पोप, अलेक्ज़ंडर आंग्ल कवि अलेक्जंडर पोप का जन्म लंदन में २१ मई, १६८८ को हुआ। उनके पिता धनी वस्त्रविक्रेता थे जो रोमन कैथेलिक पंथी बन गए थे। पढ़ने के लिये अत्यधिक परिश्रम करने के फलस्वरूप पोप का शरीर रुग्ण तथा कुरूप हो गया था और इस शारीरिक दोष की संवेदना उनको लगातार चिंतित रखती थी। उनकी शिक्षा भी क्रमरहित तथा अपूर्ण थी। इसपर भी १२ वर्ष की अवस्था में उन्होंने 'ओड ऑन सॉलिट्यूड' (एकांतगान) शीर्षक कविता लिखी और १४वें वर्ष में उनकी अद्भुत तथा परिपक्व कविता 'साइलेंस' (मौन) प्रसिद्ध हुई। उनकी प्रकृति विषयक कविताओं में 'पैस्टोरल्स' की, जो १७०९ में प्रसिद्ध हुई, तत्कालीन सभी मुख्य मुख्य आलोचकों ने मुक्त कंठ से प्रशंसाकी है। उनका 'एसे ऑन क्रिटिसिज़म' (आलोचना पर निबंध) १७११ में प्रकाशित हुआ और इसी के कारण वे तत्कालीन लेखकों में प्रथम श्रेणी के लेखक माने जाने लगा। 'विंडसर फॉरेस्ट' नामक लोक प्रसिद्ध कविता (१७१३) अनेक प्रशंसनीय, यथार्थ तथा सुंदर वर्णनों से परिपूर्ण है। इसी के बाद (१७१४) उनका हास्यरसात्मक महाकाव्य 'रेप ऑव दि लॉक' (केशापहरण) प्रसिद्ध हुआ जिससे उनकी अद्भुत कल्पनाशक्ति तथा कोमल भावविकास की ख्याति स्थिरतर हो गई१ १७१३ से १७२० तक उन्होंने होमर के 'ईलिअड' का अंग्रेजी अनुवाद प्रसिद्ध किया। यद्यपि यह अनुवाद मूल महाकाव्य का पूर्ण रूप से प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता तथापि ओज तथा रचनामाधुर्य से वह परिपूर्ण है। पोप ने साहित्यकारों में सर्वश्रेष्ठ पद प्राप्त कर लिया परंतु ईर्षामूलक राजनीतिक मतभेदों के कारण एडिसन तथा उनके अनुयायियों के वे विरोधी बन गए। १७१७ में उनक 'एलोइसा टू अबेलाई' तथा 'ऐनएलेजी टु दि मेमरी ऑव एकन अनफार्च्यूनेट लेडी' (एक दुर्दैवपीड़ित अबला का शोकगीत) ये दोनों भावपूर्ण कविताएँ प्रसिद्ध हुईं। इन दो कविताओं के साथ ही उनकी 'ओड ऑन सेंट सेलिसियाज१ डे' नामक खंडकाव्य प्रसिद्ध हुआ। खंडकाव्य लिखने का पोप का यह मुख्य प्रयत्न था और इसके अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया कि इस प्रकार के काव्य के लिये जिन भावों की तथा छंदों की आवश्यकता होती है वे सब उनकी शक्ति के बाहर थे।
१७१८ में पोप ने 'ट्विकेन हम' के समीप कुछ जमीन तथा प्रसिद्ध विला खरीद लिया जहाँ वे जीवन के अंत तक रहते रहे। १७२५-२६ में उन्होंने होमर के 'ओडिसे' का अनुवाद किया। परंतु यह अनुवाद अपरिपक्व सहकारियों की सहायता से पूर्ण किए जाने के कारण उतना सफल नहीं हुआ जितना ईलियड का अनुवाद हुआ था। १७२७-३२ तक पोप तथा 'स्विफ्ट' संयुक्त ग्रंथ कर्तृव्य में एक विविध विषयक कविता संग्रह प्रसिद्ध हुआ। इस संग्रह की तीसरी पुस्तक में कई व्यक्तियों की ओर से पोप की अत्यंत कठोर तथा कटु आलोचना की गई इन आलोचनाओं का उत्तर देने के लिये 'डंसिअड' के तीन भाग प्रकाशित किए गए। इसके बाद 'एसे ऑन मैन' (मनुष्य पर निबंध), एसे ऑन क्रिटिसिज्म 'इमिटेशंस ऑव होरेस' (होरेस के अनुकरण) ये तीन काव्यग्रंथों की सूची समाप्त होती है। इन तीनों में प्रथम उपदेश संबंधी कविता है जो कि गांभीर्य तथा बुद्धिमत्ता का परिचय देती है यद्यपि वह बोलिंगबुक के गांभोर्य तथा बुद्धिमत्त का परिचय देती है यद्यपि वह बोलिंगबुक के गांभोर्य शून्य दार्शनिक विचारों के आधार पर लिखी गई हैं। दूसरा बहुत समय तक पोप के सभी काव्यों में लोकप्रिय काव्य रहा। इसमें धन के उपयोग का और स्त्री पुरुषों के स्वभाव का वर्णन किया गया है। यह १७३१-३५ ई. तक प्रकाशित किया गया था। तीसरा होरेस से लिया गया अनुवादात्मक काव्यसंग्रह है जो पोप को विचार-सूक्ष्मता तथा व्यंग्य शक्ति उत्कृष्ट रूप में प्रदर्शित करता है। 'होरेस के अनुकरण' १७३३-३९ में प्रसिद्ध हुए। १७४२ ई. में उन्होंने 'डंसिअड' का चौथा भाग प्रकाशित किया। उनका देहांत ३० मई, १७४४ ई. को हुआ वह ट्विकेनहम में दफनाए गए।
गद्यलेखक के रूप में पोप द्वितीय श्रेणी के लेखक समझे जाते हैं। गद्य में स्विफ्ट ग्रे, इत्यादि प्रसिद्ध व्यक्तियों को लिखे हुए इनके पत्र तथा विभिन्न विषयों पर आडंबरपूर्ण लेखों का संग्रह प्रसिद्ध है। ये लेखक सरल तथा स्पष्ट हैं, विशेषत: जब वे स्वानुभवों का वर्णन करते हैं।
पोप इंग्लैंड में आज तक हुए व्यंग्य कवियों में प्रो. सेंट्सबेरी के शब्दों में 'काव्य सौंदर्य के विषय में संसार भर में सर्वश्रेष्ठ आचार्यो में एक' थे।
पोप के काव्यों का तथा लेखों का सर्वमान्य संग्रह एलविन और कोर्थप द्वारा तैयार किया गया है जो१८७१-८९ में प्रकाशित हुआ।
सं. ग्रं.� सर ए. डब्लू. वार्ड : दि पोएटिकल वर्क्स ऑव ए. पोप; दि प्रोज़ वर्क्स ऑव ए. पोप; सर लेस्ली स्टीफन : अलेक्ज़ंडर पोप; एडिथ सिटवेल : अलेक्ज़ंडर पोप।
(बृजमोहनलाल साहनी)