प्रकाशानंद सरस्वती गोपाल भट्ट गोस्वामी के पितृव्य थे। अद्वैत संप्रदाय के मायावादी संन्यासी होकर काशी चले आए। यह परम विद्वान् तथा शास्त्रार्थकेसरी थे किंतु अभिमान भी अधिक था। जब श्री गारांग वृंदावन जाते हुए काशी आए तथा लौटते समय यहाँ दो मास रहे, दोनों से शास्त्रचर्चा हुई। इससे ज्ञान के आगे भक्ति को हेय समझनेवाले प्रकाशानंद का गर्व चूर हो गया और यह परम कृष्णभक्त हो गए। श्री गौर ने प्रबोधानंद नाम रखकर वृंदावन वास करने की सम्मति दी अत: यह वहीं जाकर रहने लगे। कालीयदहृ के पास प्रबोधानंद समाधि वर्तमान है। इनकी रचनाएँ श्रीचैतन्य चरितामृत, संगीतमाधव, श्रीवृंदावन महिमामृत (संग्रह शतकप्राप्त), आश्चर्य रास प्रबंध, आदि। श्री राघारस सुधानिधि के संबंध में मतभेद है कि यह इनकी रचना है या हितहरिवंश की।((स्व.) ब्रजरत्नदास)