पैदल सेना स्थल सेना का सबसे बड़ा संगठन होती है। इस सेना के सैनिक युद्धक्षेत्र में पैदल ही आगे बढ़ते हैं और हाथ से चलाए जानेवाले अस्त्र शस्त्र से युद्ध करते हैं। इतिहास साक्षी है कि पैदल सेना स्थल सेना का आधार स्तंभ रही है औरआज भी यह तथ्य है।
विज्ञान के विकास के कारण परिवहन के साधनों में भी विकास हुआ है और अब घोड़े तथा रथ का स्थान मोटर, रेलगाड़ी, हवाई जहाज तथा समुद्री जहाज ने ले लिया है। अब इन साधनों से ही सैनिक युद्धक्षेत्र में पहुँचाए जाते हैं, किंतु सैनिक पैदल चलकर ही लड़ते हैं। पैदल सेना का मुख्य कार्य शत्रु की भूमि पर अधिकार करना और अपनी भूमि की रक्षा करना है। परिस्थिति के अनुसार पैदल सेना को इस कार्य के लिये जलसेना, वायुसेना, तोपखाना एवं टैंक से सहायता मिलती है।
प्राचीन काल में पैदल सैनिक के मुख्य शस्त्र, धनुष, तलवार और भाला थे, किंतु विज्ञान की प्रगति के कारण नवीन अस्त्रशास्त्रों का अविष्कार हुआ है और अब पैदल सेना में स्वचलित राइफल, ग्रिनेड, हलकी एवं भारी मशीनगन, टैंकमार गन, मॉर्टर, आउत्जर, राकेट फेंकू तथा बार्बाइन इत्यादि का उपयोग होने लगा है। पैदल सेना सुरंगों का भी उपयोग करती है। सुरंगों से रक्षित पैदल सेना बहुत बलवा सिद्ध हुई है।
पैदल सैनिकों को विभिन्न स्थितियों में युद्ध करना पड़ता है। अत: स्थिति के अनुरूप अलग अलग डिविजन बनाए जाते हैं और उसी के अनुरूप सैनिकों को प्रशिक्षण दिया जाता तथा उनके हथियारों का अभिकल्पन होता है। पर्वतीय स्थानों पर युद्ध करने के लिये पर्वतीय क्षेत्र के लोग लिए जाते हैं और उनके हथियार भी तदनुरूप हलके होते हैं। विमानवाहित डिविजन का संगठन सैनिकों को चुपचाप शत्रु के क्षेत्र में पैराशूट की सहायता से उतार देने के लिये होता है। ये सैनिक भी पैदल सैनिक ही होते हैं, उन्हीं की भाँति हथियारों से सज्जित रहते हैं तथा पैदल चलकर ही युद्ध करते हैं। इसी प्रकार जंगल, मरुभूमि तथा दलदलवाले स्थानों पर लड़ने के लिये जिन डिविजनों का संगठन किया जाता है, वे गुरिल्ला युद्ध करते हें।
पैदल सेना के एक डिविजन में तीन रेजिमेंट होते हैं, जिनमें लगभग ११,००० सैनिक रहते हैं। प्रत्येक रेजिमेंट में तीन बटालियन, प्रत्येक वटालियन में तीन या चार राइफल कंमनी तथा एक हेडक्वार्टर कंपनी होती है। हैडक्वार्टरकंपन मॉर्टर तथा दूर तक मार करनेवाली मशीगन से लैस रहती है। प्रत्येक कंपनी में तीन राइफल प्लैटून तथा प्रत्येक प्लैटून में तीन राइफल सेक्शन रहते हैं। प्रत्येक सेक्शन मे नौ या दस सैनिक रहते हैं, जिनमें से एक नेता, एक हलकी मशीनगन चलानेवाला, सात राइफल सैनिक तथा एक स्टेनगन चलानेवाला रहता है। पैदल सेना का उपर्युक्त संगठन त्रिकोणात्मक कहलाता है। रेजिमेंट के नामकरण की पद्धति विभिन्न देशों में अलग अलग है। भारत में रेजिमेंटों का नामकरण मुख्यत: प्रजाति के आधार पर किया गया है, जैसे सिक्ख रेजिमेंट, गुरखा रेजिमेंट तथा राजपूत रेजिमेंट इत्यादि। भारत की सेना मे अधिकारियों का पदक्रम नीचे से ऊपर की ओर निम्नलिखित हैं।
सैनिक, लैन्स नायक, नायक, हवलदार, लैंस सूबेदार, सूबेदार, सूबेदार मेजर, सेकंड लेफ़्टेनेंट, लेफ़्टेनेंट कैप्टैन, मेजर, लेफ़्टेनेंट कर्नल, कर्नल, ब्रिगेडियर, मेजर जनरल, लेफ़्टेनेंट जनरल तथा जनरल। इसमें हवलदार से लेकर सूबेदार मेजर तक जूनियर कमीशन अफ़सर और सेकेंड लेफ़्टेनेंट से जनरल तक कमीशन अफ़सर होते हैं। फील्ड मार्शल के सभी अधिकार राष्ट्रपति में निहित हैं। राष्ट्रपति भारत की तीनों सेनाओं के प्रधान सेनापति हैं।
विश्व के लगभग सभी देशों में पैदल सेना में भर्ती होने की आयु १८ से ३५ तक है। रंगरूट को प्रशिक्षण काल में हथियारों का प्रारंभिक ज्ञान तथा सैनिक जीवन से परिचय कराया जाता है। ८ से १४ सप्ताह के प्रशिक्षण के बाद रंगरूट को संभागीय सैनिक टुकड़ी में सम्मिलित कर दिया जाता है। रंगरूट वहाँ स्कवाड से डिविजन तक के स्तर पर सामरिक दाव पेंच का अभ्यास करता है। जब पैदल सैनिक अपनी सेना के दाँव पेंचों को सीख लेता है तब उसे टैंक, तोपखाना तथा हवाई जहाज से मदद लेने का प्रशिक्षण दिया जाता है। यथार्थ युद्ध से परिचित कराने के लिये सैनिक को प्रशिक्षण काल में युद्धाभ्यास के समय वास्तविक बारूद दिया जाता है।
(अजितनारायण मेहरोत्र)