प्रवाहण जैवलि इनकी कथा छांदोग्य और बृहदारणयक उपनिषदों में बिलकुल एक जैसी मिलती है। जीवल का पुत्र होने से इनको जैवलि कहते थे, प्रवाहण इनका नाम था। उपनिषद् काल में विदेह, काशी और कोसल की तरह पांचाल देश भी अपनी ज्ञानगरिमा के लिये प्रसिद्ध था। पांचालराज प्रवाहण विद्वान् थे। उनकी सभा में आरुणि का पुत्र श्वेतकेतु सद्य: अपने पिता से विद्या प्राप्त कर पहुँचा था। प्रवाहरण ने उससे पूछा कि तुमने विद्या ग्रहण कर ली है ? उसके हाँ कहने पर प्रवाहण ने उससे पाँच प्रश्न पूछे जिनमें से एक का भी उत्तर श्वेतकेतु से नहीं बन पड़ा। श्वेतकेतु क्रुद्ध होकर अपने पिता के पास गया और उनसे कहने लगा कि पिताजी ! आपने मुझे कैसी शिक्षा दी है कि उस क्षत्रिय बंधु ने मुझसे प्रश्न पूछे और मैं उत्तर न दे सका। इस पर आरुणि ने कहा कि मैं जो कुछ जानता था सब तुम्हें बतला दिया। अत: प्रवाहरण के प्रश्नों का उत्तर स्वयं उन्हें भी नहीं मालूम है। पिता पुत्र पुन: प्रवाहरण के पास गए और उनसे उन प्रश्नों का उत्तर पूछा। प्रवाहरण ने उनसे पहले अपना शिष्यत्व स्वीकार कराया और फिर कहा कि चूँकि अब तक ब्रह्मविद्या क्षत्रियों के हाथ में ही थी इसलिये ब्राह्मण लोग उसके प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सके थे। अब जब कि आरुणि और श्वेतकेतु से उसका शिष्यत्व मान लिया है तो वे ब्रहृमविद्या को ब्राह्मणों के हाथ में दे देंगे। इसके बाद एक एक करके उन्होंने पाँचों प्रश्नों के उत्तर बता दिए।(रामचंद्र पांडेय)