प्रबलित सीमेंट-कंक्रीट वह कंक्रीट है जिसमें धातु विशेषत: इस्पात, इस प्रकार गड़ा रहता है कि कंक्रीट एवं इस्पात दोनों मिलकर बल का प्रतिरोध करते हैं। सीमेंट-कंक्रीट संपीडन में मजबूत और तनाव में स्वाभाविक रूप से कमजोर होता है। तनाव में इसकी मजबूती संपीडन के समय की मजबूती का बीसवाँ भाग हो जाती है। यह अनुपात सीमेंट-कंक्रीट की कोटि में सुधार के साथ घटता है। आधारी सरंचनाओं के निर्माण के लिये, जिनमें तनाव भी उत्पन्न हो जाता है, सीमेंट-कंक्रीट को किसी अन्य पदार्थ से प्रबलित कर लेना आवश्यक है।
उच्च तनाव-सामर्थ्य, उच्च प्रत्यास्थता गुणांक (modulus of elasticity), कंक्रीट के बराबर ही प्रसार तथा संकोच गुणांक, प्रचुर प्राप्यता तथा सस्ता होने के गुणों के के कारण प्रबलनकारी पदार्थ के रूप
चित्र १.
(अ) धरन का झुकाव; (ब) धरन की अनुप्रस्थ काट; (स) विकृति आरेख; (द) प्रतिबल आरेख
च. महत्तम संपीडन के रेशे, छ. उदासीन तल, ज. इस्पात का छड़, झ. संपीडन मंडल, ट. प्रबलीकारी छड़ ठ. संपीडन क्षेत्र का केंद्र तथा ङ तनाव मंडल
में नरम इस्पात का प्रयोग किया जाता है। बाँस बेंत, काच, ऐस्बेस्टस आदि भी प्रबलन के लिये आजमाए जा चुके हैं, लेकिन इनके उपयोग में सफलता कम मिली है। बाँस कुछ बेहतर सिद्ध हुआ, किंतु आर्द्रता की घट बढ़ से बाँस के सिकुड़ने और फैलने के कारण कंक्रीट से इसका जोड़ टूट जाता है।
१८५० ई. में पैरिस की प्रदर्शनी में लैंबॉट (Lambot) नामक फ्रांसासी ने प्रबलित कंक्रीट को नौका प्रदर्शित करके प्रबलित कंक्रीट निर्माण का प्रारंभ किया, यद्यपि इसके आविष्कार का श्रेय जोज़ेफ
चित्र २.
(अ) धरन का उन्नयन; (ब) धरन की अनुप्रस्थ काट
क. झुकाए हुए छड़, ख. खड़े छल्ले, ग. वास्तविक पाट, घ. मुख्य प्रबलन च. खड़े छल्ले तथा छ. मुख्य प्रबलन।
मोनियर (Joseph Monier) को है, जिसने प्रबलित सीमेंट-कंक्रीट की धरनें, पाइप, टंकियाँ आदि अनेक सामग्रियाँ तैयार कीं। २०वीं शताब्दी तक प्रबलित सीमेंट-कंक्रीट का उपयोग सीमित था, पर इधर ५० वर्षो में प्राय: सभी निर्माण कार्यो में इसका उपयोग हुआ है। अग्निसह्यता, असंक्षारणीयता, टिकाऊपन और सुंदरता आदि गुणों के कारण प्रबलित सीमेंट-कंक्रीट गृहनिर्माण के लिये इस्पात से अच्छा पड़ता है। परंतु प्रबलित सीमेंट-कंक्रीट से वे ही निर्माण कार्य होते हैं जिनमें अत्यधिक कंपन, झटका, संघट्ट (impact) तथा आसर्ती प्रतिबलों के उत्पन्न होने की संभावना रहती है।
प्रबलित सीमेंट-कंक्रीट विषमांग पदार्थ है ओर भारण (loading) में उसका व्यवहार किसी दृढ़ सिद्धांत के अनुसार नहीं होता, यद्यपि
चित्र ३.
