प्रवर्धक (Amplifier) एक युक्ति है, जिसके द्वारा विद्युत् आवेश का आवर्धन होता है। इस युक्ति में एक या दो इलेक्ट्रॉनिक नलिक सम्मिलित रहती हैं। १९३८ ई. में अमेरिकन इंस्टिट्यूट ऑव इंजीनियर द्वारा की गई परिभाषा के अनुसार प्रवर्धक एक युक्ति है, जिसे निर्गत (output), निविष्ट (input) तरंग के मूल लक्षण का परिवर्धित पुनरुत्पादन है और निविष्ट संकेत (input signal) अतिरिक्त अन्य स्रोत से शक्ति पाता है। निर्गत संकेत (output signal) निविष्ट संकेत का समानुपाती हो सकता है, अथवा इन दो में द्विघाती लघुगणकीय या अन्य अरैखिक संबंध हो सकते हैं।
ट्रायोड (triode) निर्वात नली है। इसमें ऋणात्मक इलेक्ट्राड निकालनेवाला उष्ण कैथोड, इन इलेक्ट्रॉनों को आकर्षित करनेवाला धनात्मक पट्टिका तथा कैथोड एवं पट्टिका के मध्य में प्रवाहित होने वाले इलेक्ट्रानों को नियंत्रित करनेवाला एक ग्रिड (grid) रहता है। यदि ग्रिड एवं कैथोड के मध्य में प्रवर्षित होनेवाले संकेत आरोपित किया जाए, तो संकेत वोल्टता का धनात्मक भाग ग्रिड को पट्टिका की ओर अधिक इलेक्ट्रॉन प्रवाहित करने के लिये प्रेरित करेगा और संकेत वोल्टता का ऋणात्मक ग्रिड से पट्टिका की ओर कम इलेक्ट्रॉन भेजेगा। इस प्रकार निर्वात नलिका तात्कालिक धारा के प्रवाह को नियंत्रित करती है।
बैटरी या धनात्मक पट्टिका के अन्य स्रोत से विद्युद्धारा तथा सहगामी विद्यूदूर्जा आती है। बैटरी से विद्युत्परिपथ में प्रवाहित होनेवाली विद्युदूर्जा का नियंत्रण होता है। अत: प्रवर्धन संभव है।
वर्गीकरण � प्रवर्धकों के वर्गीकरण की कई विधियाँ हैं। प्रथम प्रकार के वर्गीकरण में वोल्टता (voltage) प्रवर्धक तथा शक्ति (power) प्रवर्धक आते हैं। वोल्टता प्रवर्धक की अभिकल्पना इस प्रकार की होती है कि इसके द्वारा अधिकतम वोल्टता दी जाय जब कि अधिक शक्ति देना आवश्यक नहीं है। शक्तिप्रवर्धक शक्ति का अधिक विकास करता है, जबकि इसका वोल्टता स्तर निरपेक्ष रहता है।
दूसरे प्रकार के वर्गीकरण के आवृत्ति प्रवर्धक लगभग ३० से लेकर १५,००० साइकिल प्रति सेकंड आवृत्ति बैंड वाले भाषणों तथा कार्यक्रमों के संकेतों का प्रवर्धन करते हैं। रेडियो आवृत्ति प्रवर्धक चित्र १. वर्ग अ का प्रवर्धक (अ) परिचालन अभिलाक्षणिक वक्र तथा (ब) परिपथ चित्र क. प्रत्यावर्ती पट्टिका धारा विचरण, ख. दिष्ट धारा, ग. समय, घ. प्रवर्धित निर्गत वोल्टता, च. पट्टिका भार प्रतिरोधक, छ. फिलोमेंट ज. इलेक्ट्रान धारा, झ. पट्टिका संभरण वोल्टता, ट. ग्रिड संकेत वोल्टता, थ. ग्रिड अभिनति, दध. ग्रिड वोल्टता, प. प्लेट धारा, तथा फ. अभिलाक्षणिक वक्र।
उपर्युक्त आवृत्ति से अधिक आवृत्तिवाले संकेतों के लिये उपयोगी है। यह प्रवर्धक ५०,००० साइकिल प्रति सेकंड से भी अधिक आवृत्तिवाले संकेतों के लिये काम में आता है। कुछ प्रवर्धकों के वर्णन निम्नलिखित हैं।
वर्गं अ � इस वर्ग के प्रवर्धक इस प्रकार कार्य में लाए जाते हैं कि नलिका की पट्टिका पर इलेक्ट्रॉनों की धारा (ज) का प्रवाह हर समय होता रहे (देखें चित्र १.)। ग्रिड (ड) को अभिनत (biased) किया जाता है। नली और सहचारी परिपथ के संयुक्त अभिलाक्षणिक वक्र के बिंदु फ पर क्रिया होती है। आरोपित भाषण या कार्यक्रम ग्रिड-संकेत वोल्टता (त) ग्रिड को अभिगत वोल्टता की अपेक्षा कम से कम और अधिक ऋणवाला बनाता है। ग्रिड संकेत (grid-signal) के ये तात्कालिक परिवर्तन, नली और पट्टिका भार रोधक (plate load resistor), च, में कहनेवाली विद्युद्धारा को परिवर्तित करते हैं। शुद्ध अभिकल्पना के कारण निर्गत संकेत वोल्टता, निविष्ट संकेत वोल्टता से बढ़ जाएगी और संकेत प्रवर्धित हो जाएगा।
