प्रत्यास्थता (Elasticity) वह गुण है जिसके कारण सीमित बाह्य बल के परिमाणस्वरूप पदार्थो में उत्पनन विकृति (strain), बाह्य बल के कार्य न करने पर आंतरिक बल (प्रतिबल) के कारण दूर हो पुन: प्रारंभिक स्थिति प्राप्त हो जाती है। बाह्यबल के परिमाण की धीरे धीरे यदि बढ़ाया जाय तो विकृति समान रूप से बढ़ती जाती है, साथ ही साथ आंतरिक प्रतिरोध भी बढ़ता जाता है। परंतु एक सीमा के उपरांत बाह्यबल के बढ़ाए जाने पर, विकृति में स्थायी परिवर्तन हो जाता है, अर्थात् इस अवस्था में बाह्यबल हटा दे तो वस्तु प्रारंभिक आकार प्रकार को नहीं प्राप्त करती।
यह परिवर्तित विकृति स्थायी हो जाती है। अब पहले ही की तरह बाह्य बल को परिवर्तित करें तो इस स्थायी परिवर्तन के अपेक्षाकृत समान रूप से विकृति में परिवर्तन होता है। यह स्थायी परिवर्तन लानेवाला, इकाई क्षेत्र पर लगनेवाला बल ही 'प्रत्यास्थता सीमा' (Elastic limit) कहलाता है। इस बल का परिमाण और भी बढ़ाया जाय तो पदार्थ में प्रत्यास्थता का गुण नष्ट हो जाता है और पदार्थ में बल की दिशा में लगातार परिवर्तन शुरू हो जाता है, इस गुण को सुघट्यता (Plasticity) कहते हैं।
प्रत्यास्थता सीमा के भीतर, विकृति वस्तु में कार्य करनेवाले प्रतिबल की समानुपाती होती है। यह एक प्रायोगिक तथ्य है एवं हुक के नियम (Hook's law of elasticity) के नाम से विख्यात है। यहाँ विकृति की माप प्रारंभिक इकाई आकार में उत्पन्न परिवर्तन से की जाती है।,
किसी वस्तु पर लगाया गया बल, किसी बिंदुविशेष पर कार्य न कर, उसके किसी तल पर कार्य करता है। फलस्वरूप इसकी आंतरिक प्रतिक्रिया होती है। अत: इस आंतरिक प्रतिक्रिया की माप ईकाई क्षेत्र पर कार्यरत बल से की जाती है, जिसे प्रतिबल (Stress) कहते हैं।
किसी पदार्थ पर बाह्य तनाव (tension) के कारण तनाव की दिशा में कार्यरत प्रतिबल एवं उसी रेखा में उत्पन्न विकृति से रैखिक प्रत्यास्थता का ज्ञान होता है। इस स्थिति में 'हुक' के नियमानुसार :
=
य (Y),
एक स्थिरांक, जिसे
यंग प्रत्यास्थता
गुणांक (Young's
Modulus Of Elasticity) कहते
हैं।
इस रैखिक प्रतिबल के कारण रैखिक विकृति के साथ साथ अनुप्रस्थ दिशा में भी विकृति उत्पन्न हो जाती है, जैसे किसी तार के एक सिरे को बाँध कर दूसरे सिरे पर भार लटकाया जाय, तो तार की लंबाई में वृद्धि होगी ही, पर साथ ही साथ इसके व्यास में भी कमी आ जाएगी। प्रति इकाई प्रतिबल से उत्पन्न अनुप्रस्थ विकृति पदार्थ के लिये प्वासॉन अनुपात (Poission's Ratio) कहलाती है।
जब पदार्थ को सभी दिशाओं से दबाया जाय, या दबाव डाला जाय, तब वस्तु के आयतन में विकृति होती है। इस अवस्था में ईकाई आयतन में विकृति लानेवाले प्रतिबल को आयतन प्रत्यास्थता गुणांक (Bulk Modulus Of Elasticity) कहते हैं। यंग गुणांक, प्वासॉन अनुपात एवं आयतन प्रत्यास्थता गुणांक के बीच सरलता के साथ संबंध निकाला जा सकता है।
चित्र १. में ईकाई घन दिखाया गया है, जिसके सभी फलकों पर समान रूप से बल फ (f) लग रहा है। यदि यंग गुणांक य (Y), प्वासॉन अनुपात प (m ) एवं आयतन प्रत्यास्थता गुणांक आ (K) हो तो यय� , रर� एवं लल� दिशा में उत्पन्न विकृति को सारिणी में दिखाया गया है।
सारणी १.