कंक्रीट के लिये प्रतिबल-विकृति वक्र रेखा कुछ विशेष परिसीमनों में यह समांग पदार्थ जैसा व्यवहार करता है। इसलिये प्राय: प्रबलित सीमेंट-कंक्रीट के निर्माणों में प्रतिबलों के विश्लेषण के लिये सरल करनेवाली कुछ धारणाओं के साथ प्रत्यास्थ सिद्धांत (Elastic Theory) का प्रयोग किया जाता है। मान लें, (१) तनाव पड़ने पर कंक्रीट चिटकता है, तनाव क्षेत्र में कंक्रीट प्रभावहीन है और समूचा तनाव इस्पात झेलता है, (२) इस्पात की प्रत्यास्थ सीमा में कंक्रीट और इस्पात का आसंजन (adhesion) संपूर्ण होता है, (३) सभी प्रतिबलों पर यंग का गुणांक समान रहता है तथा (४) नमन से पहले जो खंड समतल होता है, नमन के बाद भी वह समतल रहता है, अर्थात् तंतुओं की विकृतियाँ उदासीन अक्ष (neutral Axis) से अपनी दूरी की समानुपाती हैं।
प्रतिबल विकृति आरेख चित्र १. के अनुसार उदासीन अक्ष की गहराई
जहाँ त (t) = इस्पात में तनाव प्रतिबल, सं (c) = इस्पात में संपीडन
चित्र ४. खोखले खपरैलों के साथ टी-धरनें (T-beams)
क. पटिया प्रतिबल, ख. छत या फर्श की पटिया, ग. खोखले खपरैल तथा घ. मुख्य प्रतिबलन।
प्रतिबल, मा (m) = इस्पात और कंक्रीट का गुणांक (modulus) अनुपात। संतुलन की अवस्था में कुल तनाव = कुल संपीडन,
या, क्षत � त
=
जहाँ क्षत (At) तनाव की ओर इस्पात का क्षेत्रफल है। तनाव इस्पात से संपीडन बलों के गुरुत्व केंद्र की दूरी गुदू (Jd) है।
श्
साधारण १:२:४ कंक्रीट मिश्रण के लिये प्रतिबल है :
सं (c) = ७५० प्रति वर्ग इंच (p.s.i), त (t) = १८,०००
प्रति वर्ग इंच (p. s. i.) मा (m) = १८, = उ (N) ३/७, गु (J) = ६/७ (Q) = १३८
प्रतिरोध का घूर्ण = १३८ ख ग२ ..........(३)
चित्र ५. धरनों की काटें
क. एल-धरन (L-beam), ख. वास्तविक पाट तथा ग. पटिया
इसके बाद बंध तथा अपरूपण (shear) में धरन का परीक्षण किया जाता है। सूत्र हैं :
तथा (२) बंध प्रतिबल,
बं प्र
जहाँ फ (F) खंड पर अपरूपक बल तथा S प (S ०) तनाव पार्श्व में इस्पात छड़ों की कुल परिमाप (perimeter) है।
यदि १:२:४ कंक्रीट मिश्रण के लिये अपरूपक प्रतिबल ७५ प्रति वर्ग इंच (p. s. i.) से अधिक है तो चित्र २. में प्रदर्शित
चित्र ६.
प्रबलित कंक्रीट के सतंभ
(अ) सर्पिल प्रबलनवाला, (ब) पार्श्वक तानोंवाला, (स) इस्पात के खोलवाला, क. अनुदैर्ध्य दंड ख. तथा घ. सर्पिल और ग. पार्श्विक तानें।
आकार के खड़े छल्ले त.क्षत/अप्रख (t. At/s. b) अंतर पर लगाने चाहिए, जहाँ त (t) इस्पात में उचित प्रतिबल, क्षत (At) छल्ले की आड़ी काट का क्षेत्रफल और अप्र (s) खंड पर अपरूपक प्रतिबल है।
यदि चित्र २. में प्रदर्शित तरीके से सिरे हुकदार हों, तो बंध प्रतिबल १७५ प्रति वर्ग इंच (p.s.i.) से कम होना चाहिए।
प्रतिबल कंक्रीट धरन में प्रतिबल की सामान्य व्यवस्था चित्र २. में प्रदर्शित है।
प्रबलित कंक्रीट सरंचना सिद्धांतों में अभिनव विकास � प्रतिबल विकृति आरेख चित्र ३. सभी प्रतिबलों पर प्रत्यास्थता गुणांक का स्थिर न होना प्रदर्शित करता है, जिससे स्पष्ट है कि नामनाधीन अंग के खंड पर रैखिक प्रतिबल का वितरण नहीं हो सकता, जैसा प्रत्यास्थता सिद्धांत की प्रयुक्ति में मान लिया गया था। इस अस्थिरता को दूर करने के लिये 'प्लास्टिक सिद्धांत' (या चरम भार सिद्धांत)
चित्र ७.
