प्रभामंडल (Halo) काफी ऊँचाई पर स्थित पतली परतवाले बादलों के बीच से जब सूर्य या चंद्र को देखते हैं, तब उनके चारों तरफ वर्णयुक्त प्रकाशमान गोल घेरा दिखाई पड़ता है, जिसे प्रभामंडल कहते हैं। साधारणतया जो दैदीप्यमान घेरा दिखाई पड़ता है, वह पृथ्वीतल पर खड़े दर्शक पर २२० का कोण बनाता है।
ऊँचाई पर बने सफेद बादल वास्तव में बर्फ के षट्पार्श्ववाले क्रिस्टल (hexagonal crystals) होते हैं, जिनके बीच से प्रकाश की किरणें अपवर्तित होकर दर्शक तक पहुँचती हैं (देखें चित्र १.)। प्रकाश की किरणें समान रूप से सभी दिशाओं में विचलित होकर निकलनी चाहिए, परंतु अपर्वतन कोण में अल्पतम विचलन के कोण (२२०) के पास अंतर अत्यधिक कम होने के कारण, सूर्य या चंद्र एक २२० के वर्तुल से घिरा प्रतीत होता है। इस कोण की गणना निम्न सूत्र से की जा सकती है :
जहाँ m = अपवर्तनांक = १.३३ (बर्फ के लिये), आ (A) = ६००, d = अल्पतम विचलन = २२० परिकलित मान।
इस २२० वाले प्रभामंडल का आंतरिक भाग लाल एवं बाहरी नीला होता है, तथापि इसके वर्ण इंद्रधनुष (rainbow) की अपेक्षा अस्पष्ट होते हें।
इसी प्रकार का एक दूसरा प्रभामंडल ४६० पर भी लक्षित होता है। (चित्र २.) यह षट्पार्श्विक क्रिस्टल के अभिलंब तलों के बीच से अपवर्तन होने के कारण, यथा तल अद एवं तल आदा एवं तल या दा (जिनके बीच का कोण ९०० है), बनता है (देखें चित्र २.)। इसके कोण की गणना उपर्युक्त सूत्र से की जा सकती है। यहाँ केवल पार्श्व का कोण ९०० रखना होगा।(सुरेंद्रकुमार अग्रवाल)