प्रतिबल (Stress) फ (f) |
परिवर्धन (Extension) यय� रर� लल� |
कुल परिवर्धन |
घन की परिवर्धित भुजा |
यय� दिशा में |
(m �f) -पफ -पफ |
- २पफ |
१+ - २पफ |
रर� दिशा में |
- पफ - पफ |
- २पफ |
१+ - २पफ |
लल� दिशा में |
- पफ - पफ |
- २पफ |
१+ - २पफ |
अभी तक की वर्णित प्रत्यास्थता में प्रतिबल की दिशा में एवं अनुप्रस्थ दिशा में उत्पन्न विकृति को दृष्टिगत रखा गया था। यदि प्रतिबल फ (f) किसी तल के समांतर कार्य करे, तो एक तल की अपेक्षाकृत अन्य तल सरकने का प्रयास करते हैं तथा आकृति में अंतर आ जाता है (देखें चित्र २.), जिसे अपरूपण (Shear) कहते हैं। यहाँ अपरूपण विकृति की माप तल द अ तथा द� अ तल के बीच के कोण से की जाती है। यदि अपरूपण प्रत्यास्था गुणांक वि (h ) हो तो
अपरूपण गुणांक, वि =
चित्र २. में हम देखते हैं कि अपरूपण में यदि कर्ण दब संकुचित होता है, तो उसकी लंबवत् दिशा में कर्ण अस बढ़कर अस� हो जाता है। अत: हम कह सकते हैं कि दो लंबवत् दिशाओं में क्रमश: आकुंचन एवं विस्तारण लाया जाय, तो यह अपरूपण के तुल्य हो सकेगा।
परंतु चित्र २. में दब दिशा में आकुंचन
दम =
दद� कोज्या
द� दम =
दद� कोज्या
उ दअ स्पज्या q
. कोज्या
(जहाँ
q छोटा है
तथा चक्रीय माप
में व्यक्त है)।
कर्ण दब की प्रारंभिक लंबाई दअ � २ के बराबर होगी
या q = २ � संपीडन विकृति
[ or q = 2� Linear (or compression) strain]
इसी प्रकार यह दिखाया जा सकता है कि कर्ण अस दिशा में उत्पन्न विकृति भी संख्यात्मक मान में अपरूपण विकृति की आधी होती है।
किसी भी घन के दो सम्मुख फलकों के बीच दबाव एवं अन्य दो सम्मुख फलकों के बीच तनाव (tension) लगाकर घन में अपरूपण लाया जा सकता है। इस स्थिति में सुगमता से यंग गुणांक एवं अपरूपण प्रत्यास्थता गुणांक के मध्य एक संबंध स्थापित किया जा सकता है।
मान लें, यय� दिशा में फ तनाव (tension), जैसा, चित्र १. में दिखाया गया है, रर� दिशा में - फ दबाव तथा ल ल� दिशा में कोई भी बल न कार्य करे, तो लंबवत् तीनों अक्षों पर उत्पन्न विकृति सारणी २. में दिखाई गई है।
सारणी २.
तनाव (Tension) |
� |
वितान (Extension) |
� |
कुल वितान |
संपीडन |
फ� |
य य� मे |
र र� मे |
ल ल� में |
|
|
य य� दिशा में + फ |
|
- प फ |
- प फ |
|
|
र र� दिशा में - फ |
+ प फ |
- |
+ प फ |
� | � |
ल ल� दिशा में |
० |
० |
० |
० |
० |
�
समीकरण (१) और (२) को मिलाकर हम कह सकते हैं कि
भौतिक जगत् में प्रत्यास्थता गुण का अपना विशेष महत्व है। यांत्रिक (mechanical) एवं सिविल (civil) इंजीनियरिंग में इस ज्ञान का व्यापक उपयोग है।
आयतन प्रत्यास्था के कारण ही सभी द्रव्यों में से ध्वनि की तरंगें गमन कर पाती हैं।
अपरूपण की अवस्था स्थिर स्थितियों में द्रव एवं गैस में नहीं देखी जा सकती, परंतु जब द्रव बहता होता है तब द्रव की एक सतह दूसरी सतह पर से फिसलना चाहती है। द्रव की सतहें अपरूपित हो जाती हैं। और तलों के बीच की सापेक्ष गति का विरोण करती हैं, परंतु यह स्थिति क्षणिक होती है। इस अपरूपण को द्रव एवं गैस की श्यानता (Viscosity) कहते हैं।
(नारायण गोपाल डोंगरे)