(अ) वर्ग खसका, (ब) अविच्छिन्न खसका (footing)
क. और क� स्तंभ तथा ख. और ख.� दीवार।
का सुझाव दिया गया है। इस सिद्धांत के अनुसार टूट (failure) के समय कुल धारिता के आधार पर अभिकल्पन किया जाता है और निरापद रूप से प्रयुक्त होनेवाले भार के निर्धारण के लिये भार घटक का विचार किया जाता है।
प्रबलित सीमेंट-कंक्रीट की प्रयुक्ति � प्रबलित सीमेंट-कंक्रीट से निर्मित कुछ अत्यंत महत्व के निर्माण ये हैं :
फर्श तथा छत की पटिया � अनेक प्रकार की कंक्रीट फर्शो का प्रयोग प्रचलित है। १० फुट तक के पाट में इकहरी प्रबलित पटियों का प्रयोग होता है। २० फुट पाट के लिये यदि संभव हुआ तो दोहरी प्रबलित पटियों की व्यवस्था की जाती है, क्योंकि इनका निर्माण सरल है। इनसे बनी छत चपटी बनती है तथा इनसे आर्थिक बचत होती है। खोखली खपरैल (टेराकोटा) के निर्माण में चपटी पटियों का उपयोग किया जा सकता है, जिसमें खंभों पर पटियों को रख दिया जाता है।
धरन � ये विभिन्न खंडों में सुविधानुसार बनाई जाती हैं। छोटे पाट में जहाँ खंड की आकृति पर बंधन नहीं होता, इकहरी प्रतिबलित आयताकार धरन का उपयोग होता है। बड़े पाट के लिये अंग्रेजी अक्षर (T) के आकार के धरन का प्रयोग मितव्ययी है। जहाँ आधार निर्धारित होता है, वहाँ धरन संपीडन में प्रबलित होती हैं, परंतु यह मितव्ययी नहीं है। चित्र ५. में धरन के विभिन्न आकार, जिनका उपयोग प्रचलित है, प्रदर्शित हैं।
समतल छत के लिये खोखली खपरैल या उल्टी टी (T) धरनों का उपयोग करना पड़ता है। अँग्रेजी के (L) अक्षर के आकार की धरन
चित्र ५ (फ) में प्रदर्शित विधि से पुलिया के पाट में लगाई जानेवाली पटिया में लगाई जाती है।
चित्र ८. सीमेंट कैंक्रीट की पक्की सड़का की अनुप्रस्थ काट
क. शीर्ष (crown), ख. बिटुमेन से मुँदाई, ग. निचली सतह तथा घ. ५ फुट सीमेंट कंक्रीट पर � � j छड़।
स्तंभ (Columns) � स्तंभ किसी भी संरचना के महत्वपूर्ण अंग होते हैं। एक स्तंभ के टूटने से समूचा भवन, जो उसके सिरे की दशाओं और भार पर निर्भर करता है, ढह सकता है। प्रत्यक्ष बोझ सीधे संपीडक प्रतिबल उत्पन्न करते हैं, जबकि बोझ की उत्केंद्रता (eccentricity) नमन प्रतिबलों को संपीडक और तन्य (tensile) बनाती है।
चित्र ९. पुल की अनुप्रस्थ काट
क. पूरा २२ फुट चौड़ा सड़क मार्ग, ख. तीन इंच मोटी ऊपरी सतह तथा ग. दृढ़क (stiffener)।
स्तंभ का अभिकल्पन यह मान कर किया जाता है कि जब कंक्रीट और इस्पात दोनों पदार्थ अपनी भारवाही धारिता को पहुँच जाते हैं तब स्तंभ ढह जाता है। इससे कंक्रीट के प्रतिबल के साथ ही परिवर्तनशील मात्रिक अनुपात (modular ratio) का उपयोग नहीं करना पड़ता। प्रतिबल को सुरक्षा के लिये उपयुक्त कारक स्वीकार करते हुए कंक्रीट और इस्पात के लिये ग्राह्य प्रतिबल निर्दिष्ट कर दिया जाता है। स्तंभों के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं :
