प्रतिजैविकी (ऐंटिबायोटिक्स, Antibiotics) सल्फोनामाइड नामक सफल औषधियों के पश्चात् प्रतिजैविकी के आविष्कार ने चिकित्सा क्षेत्र में क्रांति उत्पन्न कर दी। बहुत से रोग, जिनकी सल्फोनामाइड के प्रयोग के बाद भी असाध्य समझा जाता था, ऐंटिबायोटिक्स के आविष्कार के पश्चात् सुसाध्य समझे जाने लगे।

इस औषधि का आभास सर्वप्रथम सन् १८७७ में पैस्टर तथा जोबर्ट नामक विद्वानों को तब हुआ जब उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से यह देखा कि ऐं्थ्रोक्स बैसिलाई की उत्पत्ति कुछ अन्य बैसिलाई के कारण रुक गई। इसके ठीक दस वर्ष के पश्चात् प्रोफेसर फ्रेडनारिच नामक वैज्ञानिक ने यह सिद्ध किया कि किसी संवर्धन द्रव्य में जब एक प्रकार का जीवाणु वृद्धि कर चुकता है तब वही संवर्धन द्रव्य दूसरे जीवाणुओं के लिये घातक बन जाता है। इस प्रकार की क्रिया को प्रतिजीविता (Antibiosis) और ऐसा कार्य करनेवाली औषधियों को प्रतिजैविकी कहते हैं।

ऐसी ओषधियाँ वैज्ञानिकों द्वारा दो भागों में बाँटी गई हैं : १. प्रतिजैविकी २. ब्राडस्पेक्ट्रम प्रतिजैविकी। पहले भाग की, सर्वप्रथम प्रयोग में आनेवाली, ओषधियाँ १. पेनिसिलिन (penicillin) और स्ट्रेप्टोमाइसिन (streptomycin) हैं।

दूसरे भाग की ओषधियाँ हैं :

(क) क्लोरऐम्फेनिकॉल (Chloramphenicol), जिसके अंतर्गत (१) क्लोरोमाइसीटिन (Chloromycetin), (२) सिंथोमाइसीटिन (synthomycetin) इत्यादि ओषधियाँ आती हैं।

(ख) टेट्रासाइक्लीन (Tetracycline), जिसके अंतर्गत (१) टेरामाइसिन (Terramycin) तथा (२) ऐक्रोमाइसिन (achro mycin) आदि ओषधियाँ आती हैं।

(ग) क्लोर टेट्रासाइक्लीन हाइड्रोक्लोराइड (Chlor-tetracycline hydrochoride), जिसमें ऑरियोमायसिन (Aureomycin) नामक ओषधि का समावेश होता है।

इनके अतिरिक्त इस भाग में (घ) नियोमायसिन (Neomycin), (ङ) पॉलिमिक्सीन (Polymyxin), (च) बैसिट्रिसिन (Bacitrecin) (छ) एर्थ्राोिमाईसीन (Erythromycin), (ज) टाइरो्थ्रासिन (Tyrothricin), (झ) वायोमायसिन (Viomycin), (ञ) मायोकमायसिन (Myocmycin), (ट) लूपूलॉन (Lupulon) इत्यादि औषधियों का समावेश होता है।

(प्रियकुमार चौबे)