पैराफिन मोम पेट्रोलियम में तीन प्रतिशत तक मोम रहता है। इसे पैराफिन मोम कहते हैं। जब पेट्रोलियम का आसवन होता है तब अधिकांश मोम 'स्नेहन तेल' में आ जाता है। निर्वात में, अथवा भाप की उपस्थिति में, आसवन से जो आसुत प्राप्त होता है उसमें मोम की मात्रा ४० से ५० प्रतिशत तक रह सकती है। अत: ऐसे आसुत को मोम आसुत कहते हें। दक्षिण-पूर्व एशिया के तेल के आसुत में ४० प्रतिशत तक मोम पाया गया है, जबकि यूरोप और अमेरिका के कच्चे तेल के आसुत में १० प्रतिशत से अधिक मोम नहीं रहता।

मोम आसुत से मोम निकालने की दो प्रमुख रीतियाँ हैं। एक रीति में मोम आसुत को पर्याप्त ठंढा करते हैं, जिससे ठोस मोम द्रव तेल से अलग हो जाता है। अब इसे फिल्टर प्रेस में छानते हैं। फिल्टर प्रेस कई प्रकार के तथा कई पट्टों के होते हैं और विभिन्न दाब पर (प्रति वर्ग इंच ५०० पाउंड दाब तक) कार्य करते हैं। यदि आसुत में मोम की मात्रा कम है तो एक बार में ही अधिकांश मोम निकल जाता है, अन्यथा प्रक्रम को कई बार दोहराना पड़ता है। इससे कई श्रेणी के मोम प्राप्त हो सकते हैं। ऐसे मोम की टिकिया में कुछ तेल रह जाता है। तेल की मात्रा मोम में ०.३ प्रतिशत से अधिक नहीं रहनी चाहिए।

कच्चे मोम से तेल निकालने के विशिष्ट यंत्र बने हैं, जिन्हें 'स्वेदक' (sweater) कहते हैं। स्वेदक कई प्रकार के बने हैं, पर उन सभी के सिद्धांत प्राय: एक ही है। मोम को पिघलाकर ठंढा करते हैं। पात्र के पेदे में तेल इकट्ठा होता है और निकाल लिया जाता है। मोम ऊपर रह जाता है। यह कार्य छिछले कड़ाहों मे होता है। कड़ाहे १५ से २० फुट वर्गाकार ओर एक फुट गहरे होते हैं। इनमें पेदें से कुछ इंच ऊपर आधृत (supported) एक क्षैतिज आवरण होता है और आवरण के ऊपर सपाट क्षैतिज नलकुंडली होती है। कड़ाहा में इतना पानी रहता है कि आवरण उसमें ठीक डूब जाय। पिद्यले मोम को कड़ाहा में जल के ऊपर पंप करके ले जाते हैं। फिर नल कुंडली में कोई शीतक द्रव बहाते हैं। इससे मोम की ठोस टिकिया बनती है। अब स्वेदक कक्ष को धीरे धीरे गरम करते हैं। इससे टिकिए का तेल चूता, या स्वेदन करता, है। जो तेल इस प्रकार निकलता है, उसे 'पाद तेल' (foot oil) कहते हैं। पाद तेल में कुछ मोम रहता है। प्रक्रिया के दोहराने से पाद तेल का मोम भी निकाला जा सकता है। तेल के निकल जाने पर मोम को फुलर मिट्टी, या जांतव कोयले, पर धीरे धीरे छानकर, अथवा सल्फ्यूरिक अम्ल द्वारा उपचारित कर सफेद और साफ मोम प्राप्त करते हैं।

स्वेदक से प्राप्त ऐसे मोम में अब भी प्राय: ०.३ प्रतिशत तक तेल रह सकता है। मोम ३८ से ६६ सें. पर पिघलता है। ४९ सें. से नीचे पिघलनेवाले मोम को 'कोमल मोम' कहते हैं। ४९ से ५४ सें. पर पिघलनेवाला मोम मध्यम श्रेणी का होता है।

विलायक द्वारा भी मोम निकाला जा सकता है। इसके लिये वायुमंडल के दबाव और सामान्य का अल्प ऊँचे ताप पर द्रव प्रोपेन उपयुक्त होता है। ऐस्फाल्ट पदार्थ द्रव प्रोपेन में नहीं घुलते, केवल मोम और तेल घुल जाते हैं। ठंढा करने से मोम पृथक् हो जाता है। मोम के निकल जाने पर विलयन के आसवन से विलायक निकल जाता है और तेल रह जाता है। द्रव प्रोपेन के स्थान पर ऐसीटोन-बेंजोल मिश्रण और क्लोरोएथिलीन भी विलायक के रूप में प्रयुकत हो सकते हैं।

गैलीशिया की धरती में एक पैराफिन मोम पाई जाती है, जिसे 'मिट्टी मोम' या 'ओजोकेराइट' कहते हैं। आसवन से इसकी सफाई कने पर 'सेरेसिन' नामक बड़ा उपयोगी पैराफिन मोम, जो ६०से ९३ सें. पर पिघलता है, पाया जाता है।

शेल (shale) तेल, या विटुमेन (bitumen), या भूरे कोयले के आसवन से एक तेल प्राप्त होता है, जिससे पैराफिन मोम निकाला जाता है। इससे पर्याप्त मात्रा में मोम प्राप्त होता है।

पैराफिन मोम कोई निश्चित यौगिक नहीं है। यह पैराफिन श्रेणी के संतृप्त और असंतृप्त हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण होता है। हाइड्रोकार्बनों में २१ से ६० तक कार्बन परमाणु पाए गए हैं। प्रधानतया नार्मल (normal) और विववृत शृंखलावाले हाइड्रोकार्बन रहते हैं, पर संवृत शृंखलावाले हाइड्रोकार्बन बिलकुल अपवर्जित नहीं हैं।

पैराफिन मोम की उपयोगिता इसकी दहनशीलता, जल के प्रति प्रतिरोध, रासायनिक अभिकर्मकों के प्रति निष्क्रियता, विद्युत् की अचालकता और अन्य रासायनिक गुणों पर निर्भर है। कठोर मोम इन कामों के लिये उत्कृष्ट होता है, यद्यपि कोमल मोम में स्टियरिक अम्ल और कारनौबा मोम मिलाकर वह कठोर बनाया जा सकता है।

सबसे अधिक मोम मोमबत्ती बनाने में लगता है। ऐसी मोमबत्ती में जलने का गुण और दीपनक्षमता अच्छी होती है। जलने पर यह राख नहीं छोड़ती और न कोई गंध ही देती है। यह मोम साँचे में सरलता से ढाला जाता है। साँचे में चिपकना कम करने के लिये, इसमें अल्प लेड स्टियरेट डालते हैं। गर्मी में मोमबत्ती टेढ़ी हो जाती है। इसे रोकने के लिये कुछ स्टियरिक अम्ल और कारनौबा मोम मिला देते हैं। स्टियरिक अम्ल में रंग को घुलाकर रंगीन मोमबत्ती बनाते हैं। कागज पर मोम का लेप से जलाभद्य हो जाते हैं। वस्त्र और चमड़े भी इससे ओतप्रोत होने पर जलाभेद्य हो जाते हैं। दियासलाई की लकड़ी पर इसके लेप के कारण लकड़ी आग जल्द पकड़ती है। विद्युत् के यंत्रों में इसका उपयोग व्यापकता से होता है। फलों और शाक तरकारियों के संरक्षण, अंगरागों और औषधियों में भी कुछ पैराफिन मोम खपता है।

(फूलदेवसहाय वर्मा)