(अ) सामान्य कँक्रीट स्तंभ या पाया (pier)� इसकी ऊँचाई, न्यूनतम पार्श्विक परिमाप (lateral dimension) की छह गुनी तक हो सकती है।
(ब) प्रबलित कँक्रीट स्तंभ � इसकी ऊँचाई न्यूनतम पार्श्विाक परिमाप की ४० गुनी तक हो सकती है। परिमाप के चारों ओर अनुदैर्ध्य प्रबलन की व्यवस्था की जाती है। पार्श्विक प्रबलन, उचित दूरियों पर पार्श्विाक पट्टियों (hoops) से, अथवा घने लपटे हुए सपिंलों (spirals) से युक्त होता है। सामान्य पट्टी प्रबलनवाले स्तंभों की भारवाही धारिता, धा (P), निम्नलिखित सूत्र से ज्ञात होती है:
धा = कंप्र. कंक्ष + इप्र. इक्षे
[P = C. Ac + At],
जहाँ कंप्र (C) = कंक्रीट में स्वीकार्य प्रतिबल, कंक्ष (Ac) = कंक्रीट का क्षेत्रफल, इप्र (t) = इस्पात में स्वीकार्य प्रतिबल तथा इक्षे (At) = अनुदैर्ध्य इस्पात छड़ों का क्षेत्रफल।
घने लपेटे हुए सर्पिलों (spiral) से भी पार्श्विक प्रबलन होता है। ऐसी स्थिति में भारवाही धारिता धा (P) निम्नलिखित सूत्र से ज्ञात होगी :
धा = कंप्र. कंक्षे + २ इत. प्रक्षे + इक्ष, इप्र
[P = C.Ak + 2 te Ae + At. t]
जहाँ कंक्षे (Ak) = सर्पिल के भीतरी भाग में और उससे साफ अलग स्थित, कंक्रीट क्रोड का नेट (net) क्षेत्रफल; इत (te) = सर्पिल इस्पात में स्वीकार्य तनाव प्रतिबल; प्रक्षे (Ae) = सर्पिल प्रबलन का तुल्यांक क्षेत्रफल, अर्थात् स्तंभ की लंबाई की प्रति इकाई सर्पिल का आयतन है।
यह तभी होगा जब कंप्र. कंक्षे + 2 इत. प्रक्षे + इक्ष. इप्र का मान ०.५ असं कंज्ञ से कम हो, जहाँ अस (Fc) कंक्रीट नलिकाओं का अवभंजन सामर्थ्य (crushihg strength) है।
(स) इस्पात क्रोड स्तंभ � ढाँचे के इस्पात के स्तंभ नाममात्र के सर्पिल प्रबलनवाले कंक्रीट से ढाँपे जाते हैं। उचित भार धा (P) �निम्नलिखित सूत्र से ज्ञात किया जाता है :
धा = .२२५ क्षे. कंप्र + इक्षे. प्र + कोक्षे
[P = .225 A. C. + At. t + fm. Am]
जहाँ, क्षे (A) = कंक्रीट खंड का नेट (net) क्षेत्रफल, क्रोक्षे (Am) = इस्पात या इसे लोहे के क्रोड की आड़ी काट का क्षेत्रफल, इक्षे (At) = अनुदैर्ध्य इस्पात छड़ो का क्षेत्रफल, संप्र (fm) = संपीडन में धातुक्रोड में स्वीकार्य प्रतिबल, कंप्र (C) = कंक्रीट में संपीडन में स्वीकार्य प्रतिबल तथा प्र (t) = स्तंभ के छड़ों में स्वीकार्य प्रतिबल।
धातुक्रोड की आड़ी काट का क्षेत्रफल, स्तंभ के समग्र क्षेत्रफल के २० प्रति शत से अधिक नहीं होना चाहिए और संमिश्र खंड के धातु क्रोड का अभिकल्पन इस प्रकार होना चाहिए कि गिलाफ चढ़ने से पूर्व अपने पर रखी हुई किसी भी संरचना या अन्य भार को यह निरापद रूप से वहन कर सके।
