पोलो, मार्को यह वेनिस निवासी निकोलो का पुत्र था। इसका जन्म लगभग १२५४ ई. में हुआ था। सन् १२७५ के आरंभ में मार्को पोलो ने कुबलाई खान से भेंट की। खान इससे बड़ा प्रभावित हुआ। उसने इसे अपने दरबार में रख लिया। वहाँ इसका प्रभाव बढ़ता ही गया और इसे प्रशासन के संबंध में अंतर्देशीय तथा विदेशी कार्यो का उत्तरदायित्व दिया जाने लगा। इस प्रकार वह काफी धनवान बनकर १२८५ ई. में वेनिस वापस लौट आया।
सेनापति के रूप में मार्को पोलो का परिचय हमें उसके जीवनी लेखक जॉन रेमूजियो से मिलता है। १३वीं शताब्दी में वेनिस तथा जिनोआ में परस्पर काफी स्पर्धा थी। सन् १२९८ में जिनोआ ने वेनिस पर आक्रमण करने की पूरी तैयारी की और अपनी सेनाएँ एड्रियाटिक सागर की ओर बढ़ाई। इधर वेनिस ने भी एक जलसेना तैयार की। मार्को पोलो वेनिस की इस जलसेना में एक सेनापति बनाया गया। युद्ध में वेनिस पराजित हुआ। मार्को पोलो बंदी बना लिया गया। लगभग एक वर्ष तक यह जिनोआ के बंदीगृह में रहा और सन् १२९९ के जुलाई या अगस्त मास में वेनिस लौट आया। इस कैद के बाद उसने एक पुस्तक लिखी जिसमें उसने अपने अनुभव लिपिबद्ध किए।
मार्को पोलो पहला यात्री था जिसने एशियाई देशांतर रेखा के पार का रास्ता ढूंढ निकाला था। उसके समय में हमें समुद्रतटों के बड़े वैज्ञानिक ढंग के खाके मिलते हैं। इन खाकों में मार्को पोलो का प्रभाव स्पष्ट झलकता है। इन खाकों से यह ज्ञात हो जाता है कि मध्यकाल के हिसाब से मार्को पोलो का ज्ञान विशिष्ट रूप से उन्नत था। उसने अनेक देशों की यात्रा की और उनका वर्णन किया है एक ओर उसने साईबेरिया के रेगिस्तान तथा आर्कटिक महासागर के तटों एवं रेनडियर और श्वेत रीछों का वर्णन किया और दूसरी आरे इससे बिल्कुल भिन्न प्रकार के प्रदेशों का वर्णन किया। वह पहला मध्यकालीन व्यक्ति था जिसने एबीसीनिया के साम्राज्य तथा मैडागास्कर एवं जंजीबार और सकोतरा के टापुओं का सुस्पष्ट विवरण दिया। चीन के सीमांत प्रदेशों का वर्णन करते हुए मार्को पोलो ने पहली बार चीन की विशालता तथा ऐश्वर्य एवं पीकिंग दरबार के वैभव को लिपिबद्ध किया। अंडमन, नीकोबार, सुमात्रा, जावा, जापान, बर्मा, सिलोन तथा तिब्बत आदि कई प्रदेशों का भी उसने वर्णन किया।
मार्को पोलो भारत भी आया था और उसने सुनी सुनाई बातों का भी उल्लेख किया है। उसके अनुसार चंद्रगुप्त द्वितीय, महाराज हर्षवर्धन, राजा भोज तथा महारानी रुद्रांबा आदि भारतीय शासकों के राज्य में बड़ा सुख चैन था। प्रजा के हितों का ध्यान रखा जाता था तथा सरकार अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक थी। मार्को पोलो भारत के दक्षिण में भी गया। उसका कहना था कि दक्षिणी भारत के कुछ प्रांतों के पास अच्छे घोड़े नहीं हैं। अत: उन्हें युद्धादि के लिये अरब से घोड़े मँगाने पड़ते हैं। उसने भारतीयों में घोड़े रखने की अयोग्यता तथा इन अरबी घोड़ों के लिये दक्षिणी भारत की प्रतिकूल जलवायु का भी वर्णन किया है। दिल्ली सल्तनत का उल्लेख करते हुए उसने वहाँ के ऋण संबंधी कानून की कठोरता भी वर्णित की है।
(मिथिलेश चंद्र)