्हें बादशाह का कोपभाजन बनना पड़ा। अकबर ने उनपर एक करोड़ का जुरमाना ठोंक दिया और प्रवीणराय को जबरन बुलवा मँगाया। प्रवीणराय ने दरबार में उपस्थित होकर अपनी कविता सुनाई और शाह की धाक का वर्णन करते हुए अंत में निवेदन किया 'बिनती राय प्रवीन की सुनिए शाह सुजान। जूठी पातर चखत हैं बारी बायस स्वान।' इसपर अकबर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने प्रवीणराय को ओड़छा में ही रहने की अनुमति दे दी। प्रवीणराय द्वारा रचित कोई काव्यग्रंथ देखा नहीं गया किंतु उसके बनाए हुए कई छंद उपलब्ध हैं जिनसे उसका काव्य-कला-कौशल प्रकट होता है।