पोस्त (पॉपी, Poppy) या पोस्ता भूमध्यसागर प्रदेश का देशज माना जाता है। यहाँ से इसका प्रचार सब ओर हुआ। इसकी खेती भारत, चीन, एशिया माइनर, तुर्किस्तान आदि देशों में मुख्यत: होती है। भारत में पोस्ते की फसल उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में लगभग ५९ हजार एकड़ भूमि में बोई जाती है और प्रतिवर्ष उत्पादन लगभग १३� हजार मन होता है। पोस्त की खेती एवं व्यापार करने के लिये सरकार के आबकारी विभाग से आज्ञा लेना आवश्यक है। पोस्ते के पौधे से अफीम निकलती है, जो नशीली होती है।
पोस्ते का पौधा लगभग ६० सेंटीमीटर ऊँचा होता है। फूल सफेद, लाल, बैंगनी, और पीले, इस प्रकार विभिन्न रंगों के होते हैं। अफीमवाले पोस्ते के फूल लाल अथवा बहुत हलके बैंगनी रंग के, या सफेद, होते हैं। फल, जिसे डोडा कहते हैं, चिकना और अंडाकार होता है। पोस्ते की दूसरी जातियों को, जिन्हें फूलों के लिये लगाया जाता है, ''शर्ली पॉपीज'' कहते हैं।
पोस्त मुख्यत: अफीम के लिये बोया जाता है। कच्चे डोडे पर तेज चाकू से धारियाँ बनाने पर, एक प्रकार का दूध निकलता है जो सूखकर गाढ़ा होने पर खुरच लिया जाता है। यहा अफीम है (देखें अफीम)। इसमें से मॉरफीन और कोडीन निकाले जाते हैं, जो दवाइयों में काम आते हैं। अफीम में साधारणत: ८ से १३ प्रतिशत मॉरफीन होता है, अधिक से अधिक २२.८ प्रति शत। एक एकड़ भूमि से लगभग २५ सेर अफीम निकल आती है।
बहुत से देशों में पोस्त की खेती उसके बीजों के लिये, जिन्हें खसखस या पोस्तदाना कहते हें, की जाती है। बीज सफेद या काले रंग के होते हैं। इनमें तेल की मात्रा ४० से ६० प्रतिशत तक होती है। तेल खाद्य सामग्री में काम आता है। बीज मिठाई, 'ठंढाई' आदि बनाने में उपयोगी हैं। खसखस में नशीला पदार्थ नहीं होता। यह औषधियुक्त भी मानी गई है। गढ़वाल जिले में पोस्त के हरे पत्तों से सब्जी भी बनाई जाती है।
(आत्माराम भैरव जोशी)