पैवलॉफ, इवान पेट्रोविच (Pavlov, Ivan Pertrovitch, सन् १८४१-१९२६), रूसी कायिकीविद्, का जन्म रिआजा (Ryazan) में हुआ था। इनके पिता पादरी थे। इन्होंने प्रथम सेंट पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय में विज्ञा तथा पश्चात् वहीं के सैनिक आयुर्विज्ञान अक़ादमी में कार्यचिकित्सा का अध्ययन किया। सन् १८८३ में इन्होंने एम.डी. की उपाधि प्राप्त की। इसके पश्चात् ये प्रसिद्ध वैज्ञानिक लूडविख (Ludwig) तथा हैइडेनहाइन (Heidenhain) के अधीन दो वर्ष कार्य करने के लिये जर्मनी गए।

सन् १८९० में ये सेंट पीटसबर्ग में प्रायोगिक आयुर्विज्ञान संस्था के कायिकी विभाग के निर्देशक नियुक्त हुए तथा सन् १८९७ में आयुर्विज्ञान अकादमी में प्रोफेसर बना दिए गए। सन् १९०४ में इन्होंने नोबेल पुरस्कार पाया तथा सन् १९०७ में ये रूस की वैज्ञानिक अकादमी के चार सदस्यों में से एक चुने गए। इसी वर्ष इंग्लैंड की रॉयल सोसायटी ने भी इन्हें अपना वैदेशिक सदस्य चुना तथा सन् १९२८ में ये लंदन के रॉयल कॉलेज ऑव फिज़िशीयंस के संमाननीय सदस्य बनाए गए। जीवन में इन्हें अनेक संमान मिले।

पैवलॉफ की प्रसिद्धि पाचन क्रिया के रहस्य तथा मस्तिष्क की क्रिया संबंधी खोजों और प्रतिवर्त (reflexes) के सिद्धांत के कारण है। इनकी प्रथम उल्लेखनीय सफलता रक्तपरिभ्रमण की क्रिया से संबंधित थी। इन्होंने कुत्तों के ऊपर प्रयोग कर प्रर्दिशत किया कि यदि भोजन किया जाय, पर उसे आमाशय में न पहुँचने दिया जाय, तब भी जठररस मुक्त रूप से प्रवाहित होते हैं। इन्होंने जानवरों पर प्रयोग करने की ऐसी नई विशेष विधियाँ निकालीं, जिनसे जीवित प्राणियों की सामान्य स्थिति में भी वे उनकी शारीरिक क्रियाओं की परीक्षा कर पाते थे। आमाश्य की एक कृत्रिम थैली में प्रवेश करनेवाले एक नालीव्रण को चतुरता से बनाकर, ये यह प्रदर्शित करने में वेगस तंत्रिका का प्रबल हाथ होता है। इस विषय पर इनके प्रयोग २० वर्षो तक चलते रहे।

इन्होंने प्रदर्शित किया कि कुछ अवस्थाओं में शरीर के किसी अंग का उद्दीपन सामान्य उत्तेजकों के सिवाय ऐसे अन्य उत्तेजक भी कर सकते हैं जिनका साधारणतया उस अंग से कोई संबंध नहीं होता। यदि किसी कुत्ते को एक ही मनुष्य बराबर भोजन देता रहता है, तो जब वह भोजन बिना भी उसके पास आता है तो कुत्ते में जठररस का स्राव होना आरंभ हो जाता है। पैवलॉफ ने ऐसे प्रतिवर्तों के प्रबलन और निरोध के नियमों का, जिनसे प्राणियों के व्यवहार का निश्चय होता है, विस्तृत अध्ययन किया।

इन्होंने उच्च महत्व के अनेक प्रपत्र और ग्रंथ रूसी भाषा में लिखे, जिनका फ्रेंच, जम्रन तथा अंग्रेजी भाषाओं में अनुवाद हुआ है।

८६ वर्ष की आयु में, इस संमानित महापुरुष का देहांत हुआ। इसकी महानता इसी से सिद्ध है कि सोवियत रूस के जनस्वास्था के कमीसार ने उनके शव को कंधा दिया था।

(भानुशंकर मेहता)