सामान्यतया ट्रायोड से १० को वोल्टता प्रवर्धन होता है। ०.१ वोल्ट के अनुप्रयुक्त संकेत की निर्गत वोल्टता १ वोल्ट होगी। टेट्रोडों (tetrodes) और पेनटोडों (pentodes) का उपयोग प्राय: प्रवर्धकों में होता है। इन नलियों में इलेक्ट्रोड अधिक रहते हैं, जिनके कारण प्रवर्धन क्षमता बढ़ जाती है। एक नली से कई सौ गुना प्रवर्धन प्राप्त होता है।
वर्ग ब � इस वर्ग के प्रवर्धक शक्तिप्रवर्धक हैं। ये इस प्रकार कार्य में लाए जाते हैं कि इलेक्ट्रॉन धारा (ग) नलिकाओं की पट्टिकाओं पर ग्रिड-संकेत वोल्टता (ट) की प्रत्येक साइकिल के लगभग आधे के लिये प्रवाहित हो (देखें चित्र २.)। ग्रिड इस प्रकार अभिनत किया गया है कि ग्रिड-संकेत वोल्टता (ट) के धनात्मक अर्धसाइकिलों के लिये पट्टिका धारा (क) प्रवाहित होती हैं। ऐसा निविष्ट परिणामित्र (झ) जिसका मध्य परिपथ से संयोजित (center topped) किया गया है, काम में आता है। इसलिये संकेत वोल्टता एक ग्रिड को कम और दूसरे को अधिक ऋणीकृत करती है। परिणामस्वरूप एक नली पट्टिका धारा का स्पंद पारित करती है तो दूसरी नली स्पंद पारित करती है। ये स्पंद निर्गत-परिणाममित्र (च) की ऐसी प्राथमिक कुंडली से गुजरते हैं, जिसका मध्य परिपथ से संयोजित है। इस निर्गत परिपथ की व्यवस्था के कारण विकृति निरसित हो जाती है तथा लाउडस्पीकर (घ) तथा अन्य प्रयुक्तियों में अविकृत प्रवर्धित संकेत प्रवाहित होने लगते हैं।
वर्ग स � इस वर्ग के प्रवर्धक शक्तिप्रवर्धक हैं। ये इस प्रकार कार्य में लाए जाते हैं कि ग्रिड संकेत वोल्टता की प्रत्येक साइकिल के आधे से कम के लिये इलेक्ट्रॉन धारा नली की पट्टिका पर बहे। ग्रिड इस प्रकार अभिनत किया जाता है कि ग्रिड-संकेत-वोल्टता के धनात्मक आधे साइकिलों के केवल एक भाग के लिये पट्टिका धारा प्रवाहित हो। परिणामी धारा-स्पंदें समांतर परिपथ से प्रवाहित होती हैं। इस परिपथ में संधारित्र तथा प्रेरक लगे रहते हैं। यह समस्वरित परिपथ संनादियों को धारा स्पंद में दवा देता है, लेकिन मूल आवृत्ति संकेत को निर्गत परिपथ में पारित कर देता है।
ट्रांजिस्टर � अब निर्वात नली प्रवर्धकों का स्थान ट्रांजिस्टर लेते जा रहे हैं। इसका कारण यह है कि इनको कम वोल्टता की आवश्यकता होती है और इनकी आकृति एक मटर के दाने के सदृश होती है, अत: ये स्थान भी कम घेरते हैं (देखें संपुट रोधक)
उपयोग � अधिकांश श्रव्य आवृत्ति प्रवर्धक वर्ग अ के हैं। इस वर्ग के प्रवर्धकों में विकृति लगभग शून्य होती है। ये भाषण और कार्यक्रमों के संकेतों के प्रवर्धन के काम में आते हैं।
चित्र २. वर्ग ब का प्रवर्धक
(अ) परिचालन अभिलाक्षणिक वक्र, थ, और (ब) परिपथ।
क. पट्टिका धारा, ख. समय, ग. इलेक्ट्रॉन धारा, घ. लाउडस्पीकर, च. निर्गत परिणामित्र, छ. पट्टिका संभरण धारा, ज. ग्रिड अभिनति वोल्टता, झ. निविष्ट परिणामित्र, ट. ग्रिड-संकेत-वोल्टता, ठ. ग्रिड-संकेत-वोल्टता, ङ ग्रिड अभिनति, ढ. ग्रिड वोल्टता, त. पट्टिका धारा तथा थ. अभिलाक्षणिक वक्र।
अधिकांश रेडियों अवर्धक वर्ग स के हैं, जिनमें विकृति अधिक होती है। ये प्रवर्धक रेडियो स्टेशनों पर माइक्रोफेन द्वारा प्रेषित ऊर्जा को प्रवर्धित करने के काम में आते हैं, जिससे मीलों दूर स्थित ग्राहक ऊर्जा को ग्रहण कर ले।
टेलीफोन की दूरगामी लाइनों मे भी दूरी के कारण जो ऊर्जा की हानि होती है, उसे पूरा करने के लिये प्रवर्धकों का उपयोग किया जाता है। तापायनिक (thermionic) नलिका-प्रवर्धकों का उपयोग टेलिविजन में, चिकित्सा एवं भौतिक अनुसंधान में, हवाई जहाज एवं पनडुब्बी संसूचक में, प्रकाशविद्युत् तथा अन्य यांत्रिक नियंत्रणों में होने लगा है। बड़े हवाई जहाज की स्टियरिंग के लिये, जहाजों पर टरेटों को घुमाने के लिये तथा टरबाइनों के नियंत्रण के लिये द्रवचालित प्रवर्धक उपयोग में आते हैं।
सं. ग्र. � इंसाइक्लोपीडिया अमरीकाना; कोलियर्स इंसाइक्लोपीडिया, इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका। (अजितनारायण मेहरोत्रा)