पैराडाइज लॉस्ट मिल्टन नामक आंग्ल कवि का लिखा हुआ एक महाकाव्य है। इस महाकाव्य को लिखने की इच्छा उनके मन में १६३९ से ही अंकुरित हुई थ् ाी, परंतु लिखने का काम पूरी लगन के साथ सन् १६५८ से शुरू हो सका। यह सन् १६६३ में समाप्त हुआ चार साल के बाद वह प्रकाशित हुआ। इसके लिये प्रकाशक ने मिल्टन को प्रथम प्रकाशन के समय ५ पौंड दिया तथा प्रथम तीन संस्करणों की बिक्री के बाद प्रत्येक संस्करण के लिये पाँच पौंड देने का वादा किया। परंतु मिल्टन को कुल मिलाकर दस ही पौंड मिले। उनकी मृत्यु के बाद उनकी विधवा पत्नी ने प्रकाशन का अधिकार आठ पौंड लेकर बेच दिया।

यह महाकाव्य लंदन स्थित लिट्ल ब्रिटेन नामक पुस्तक विक्रेताओं के बाजार में दुकानों पर अलक्षित अवस्था में पड़ा रहा। कहा जाता है, अर्ल आफ डोसेंट ने अपनी रुचि की पुस्तकें खोजते खोजते पैराडाइज लॉस्ट देख लिया। उस महाकाव्य के कुछ अंश पढ़कर उनको बहुत आश्चर्य हुआ। वे उसकी खरीदकर घर ले गए और उसे पूरा पढ़कर ड्रायन के पास भेज दिया। ड्रायन ने थोड़े ही समय के बाद इस अभिप्राय के साथ वापस कर दिया कि इस पुरुष ने हम लोगों को तो नीचा दिखाया ही, साथ ही पुराने कवियों को भी परास्त कर दिया।

यह महाकाव्य संक्षेप में विषयवर्णन के साथ शुरू होता है : मानव ईश्वरीय आज्ञाभंग अपराध के फलस्वरूप किस प्रकार स्वर्ग से वंचित हो जाता है और शैतान, जो मनुष्य के दु:ख का मूल कारण है, ईश्वर के साथ द्रोह करने के कारण किस प्रकार स्वर्ग से निकाल दिया जाता है। इसके बाद शैतान नरकस्थित अग्निमय तालाब में पड़े हुए अपने अनुयायियों को देखता है। वह अपने बहादुर साथियों को जगाता है और एक बार फिर लड़ाई का खतरा उठाया जाय। परंतु इस खबर को सुनकर कि एक नई दुनिया उत्पन्न की गई है वह इसी के सत्य का ज्ञान प्राप्त करने का निश्चय करता है। शैतान स्वयं इस नए संसार के लिये प्रस्थान करता है। ईश्वर शैतान को देखता है, मानव के विषय में अपने पुत्र के साथ विचार विनिमय करता है, उसके पतन की भविष्यवाणी करता है और अंत में उसकी मुक्ति का उपाय निश्चित करता है। इसी समय शैतान सूर्यमंडल में प्रवेश करता है। और वहाँ नए संसार के माग्र का पता लगाकर स्वर्ग में चला जाता है। वहाँ अदाम तथा ईव्ह में होनेवाले वार्तालाप को छिपकर सुनता है कि क्यों ईश्वर के द्वारा उनपर ज्ञानवृक्ष के फल न खो का प्रतिबंध लगा दिया गया है। आनेवाली आपत्ति के विषय में अदाम को सतर्क करने के लिये रफेल को भेजा जाता है जो शैतान के विषय में अदाम को सब बातें सुनाता है। शैतान किसी साँप के शरीर में प्रवेश करता है तथा ईव्ह को एकांत में देखकर उसके साथ बोलने लगता है। साँप को मनुष्यवाणी में बोलते हुए सुनकर ईव्ह को बड़ा ही आश्चर्य होता है। साँप उससे कहता है ''मैंने ज्ञानवृक्ष के फल का आस्वाद लिया और इसीसे मुझे तत्काल बोलने की शक्ति तथा ज्ञान प्राप्त हुआ।'' कौतूहल से ईव्ह को स्वयं फल खाने की इच्छा होती है और वह अदाम को भी उसे खाने के लिये प्रोत्साहित करती है। अदाम तथा ईव्ह को स्वर्ग से निकाल बाहर करने के लिये मायकेल को भेजा जाता है। अदाम तथा ईव्ह निरुपाय होकर स्वर्ग से बाहर कर दिए जाते हैं। इस प्रकार महाकाव्य समाप्त होता है।

पैराडाइज लॉस्ट, जो तुक रहित छंद में लिखा गया है, वर्जिल तथा होमर के समय से लिखे गए सभी महाकाव्यों में सर्वोत्कृष्ट है। यह महाकाव्य शक्तिशाली चरित्रचित्रण, अत्यंत सुंदर, कल्पनाशक्ति, विविध प्रभावपूर्ण छंद तथा प्रौढ़ भाषा के आनंद आदि गुणों से पूरिपूर्ण है। यह काव्य जागरण काल (रेनेसांस) तथा धार्मिक सुधार (रिफामेंशन) काल की प्रवृत्तियों का परिपूर्ण सम्मिश्रण है। इसमें प्राचीन देवतावाद युग और बाइबल के नैतिक उत्साह का सुंदर मिलन है।

सं.ग्रं. पैराडाइज लास्ट, संपादक ए. डल्लू. वैरिटी, नोट्स अपान दि ट्वेल्व बुक्स आव पैराडाइज लास्ट, ५ जनवरी से ३ मई १७१२, के स्पेक्टेटर में जे. एडिसन का लेख; ए. एस. कुक: क्रिटिसिज्म ऑन पैराडाइज लास्ट; एम. बुडहल : दि एपिक ऑव पैराडाइज लास्ट।

(बृजमोहनलाल साहनी)