चित्र १४. संतुलित टोडा पुल में प्रबलन का ब्यौरा नींव (Foundations) � नींव के कार्य में प्रबलित सीमेंटकंक्रीट के अनेक उपयोग हैं। इस विधि से पर्याप्त सामर्थ्य की पुश्ता दीवार (retaining wall) उन स्थानों पर निर्मित की जा सकती है, जहाँ घन कंक्रीट की दीवार के लिये स्थान नहीं होता। प्रबलित कंक्रीट की फैली हुई पतली नींव पर भारी स्तंभ खड़े करने के पूर्ण कंक्रीट निर्माण की तुलना में भार, आयतन, निर्माण की गहराई आदि में बहुत बचत होती है। स्तंभों की नींव के लिये वर्गाकार या आयताकार खसका (footing) तैयार किया जा सकता है (देखें चित्र ७.) दीवारों की नींव के लिये अविछिन्न खसका (continuous footing) बनाया जाता है। भूमि प्रतिक्रिया से उत्पन्न नमन घूर्ण के लिये खसके अभिकल्पन किया जाता है।
अघम भूस्तर (poor soil strata) में भारी सामानों के पारेषण के साधनों के रूप में प्रबलित कंक्रीट के स्थूणों (piles) ने लकड़ी के स्थूणों का स्थान से लिया है।
सड़कें � भारी यातायात की सड़कों की सबसे नीचेवाली परत के रूप में सादे और प्रबलित कंक्रीट का उपयोग हुआ है। कंक्रीट की सड़क पर भार वितरण बेहतर होता है, जिससे असमान निषदन (settlements) नहीं होते। कंक्रीट सड़कें धूलरहित और मौसमी प्रभावों से अप्रभावित रहती हैं (देखें चित्र ८.)
पुल � धरनों तथा पटियों से औसत २५-३० फुट तक के पाट के पुल बनाए जा सकते हैं। टी (T) आकृति के पुल ६० फुट तकवाले पाट के लिये आर्थिक दृष्टि से लाभदायक हैं (देखें चित्र ९.)। संरचना के अपने अचल भार में वृद्धि की अधिकता के कारण इस प्रकार के निर्माण का क्षेत्र सीमित है। प्रबलित कंक्रीट मेहराबदार पुलों के निर्माण के लिये बहुत उपयुक्त है। भरे हुए चापस्कंध (spandrel) के मेहराबाद पुल (देखें चित्र १०.) १००-१५० फुट के पाट के लिये उपयुक्त हैं१ यहाँ अंत्याधार (abutment) तथा खुली ऊँचाई (head room) की स्थितियाँ उपयुक्त होती हैं। मेहराब का प्रधान लाभ यह है कि इसमें एक ही अंग भारवाहन कर लेता है, जबकि धरन या कैंची (truss) में दो प्रधान अंग और जाल पद्धति (web system) भार वहन करते हैं। झिरीदार चापस्कंध का मेहराबादार पुल ३०० से ४०० फुट तक के पाट के लिये उपयुक्त है (देखें चित्र ११)।
नींव के नम्र (yielding) न होने पर दो कब्जेदार प्रत्यंचा गर्डर (vowstring girder), (देखें चित्र १२), उपयोगी होता है। पाट ८०-१५० फुट तक सीमित है। नींव कमजोर होने और असमान ठहराव की आशंका होने पर, ३०० फुट तक के पाट के लिये संतुलित टोडा पुल (cantilever bridge) का उपयोग किया जा सकता है (देखें चित्र १३. और १४.)।
जलव्यवस्था संबंधी निर्माण (Hydraulic works) � सभी प्रकार की टंकियों, जैसे इंत्जी टंकी (Intze tank), वृत्ताकर टंकी और ऊँचे बुर्जो पर आरोपित टंकियों के निर्माण में प्रबलित सीमेंटकंक्रीट का प्रयोग उपयोगी होता है (देखें चित्र १५.)। वृत्ताकार टंकियों में चक्र प्रबलन (hoop reinforcements) की व्यवस्था होती है, जिससे पार्श्व पर पड़नेवाले जल के दबाव के विस्फोटक प्रभाव का निरोध होता है। जहाँ पानी के दबाव का प्रतिरोध करना है, वहाँ उचित जलरोक प्रभाव के लिये समृद्ध कंक्रीट मिश्रण होना चाहिए, जिसका अनुपात १:१: ३ से कम न हो।(जयकृष्ण)