प्रकाश विद्युत् (Photo Electricity) धातुओं की सतह से तापायनिक उत्सर्जन (thermionic emission) द्वारा इलेक्ट्रॉनों के पलायन के लिए आवश्यक ऊर्जा तापीय प्रक्षोभ (agitation) से प्राप्त होती है। प्रकाश द्वारा धातु को प्रदीप्त करने पर निम्न ताप पर भी धातु से इलेक्ट्रानों का उत्सर्जन हो सकता है। पदार्थ द्वारा विकिरण अवशोषित करने पर विद्युत् आवेश का उत्पन्न होना प्रकाश विद्युत् प्रभाव है। प्रकाश के विद्युच्चुंबकीय होने के कारण तथा पदार्थ का निर्माण केवल प्रोटॉनों और इलेक्ट्रॉनों से होने के कारण विकिरण और पदार्थ में अंत: क्रिया होने पर मध्यवर्ती अवस्था या अंतिम परिणति के रूप में पदार्थ में वैद्युत् परिवर्तन होता है। इस घटना की व्याख्या (अ) पृष्ठ प्रकाशविद्युत् प्रभाव, (ब) आयतन प्रकाश विद्युत् प्रभाव या प्रकाशिक संचालकता प्रभाव तथा (स) प्रकाश वोल्टीय प्रभाव नामक तीन विभागों में की जाती है।

(अ) पृष्ठ प्रकाश विद्युत् प्रभाव किसी ठोस और गैस की सीमा पर प्रकाश द्वारा इलेक्ट्रॉनों की निर्मुक्ति पृष्ठ प्रकाशविद्युत् प्रभाव (Surface photo-electric effect) है। इस प्रभाव की खोज हेर्ट्स (Hertz) ने की थी, किंतु सुधार और उसकी सही व्याख्या आइंस्टाइन (१९०५) ने की। प्रकाश से किरणित (irradiated) करने पर कुछ धातुओं के पृष्ठ से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं। लघु तरंगदैर्ध्य (एक्स किरण तथा गामा किरण) के विकिरणों के प्रयोग से इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन में वृद्धि होती है। उपर्युक्त प्रभाव को उत्पन्न करने की सरल व्यवस्था का आरेख अगले पृष्ठ पर चित्र १. में प्रस्तुत है।

इस उपकरण को प्रकाश सेल (Photo cell) कहते हैं। प्रकाश तत्व (Photo element) या प्रकाश सेल प्रकाश ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित करने का साधन है। इस घटना को गणितीय पद्धति से निम्नलिखित समीकरण द्वारा व्यक्त किया जाता है।

hn = m v2 + w .....(१)

उपर्युक्त संबंध का संपूर्ण आशय समझने के लिये यह प्राक्कल्पना माननी पड़ती है कि परमाणु या अणु द्वारा प्रकाश अवशोषण या उत्सर्जन असंतत (discontinuous) प्रक्रिया है जिसमें किसी निश्चित आवृत्ति के विकरण के लिये सदा समान ऊर्जा का विनिमय होता है। विभिन्न आवृत्तियों के लिये क्वांटम का आकार (प्रकाश फोटॉन) आवृत्ति का समानुपाती है, अर्थात्

E = hn ............ (2)

जिसमें h सार्वत्रिक नियतांक (universal constant) है, जिसे प्लांक का नियतांक कहते हैं और n आवृत्ति है, समीकरण (१) में m तथा v निष्कासित इलेक्ट्रॉन की क्रमश: संहति तथा वेग है। w कार्यफलन है, जो इलेक्ट्रॉन को परमाणु या अणु से अलग करके सतह पर लाने के लिये आवश्यक ऊर्जा को निरूपित करता है, अर्थात् धातुपृष्ठ से इलेक्ट्रॉन के पलायन के पूर्व उसपर न्यूनतम ऊर्जा नष्ट होती है। पहले समीकरण के अनुसार, जब कोई इलेक्टॉन उत्सर्जित नहीं हुआ होता, तब

hn 0 =E ......... (3)

जहाँ n 0 प्रकाश वैद्युत देहली आवृत्ति (Photo electric threshhold frequency) कहलाती है।

तदनुसार, पहले समीकरण की सुधार कर निम्नलिखित रूप दिया जाता है :

Em = mv2 = hn - w = h(n - n 0)......... (4)

यह आइंस्टाइन का प्रकाश वैद्युत समीकरण है, जिसमे Em इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम ऊर्जा निरूपित करता है, जो चित्र २ में ग्राफ द्वारा प्रदर्शित है।

धातुपृष्ठ पर एकवर्णी (monochromatic) प्रकाश के प्रयोगों के निम्नलिखित परिणाम हैं :

    1. प्रत्येक धातु की एक न्यूनतम आवृत्ति (अधिकतम तरंगदैर्ध्य) होती है, जिसके नीचे इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं होते।
    2. उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों का अधिकतम वेग आपतित प्रकाश पुंज की तीव्रता से प्रभावित नहीं होता और केवल इसकी आवृत्ति पर निर्भर होता है।
    3. उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों का अधिकतम वेग आपतित विकिरण की आवृत्ति की समानुपाती होती है।

