पोतकर समुद्री आक्रमण से इंग्लैंड की रक्षा के निमित जहाजी बेड़े के संगठन के लिये शांति के समय चार्ल्स प्रथम द्वारा बलपूर्वक लगाया गया यह कर था। केवल युद्ध के समय इंग्लैंड के राजाओं को ऐसा कर लगाने का अधिकार था। चार्ल्स प्रथम ने पूर्व के बंधन को तोड़कर शांतिकाल में इसे लगाया और स्थायी कर का स्वरूप देने का प्रयास किया। चार्ल्स प्रथम ने ११ फरवरी, १६२८, को बिना पार्लिमेंट की अनुमति के पोतकर प्रादेश (writ) जारी किया, किंतु उग्र विरोध होने के कारण यह प्रादेश जारी किया गया। इसका भी विरोध हुआ, किंतु इसमें कोई अवैधानिकता न होने के कारण १,०४,००० पाउंड की वसूली हुई१ ४ अगस्त, १६३५, को दूसरा पोतकर प्रादेश जारी किया गया और १२ न्यायाधीशों की समिति में १० ने इसे वैघ घोषित कर दिया। ९ अक्टूबर, १६३६, को इस संबंध में तीसरा प्रादेश जारी हुआ, जिसका लार्ड सेई (Saye) और जॉन हैंपडेन (John Hampden) ने विरोध किया। विरोध के कारण जॉन हैंपडेन पर मुकदमा चलाया गया, जिसमें १२ न्यायाधीशों में से सात ने राजा के पक्ष में और पाँच ने हैंपडेन के पक्ष में निर्णय दिया। सन् १६४१ में दीर्घकालीन पार्लिमेंट (Long Parliament) ने इसे कानून द्वारा अवैध घोषित कर दिया।(अजितनारायण मेहरोत्र)