पैराशूट छाते के आकार का, बंद होने और खुलनेवाला तथा प्राय: हलके तांतवक का बना होता है। इसका उपयोग ऊँचाई से निरापद रूप से उतरने में किया जाता है। विस्तारित पैराशूट हवा का प्रबल प्रतिरोध करता है, जिससे गिरते हुए पिंड का वेग मंद हो जाता है। इसके आविष्कार का श्रेय सिबेश्चियन लेनोरमेंड (Sebastian Lenormand) को है, यद्यपि इसकी पूर्वकल्पना लिओनार्दो द विंची (सन् १४५२-१५१९) ने कर ली थी। संभवत: समुद्री दंशरोम, या छत्रिक (Jellyfish) पैराशूट के आकार का पहला अभिकल्पन था।

युद्धकाल में पैराशूट की सहायता से शत्रुपक्ष मे जासूस उतारे जाते हैं। ये जासूस पंचमांगियों से साठ गाँठ कर पुलों को ध्वस्त करते और रहस्यों का पता लगाते हें। गत विश्व युद्ध में जर्मनी शत्रुपक्ष में अपने ५०० छत्रसैनिक प्रति घंटे की दर से उतरता था।

शांति के दिनों में भी पैराशूटों का महत्व कम नहीं रहता है। इनकी सहायता से भूकंप पीड़ितो की रक्षा की जा सकती है, दुर्गम स्थानों में खाद्य, ओषधि आदि पहुँचाई जा सकती है, डाक वितरित की जा सकती है, भूले भटकों को राह पर लाया जा सकता है और पर्वतारोहियों को सीधे पर्वत शिखर पर उतारा जा सकता है। मौसम संबंधी निरीक्षणों में भी ये बहुत काम आते हैं।

आधुनिक पैराशूट कई प्रकार के होते हैं। इनमें तीन ही महत्व के हैं : स्वचलित, स्टैटिक लाइन और स्वतंत्र पैराशूट। स्वचलित पैराशूट हवाई जहाज के किनारे छोटे संदूक में सुरक्षित रखा होता है। पैराशूट में अनेक असुविधाएँ होती हैं। स्टैटिक लाइन पैराशूटों में अंतर बहुत कम है, लेकिन यह अंतर मौलिक है। पैराशूट का संपुट अपने आप नहीं खुलता। उसे खोलने के लिये पैराशूटी को स्वयं एक तार खींचना पड़ता हे।

स्वतंत्र पैराशूट भी कई प्रकार का होता है। इसमें इरविन पैराशूट बहुत प्रचलित है। आधुनिकतम इरविन पैराशूट तो ऐसा बना हैं कि उसका स्टैटिक लाइन और स्वतंत्र, दोनों जैसा प्रयोग कर सकते हैं। इसको खोलने में उतना ही समय लगता है जितना कि पाँच तक की मौखिक गणना में। प्रत्येक पैराशूट के सुगमतापूर्वक तीन विभाग किए जा सकते हैं शिखर, तार और पैराशूट के बैठने का स्थान। पैराशूट के अविष्कार काल से अब तक उसकी शिखर रचना में अनेक परिवर्तन हुए हैं। यह प्राय: २४ से २८ फुट व्यास का रहता है। प्रारंभिक काल में कुछ शिखर चौकोर बने थे, लेकिन अब इसके लिये अर्धगोलाकृति को सर्वत्र स्वीकार कर लिया गया है। शिखर में वायु के बहिगर्मन के लिये एक छोटा ऊध््व्रद्वाार रखा जाता है। कुछ में तो कई बहिर्मुख होते हैं। इनसे पैराशूट के परिभ्रमण पर एक नियंत्रण रहता है और पैराशूटी को मिचली भी नहीं आने पाती। शिखर को इस ढ़ग से बनाया जाता है कि इसका पूरा संपुट १ सेंकंड में पूरा खुल जाय। इतनी देर में पैराशूट १६० फुट नीचे आ जाता है।

