प्रतर्दन ययाति की कन्या माधवी से उत्पन्न (महा., उ., ११५.१५) दिवोदास के पुत्र वैदिक दैवोदासि (ऋ., ६.२६.८)। पुराणों में इन्हें काशिराज कहा है। इसी के आधार पर इनका संबंध वैदिक सुदास से स्पष्ट हो जाता है। दिवोदास ने इन्हें नैमिषारण्य में किए पुत्रष्टि यज्ञ के फलस्वरूप प्राप्त किया था। वीरगति पाकर यह इंद्रलोक गए जहाँ इन्होंने इंद्र से ब्रह्मविद्या का उपदेश लिया। इंद्र-प्रतर्दन संवाद से इनके तत्वज्ञान का परिचय मिलता है (कौषी. उप., ३.१.१, ३.३.१)। महाभारत, भागवत, विष्णु आदि पुराणों में ये महान् पराक्रमी, परम दयालु, दानवीर, ब्राह्मणभक्त आदि रूपों में चित्रित हुए हैं (महा., शांति., २४०.२०; अनु. १३७.५; भाग. ९.१७)।

(श्याम तिवारी)