(ब) प्रकाशिक चालकता प्रभाव (Photo-conductivity effect) १८७३ ई. में सर्वप्रथम डब्ल्यू. स्मिथ ने इसे प्रकाश सेल में प्रयुक्त सिलीनियम में प्रेक्षित किया। १९२० ई. तक कुल तीन पदार्थ ज्ञात थे, अब अनेक हैं। पदार्थ की अंतरांश में प्रकाश की अंत: क्रिया के फलस्वरूप इलेक्टॉनों का विमोचन होता है, जिससे वैद्युत चालकता बढ़ जाती है।

(स) प्रकाश वोल्टीय प्रभाव (Photovoltaic effect) इसकी खोज एल्स्टर (Elaster) और गीटल (Geital) ने १८८९ ई. में की थी। यह घटना प्रकाश विकिरण और पदार्थ की अंत: क्रिया से भी घटित होती है। इस प्रभाव के परिणाम से सूक्ष्मग्राही पदार्थयुक्त परिपथ में विद्युत्वाहक बल उत्पन्न होता है और बैटरी के बिना धारा प्रवाहित होती है। पारे से पारदित (amalgamated) विद्युत्रोधी जस्ताप्लेट किरणीयन द्वारा + २.५ वोल्टता प्राप्त कर लेती है।

उपर्युक्त तीन प्रभावों से अनेक साधनों तथा युक्तियों का निर्माण हुआ है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :

(१) प्रकाश सेल (Photo cell) या प्रकाश वैद्युत नेत्र यह सिनेमा, टेलिविजन, एक्सपोजरमापी (exposuremeter), चोर घटी, स्वचलित द्वार नियंत्रक तथा औद्योगिक इलेक्ट्रॉनिकी के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक प्रयुक्ति पाता है।

(२) प्रकाश चालकता सेल ( Photo conductive cell) जब पर्याप्त क्वांटम ऊर्जा का विकिरण किसी अर्ध चालक या रोधी द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है तब तापन से होनेवाले सामान्य परविर्तनों के साथ वैद्युत चालकता जिसे प्रकाशिक चालकता (Photo conductivity) कहते है, उत्पन्न होती है। प्रकाश द्वारा विद्युत् धारा में परिवर्तन करने के लिये प्रकाश चालक उपयोगी हैं। ताप के मापन तथा नियंत्रक के लिये थर्मिस्टर (thermistor) का प्रयोग होता है। प्रकाश विचरकों (Photo variators) द्वारा सुदूर स्थित गरम पिंडों की पहचान होती है। अर्धचालकों से ताप वैद्युत युग्म (thermocouple) बनाए जाते हैं जिनका प्रकाशीय तथा अवरक्त स्पेक्ट्रमिकी (infra-red spectroscopy) में महत्वपूर्ण प्रयोग होता है।

चालकता निम्नलिखित सूत्र द्वारा व्यक्त की जाती है :

s = e (n m n + p m p) ........... (५)

जहाँ e = इलेक्ट्रॉनीय आवेश, n तथा p क्रमश: इलेक्ट्रॉन तथा छिद्रों के घनत्व है। अधिकांश प्रकाश चालकों (Photo conductors) में धारा को गौण वाहकों की देन नगण्य है और इस प्रकार s को प्रधान प्रभाव मुक्त वाहकों के पदों तथा उनकी सुचलता में व्यक्त किया जाता है, m n और m p स्थिरांक हैं।

s = n e m .......... (6)

यदि पदार्थ में प्रकाश का प्रधान प्रभाव मुक्त वाहकों के घनत्व की वृद्धि या अवरोधकों (barriers) के प्रतिरोध का ्ह्रास हो तो प्रकाशचालकता उत्पन्न होती है। अवरोधों के अभाव में विकिरण का अवशोषण परपोषी क्रिस्टल (host crystal) के परमाणुओं अथवा अशुद्धि के परमाणुओं को आयनित करता है जिससे मुक्त इलेक्ट्रॉन और मुक्त छिद्र या केवल एक चिह्न से मुक्त आवेशवाहक उत्पन्न होते हैं। मुक्त आवेशवाहकों के घनत्व में परिवर्तन के फलस्वरूप प्रकाशिक चालकता होती है।

(३) क्रिस्टली गणित्र (Crystal counter) यह उपकरण (चित्र ३.) वोल्टतायुक्त क्रिस्टल पट्टी (crystal slab) के आर पार कण के सहवर्ती चालकता स्पंद (conductivity pulse) के जरिए एकक आयनीकरण कणों की पहचान करता है। (र. स. श.)

चित्र ३.

प्र. प्रवर्धक उ. निर्गम, इ. बारीक, धात्विक इलेक्ट्रोड।

कृ. क्रिस्टल, पृ. पृथ्वी, अ प्रतिरोधक।

(रघुबीरसरन शर्मा)