बहुत दिनों तक पैराशूट से टोकरी को जोड़ने वाले छड़ टिन अथवा दूसरी धातु के बनाए जाते थे। ये छण धोखा देनेवाले तथा खतरनाक थे। बाद में उनके स्थान पर ह्वैल के अस्थिपंजर के छड़ों का प्रयोग किया गया। लेकिन अब तो इनका भी बहिष्कार किया जा रहा है और सर्वत्र रेशमी डोरों का उपयोग हो रहा है। शुद्ध रेशम के तार २०० पाउंड तक के भार को, जो ४०० मील प्रति घंटे की चाल से गिर रहा हो, सँभालने में पूर्णत: समर्थ होते हें। इनकी संख्या २४ होती है, ताकि एकाध टूट भी जाय तो शेष तार अपनी शक्ति से भार को सँभाले रहें। यदि कुछ तार टूट जायँ तो केवल इतना ही भय रहता है कि नीचे आनेवाले पैराशूटी का वेग कुछ बढ़ जाता है। इन तारों को शिखर से मिलो के लिये भी ऐसे समर्थ तारों का प्रयोग किया जाता है कि प्रत्येक तार ८ पाउंड तक का भार सुगमता से रोक सके। शिखर भी रेशम का ही बनाया जाता है। कुछ ही पैराशूटों में सूती कपड़े का प्रयोग किया जाता है, लेकिन कपड़े रेशम की आधी क्षमता भी नहीं होती है। १०० मील प्रति घंटा वेगवाले वायुयान से कूदने पर कपड़े के शिखर फट जाते हैं। इसलिये इनके बहिष्कार में ही कल्याण है।

प्रारंभिक काल में पैराशूट में बैठने के लिये टोकरी का ही प्रयोग किया जाता था, किंतु अब इसे अत्यंत सुखद बना दिया गया है। इरविन पैराशूट की सीट में मोड़ लगाकर, कपड़े जैसी तहें लगाकर, पैराशूटी की पीठ पर बाँध देते हैं।

यदि पैराशूट से उतरते समय पेड़ या नदी दिखाई पड़े, तो पैराशूट की दिशा को मोड़ देना चाहिए। इसके लिये पैराशूट में आवश्यक प्रबंध होता है। लेकिन कभी कभी युद्ध काल में पैराशूटी को समुद्र पर उतरना पड़ता है। ऐसी स्थिति में पैराशूटी को जल का स्पर्श होते ही अपने की पैराशूट के तारों से मुक्त कर लेना चाहिए, नहीं तो शिखर ऊपर से उसे ढककर उसका जीवन ले लेगा। पैराशूटी को तैरने में सहायता पहुँचाने के लिये उसके पास लाइफ बेल्ट रहता है। उसके पास रबर की एक नाव भी होती है, जिसमें कार्बनडाइआक्साइड भरकर छोटी डाँडियों द्वारा चलाते हैं।

पैराशूट की सहायता से कूदान की प्रारंभिक प्रगति बहुत धीमी थी। इसका कारण यह था कि लोगों का विश्वास था कि वायुयान से कूदने पर कोई जीवित नहीं रह सकता और ६० मील प्रति घंटे के वेग से गिरने पर हृदयगति फौरन बंद हो सकती है। कुछ लोगों के मन में यह भ्रांत धारणा भी थी कि बहुत ऊँचाई पर वायु के दबाव में महान् अंतर होने के कारण पैराशूटी का जीवन असंभव होगा, लेकिन यह शंका भी अब निर्मूल साबि हो चुकी है। जहाँ तक दाब का प्रश्न है, हजारों फुट से कूदने पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।

पैराशूट में एक कुंजीतार लगा रहता है, जिसे पैराशूटी को संपुट खोलने के लिये खींचना पड़ता है। यदि इसे कूदने के तुरंत बाद ही खींच लिया जाय, तो वायुयान में पैराशूट उलझ सकता है। यदि पैराशूटी बहुत ऊँचाई पर हो, तो विरल वायु से साँस लेना कठिन हो सकता है। बहुत ऊँचाई पर वायु की दाब और ताप भी कम होता है। पैराशूट को ऐसे क्षीण ताप और अल्प दाब के प्रदेश में न खोलें, तो भार की गुरुता से कुछ ही क्षणों में पैराशूट काफी नीचे आ जायगा और उसे सुविधाजनक प्रदेश मिल जायगा।

वायुयान से कूदने और पैराशूट के खुलने का मध्यांतर काल अत्यंत शोचनीय होता है। जब तक हमारे पांव ठोस आधार पर टिके रहते हैं तब तक पैराशूट सहित कूदने और उसे शीघ्र न खुलने के सिद्धांत सरल लगते हैं, लेकिन १,५०० फुट की ऊँचाई से कूदनेवाले को तो यह काम मौत से सीधा संघर्ष जान पड़ता है।

पैराशूटी का जीवन नवनिर्मित या पुनर्वेष्टित पैराशूट की दृढ़ता और विशिष्टता पर निर्भर रहता है। जिन पैराशूटों का नियमित उपयोग नहीं किया जाता, उन्हें कम से कम महीने में एक बार खोलकर, सुखा कर तथा जाँचकर पुन: वेष्टित करना चाहिए। पैराशूट की जाँच विशेष प्रकार के सागबान में की जाती है, जो धूलरोक और शीतताप नियंत्रित होता है।

(बृजमोहन)